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सोनभद्र के मकरा गांव में 41 मौतों के लिए जिमेदार कौन ?

कूड़े के ढेर पर सोनभद्र

जगतनारायण विश्वकर्मा

सोनभद्र  का दक्षिणांचल दुनिया में ऊर्जा की राजधानी के नाम से जाना जाता है। ऊर्जा और खनिज के लिए लाखों लोगों के विस्थापन के बाद अब यहां के आदिवासियों को प्रदूषण की चपेट में आकर असमय जान गंवानी पड़ रही है। जिला मुख्यालय से 85 किलोमीटर म्योरपुर ब्लॉक के सेंदुर (मकरा) ग्राम पंचायत  में बीते अगस्त महीने से लेकर अबतक 41 लोगो की किसी रहस्यमय बीमारी से मौत हो चुकी है, मौतों का सिलसिला अभी भी थम नही रहा है. स्वास्थ्य महकमे के तमाम दावों के बावजूद मौतों का क्रम लगातार जारी है। स्थानीय ग्रामीण पिछले दो माह में ही 36 मौतें होने का दावा दावा कर रहे हैं। लैब की जांच में मृतकों के मलेरिया से ग्रसित होने की बात सामने आई है। वहीं जल निगम की जांच में गाँव के हैण्ड पम्पों में आयरन फ्लोराइड और नाइट्रेड कि मात्रा ज्यादा पायी गयी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पानी में इसके अलावा मर्करी ,सीसा और आर्सेनिक भी हो सकता है, लेकिन इसकी जांच की सुविधा नहीं है। स्थिति यह है कि आज भी गांव में  185 से ज्यादा लोग बीमार हैं, जिनकी रिपोर्ट में मलेरिया, टाइफाइड और खून की कमी कि सूचना है.  मीडिया में लगातार खबरें आने के बाद आनन फानन में पिछले दो सप्ताह से म्योरपुर सीएचसी की टीम दवाइयां व जांच किट लेकर गांव में कैंप लगाकर लोगों का इलाज कर रही है. शासन से भी सहायक निदेशक डॉ अवधेश यादव के नेतृत्व में टीम आयी है, जो ग्रामीणों में सबसे ज्यादा खून की समस्या बता रही है.  वहीं क्षेत्रीय विधायक और सूबे में समाज कल्याण राज्य मंत्री संजीव गौड ने 15 मौतों की पुष्टि तो की है, लेकिन जब 41 मौतों की बात कही गई तो उन्होंने भाजपा के कार्यकर्ताओं से जांच कराने की बात कही.

गाँवों में पहुंची मेडिकल टीम

रिहन्द का पानी ही सहारा

करा गांव के कठहवा टोला में 30 घरों में 50 सालों से रिहन्द का पानी ही पीने का एकमात्र सहारा है. टोले में कुआं तक नहीं है, न ही वाहनों के आने जाने का साधन है। अगरिया टोला मंगरहर के ज्यादातर लोग चुहाड़ के पानी से गला तर करते हैं। सवाल उठता है कि यहां की मिट्टी, हवा,पानी सब इतना प्रदूषित क्यों है. सोनभद्र और सिंगरौली क्षेत्र में 21500 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए 3,26200 टन कोयला प्रतिदिन जलाया जाता है.  चिमनियों का धुआं और धूल कण हवा में फैलते हैं और राख ज्यादातर रिहन्द जलाशय में जाता है। साथ ही एल्यूमीनियम, कार्बन, सीमेंट, कोयला खदानें और क्रशर मिलकर प्रदूषण फैलाते हैं, जिससे फ्लोराइड, निकल, सीसा, मरकरी, आर्सेनिक आदि भारी धातुओं का प्रदूषण हानिकारक ही नहीं, जानलेवा साबित हो रहा है। इससे पहले भी 2009 में पड़री में कमरी डांड़ में  23 मौतें, डाडीहरा में 20 11 में  17 मौतें, गढ़िया में 2017-18 में 24 मौतें और बेल्हात्थी में 30 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं।


स्थिति यह है कि इन दिनों मकरा गांव के लोगों के दिन की शुरुआत किसी न किसी अपने को श्मशान घाट पहुंचाने के साथ होती है. करीब साढ़े चार हज़ार की आबादी वाले  इस गांव में 40% से अधिक आबादी अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति की है. 16 टोलों और 8 किलोमीटर परीक्षेत्र में फैले मकरा गाँव की 65 वर्षीय लक्ष्मिनिया की बहू नीतू 26 वर्ष की मौत बुखार के बाद हो गई. इसके बाद उनकी नतिन कविता 12 माह, रिया 4 वर्ष, राजेंद्र 5 वर्ष ,आरती 2 वर्ष की मौत भी बुखार के बाद हो गई. एक महीना के अंदर परिवार के 5 लोगों की मौत हो जाने से पूरे परिवार में मातम छाया हुआ है. लक्ष्मिनिया बताती हैं कि पहले बुखार आया और फिर पीलिया हो जाने के कारण इन लोगों की मौत हुई है. इसी गांव के 35 वर्षीय हरिनारायण भी गांव में फैली इस बीमारी के कारण अपने 2 पुत्र और पत्नी को खो चुके हैं. सबसे पहले 26 वर्षीय पत्नी सुशीला की मौत हुई, उसके बाद दिव्यांशु 3 वर्ष और हिमांशु 15 माह की मौत भी 1 हफ्ते के अंदर हो गई, इसके अलावा हरिनारायण के बड़े भाई के एक लड़के की मौत भी इसी बीमारी के कारण हो गई. खेती-बारी और मजदूरी करके जीवन यापन करने वाले हरिनारायण की पूरी दुनिया ही इस बीमारी के कारण उजड़ गयी.

तमाम सरकारी दावों के बावजूद आज भी इन गाँवों में तालाबों, नदियों और जोहड़ों से पानी पीने की मजबूरी

बनवासी सेवा आश्रम लोगों को कर रहा है जागरूक

बनवासी सेवा आश्रम, मकरा क्षेत्र में लोगों को जागरूक करने में लगा है. उनके बीच जाकर उनकी बीमारी और समस्या का अध्ययन कर उसकी जानकारी प्रशासन को देने के साथ ही आश्रम के आरोग्य केंद्र के स्वस्थ्य कर्मी बीमारों की देख रेख में लगे हैं।गांव में जागरूकता समितियां बनायी जा रही हैं.


55 वर्षीय सावित्री के 4 वर्षीय नाती प्रीतम की मौत भी बुखार के कारण हुई. सावित्री बताती हैं कि 2 दिन से प्रीतम को बुखार आ रहा था, उसे दिखाने के लिए दुद्धी ले जा रहे थे कि रास्ते में ही उसकी मौत हो गई. उन्होंने बताया कि सरकारी हॉस्पिटल पर कोई भी डॉक्टर नहीं बैठता है, न ही दवा मिलती है. पहले तो स्वास्थ्य विभाग मौतों की बात पर पर्दा डालता रहा, लेकिन जब मीडिया में मौतों की खबर  आने लगी, तब जाकर स्वास्थ्य विभाग जागा और गांव में कैंप लगाकर लोगों का इलाज करने लगा.   मकरा गांव में बने सरकारी हॉस्पिटल पर एक भी डाक्टर की नियुक्ति नहीं थी, लेकिन अब चिकित्सक की तैनाती कर दी गयी है. स्वास्थ्य विभाग हर दिन कैंप करके लोगों का इलाज कर रहा है, आंगनबाड़ी केंद्रों पर पोषाहार का वितरण किया जा रहा है, गांव में विशेष प्रकार की मच्छरदानी का वितरण किया जा रहा है, दीवारों पर साफ सफाई के तमाम संदेश लिखे जा रहे हैं और झाड़ियों की सफाई की जा रही है, लेकिन मौतों का असली कारण किसी के जुबान पर नहीं आ रहा है।

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