Writers

स्वदेशी की भावना को व्यावहारिक रूप देना है

आज़ादी का हीरक जयंती वर्ष

आर्थिक क्षेत्र में पड़ोसियों या करीबियों द्वारा निर्मित वस्तुओं का उपयोग करना, उनमें कोई त्रुटि हो, तो दूर करके उन्हें सक्षम बनाना स्वदेशी की भावना को व्यावहारिक रूप देना है। यह कार्य मानवता के लिए स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त करने वाला है।

स्वदेशी भारत की अतिप्राचीन अवधारणा है। इसकी जड़ें प्रचीन ग्रन्थों और वैदिक युग के विचारों तक में मिलती हैं। सामान्यतः देशी विचारों, नीतियों, संसाधनों और स्रोतों के आधार पर वृहद जनकल्याण के उद्देश्य से देश में ही उत्पादन और देशवासियों द्वारा उसका उपयोग स्वदेशी की मूल भावना है।

भारत के पुनर्जागरण काल के पुरोधा स्वामी दयानन्द सरस्वती ने विदेशी वस्तुओं के उपयोग की प्रथा रद्द करते हुए स्वदेशी के महत्त्व और उसके बल पर, देशी निर्माण के सम्बन्ध में अपने प्रखर और सुदृढ़ विचार देशवासियों के समक्ष रखे। इस हेतु उन्होंने राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के साथ ही, भारतीय दर्शन की मूल भावना के अनुरूप स्वराज्य की कामना की. स्वराज्य का आधार देशी संसाधन हों और देशवासी ही उसके निर्माता हों, स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इस दिशा में जीवन भर कार्य किए। उनके सामाजिक-धार्मिक सुधार, सांस्कृतिक पुनरुत्थान, शिक्षा-प्रसार और देशी स्रोतों से ही भारत की आर्थिक समृद्धि सम्बन्धी विचार और कार्य उनकी स्वदेशी परिकल्पना से जुड़े हुए थे।

वर्ष 1905 में कर्जन द्वारा बंगाल के विभाजन के उपरान्त वर्ष 1905 और 1911 के मध्य बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, अरविन्द घोष और रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसे अग्रणी नेताओं के नेतृत्व में राष्ट्रव्यापी और प्रभावकारी स्वदेशी आन्दोलन संचालित हुआ। इस आन्दोलन का उद्देश्य देशवासियों में स्वदेशी की भावना जागृत करना था। राष्ट्रवादी विचारों के आधार पर ही देश में वस्तुओं के उत्पादन-निर्माण और उनके उपयोग हेतु भारतीयों को तैयार करना था, ताकि विदेशी वस्तुओं पर निर्भरता को कम से कम किया जा सके, साथ ही आत्म-निर्भरता की ओर बढ़ते हुए देश की स्वाधीनता का मार्ग भी प्रशस्त हो सके।

स्वदेशी की भारतीय अवधारणा के अनुरूप राष्ट्रीय पुनर्जागरण काल के महानतम भारतीयों, विशेषकर स्वामी दयानन्द सरस्वती और बंगाल-विभाजन के उपरान्त अग्रिम पंक्ति के राष्ट्रवादियों के नेतृत्व में हुए स्वदेशी आन्दोलन ने इसके प्रति जन-जागरण के लिए अति महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इस सम्बन्ध में आगे के लिए मार्ग भी प्रशस्त किया।

ब्रिटिश दासता से देश की स्वाधीनता के लिए अहिंसक संघर्ष का नेतृत्व करते हुए महात्मा गाँधी ने उसी मार्ग पर आगे बढ़ते हुए देशकाल और परिस्थितियों की माँग के अनुसार स्वदेशी अवधारणा को जो आयाम दिया, वह अभूतपूर्व तथा ऐतिहासिक था। स्वदेशी की भारतीय अवधारणा की परिधि में ही ठहरते हुए, उसी मूल भावना के अनुसार उन्होंने कार्य को व्यापक स्तर पर आगे बढ़ाया, जिससे विशाल पैमाने पर देशवासियों का स्वदेशी की महत्ता से सैकड़ों वर्षों बाद पुनः परिचय हुआ। देश की आत्मनिर्भरता, समृद्धि और सुदृढ़ता में स्वदेशी की भूमिका और योगदान का प्रकटीकरण हुआ। इसलिए देश की स्वाधीनता के हीरक जयन्ती वर्ष में, आज महात्मा गाँधी के स्वदेशी-सम्बन्धी विचारों और कार्यों को जानना-समझना और तदनुसार आगे बढ़ना निस्सन्देह स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव को सार्थक करना होगा।

स्वदेशी की भारतीय अवधारणा की मूल भावना को अक्षुण्ण रखते हुए, समय और परिस्थितियों की माँग के अनुसार वांछित परिमार्जन करते हुए, वृहद परिप्रेक्ष्य में इसे अपने शब्दों में व्याख्यायित करते हुए महात्मा गाँधी ने कहा कि स्वदेशी वह भावना है, जो हमें दूर की अपेक्षा समीपवर्ती का उपयोग और साथ ही, सेवा करना सिखाती है (मंगल प्रभात, पृष्ठ 59)…यह पूर्वजों से विरासत के रूप में प्राप्त धर्म-पालन भी है। इसी प्रकार, राजनीति के क्षेत्र में स्थानीय संस्थाओं के दोषों को सुधार कर सेवा द्वारा उनका सदुपयोग करना चाहिए। आर्थिक क्षेत्र में पड़ोसियों या करीबियों द्वारा निर्मित वस्तुओं का उपयोग करना, उनमें कोई त्रुटि हो, तो दूर करके उन्हें सक्षम बनाना स्वदेशी भावना को व्यावहारिक रूप देना है। यह कार्य मानवता के लिए स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त करने वाला है।

सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों की मानवीय गतिविधियों को समेटती महात्मा गाँधी की स्वदेशी-सम्बन्धी उक्त व्याख्या उनके क्रान्तिकारी व विकासोन्मुख विचारों की द्योतक थी। निस्सन्देह, यह देशी संसाधनों व देशवासियों के श्रम के बल पर ही भारत को आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाने का मार्ग था। देशवासियों को लाचारी व परनिर्भरता की स्थिति से बाहर लाकर उनके अपने कौशल, श्रम शक्ति और मूल्यपरक उद्यमों के माध्यम से परस्पर सहयोग और सामंजस्य के वातावरण में, सामर्थ्य के भीतर सन्तोषमय जीवन-निर्वहन की ओर अग्रसर करना था। यही वास्तव में बढ़ते क्रम में राष्ट्रीय स्तर तक जाने और अन्ततः भारत की मुक्ति एवं समृद्धि का मार्ग था।

महात्मा गाँधी के नेतृत्व में 1 अगस्त, 1920 को उपनिवेशवादी शासन के विरुद्ध प्रारम्भ हुई प्रथम जन कार्यवाही; असहयोग आन्दोलन, स्वदेशी जिसका अभिन्न भाग था, इस दिशा में मील के पत्थर की तरह था। विदेशी वस्त्रों, वस्तुओं, न्यायालयों, शिक्षालयों आदि का बहिष्कार, अँग्रेजी सत्ता द्वारा दिए गए स्मृति चिह्नों और उपाधियों की वापसी, स्वदेशी वस्त्रों का निर्माण, देशी वस्तुओं का उपयोग. शैक्षिक संस्थाओं और विद्यापीठों की स्थापना सहित अन्य कार्यक्रमों ने इस दिशा में निस्सन्देह, क्रान्ति का शंखनाद किया। कांग्रेस सेवा दल के उस समय के लगभग सवा दो लाख कार्यकर्ता भी पूर्ण समर्पण के साथ गाँधी-विचार और कार्य योजना के अनुसार स्वदेशी कार्यक्रम को आगे बढ़ाने में सक्रिय रहे थे।

स्वदेशी के प्रतीक खादी कार्यक्रम के अन्तर्गत शुरू हुए कुटीर उद्योगों के जरिये विकास का सन्देश देश के गाँव-गाँव, घर-घर पहुँचा। बड़े पैमाने पर लोगों ने इसे अपनाया। गुजरात विद्यापीठ, काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ आदि सहित अनेक शैक्षणिक संस्थाओं की उसी समय स्थापना हुई। स्वदेशी सम्बन्धी यह क्रम देश की स्वाधीनता तक हुए सभी आन्दोलनों, सत्याग्रहों के साथ अभिन्न बना रहा। इसने अपनी मूल भावना के अनुरूप आगे बढ़ते हुए इतिहास रचा। स्वदेशी-विचार तथा महात्मा गाँधी के नेतृत्व व मार्गदर्शन में हुए कार्यों ने स्वाधीनता के बाद पुनर्निर्माण की ओर बढ़ते भारत को भी प्रभावित किया, लेकिन अपेक्षानुसार वांछित परिणामों की अभी भी प्रतीक्षा है।

स्वदेशी सम्बन्धी महात्मा गाँधी के विचारों और कार्यों से देशवासियों, विशेषकर युवा-वर्ग का भारत की स्वाधीनता के हीरक जयन्ती वर्ष में परिचय परमावश्यक है। युवा वर्ग को स्वदेशी की अवधारणा और महात्मा गाँधी द्वारा दिखाए गए मार्ग आगे बढ़ना चाहिए. अधिकाधिक राष्ट्रीय संसाधनों, स्रोतों, मूल्यों और शक्ति के जरिये भारत की सम्पन्नता व सुरक्षा हेतु समर्पण के साथ, वैश्वीकरण के इस काल में समावेशी भावना रखते हुए यदि युवा वर्ग आगे बढ़े, तो भारत की स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मनाना सार्थक होगा।

-डॉ. रवीन्द्र कुमार

Sarvodaya Jagat

Share
Published by
Sarvodaya Jagat

Recent Posts

सर्वोदय जगत (16-31 अक्टूबर 2024)

Click here to Download Digital Copy of Sarvodaya Jagat

2 months ago

क्या इस साजिश में महादेव विद्रोही भी शामिल हैं?

इस सवाल का जवाब तलाशने के पहले राजघाट परिसर, वाराणसी के जमीन कब्जे के संदर्भ…

2 months ago

बनारस में अब सर्व सेवा संघ के मुख्य भवनों को ध्वस्त करने का खतरा

पिछले कुछ महीनों में बहुत तेजी से घटे घटनाक्रम के दौरान जहां सर्व सेवा संघ…

1 year ago

विकास के लिए शराबबंदी जरूरी शर्त

जनमन आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था।…

2 years ago

डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक नवजागरण के अग्रदूत थे

साहिबगंज में मनायी गयी 132 वीं जयंती जिला लोक समिति एवं जिला सर्वोदय मंडल कार्यालय…

2 years ago

सर्व सेवा संघ मुख्यालय में मनाई गई ज्योति बा फुले जयंती

कस्तूरबा को भी किया गया नमन सर्वोदय समाज के संयोजक प्रो सोमनाथ रोडे ने कहा…

2 years ago

This website uses cookies.