अक्रोध- तुम सुन चुके हो कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि हत्या न करना और जो कोई हत्या करेगा, वह न्याय-सभा में दण्ड के योग्य होगा। किन्तु मैं तुमसे कहता हूं कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह भी न्याय-सभा में दण्ड के योग्य होगा, इसलिए यदि तू अपनी भेंट, वेदी पर लाये और वहां तुझे स्मरण हो आये कि मैं अपने भाई का कुछ अपराधी हूं, तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे और जाकर पहले अपने भाई से मेल-मिलाप कर; तब आकर अपनी भेंट चढ़ा। तू अपने विरोधी के साथ अदालत के रास्ते में जाते-जाते ही जल्दी से समझौता कर ले।
-मत्ती 5.21-25
पवित्रता- तुम सुन चुके हो कि प्राचीनकाल में ऐसा कहा गया था कि व्यभिचार न करना, परन्तु मैं तुमसे कहता हूं कि जो किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले, वह मन में उससे व्यभिचार कर चुका। यदि तेरी दाहिनी आंख तुझसे दोष कराये, तो उसे निकालकर बाहर फेंक दे, यदि तेरा दाहिना हाथ तुझसे दोष कराये, तो उसे काटकर फेंक दे, क्योंकि तेरे लिए यही अच्छा है कि तेरे अवयवों में से एक का नाश हो जाय और तेरा सारा शरीर नरक में न डाला जाय। -मत्ती 5.27-30
सत्य- तुम सुन चुके हो कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि झूठी शपथ न खाना, बल्कि प्रभु के लिए अपनी शपथ को पूरी करना, परंतु मैं तुमसे कहता हूं कि कभी शपथ न खाना, अपितु तुम्हारी बात ‘हां’ या ‘नहीं’ में हो, क्योंकि इससे अधिक जो होता है, उसके मूल में बुराई होती है।
-मत्ती 5.33-34, 37
अप्रतिकार- तुम सुन चुके हो, कहा गया था कि आंख के बदले आंख और दांत के बदले दांत, परंतु मैं तुमसे कहता हूं कि बुरे का प्रतिकार न करना। जो कोई तेरे दाहिनी गाल पर थप्पड़ मारे, उसके सामने तुम अपना बायां गाल भी कर देना और यदि कोई तुझ पर नालिश करके तेरा कुरता लेना चाहे, तो उसे अंगरखा भी ले लेने देना और जो कोई तुझे जबरन एक कोस ले जाय, तो उसके साथ दो कोस तक चले जाना। जो कोई तुझसे मांगे, उसे देना; और जो तुझसे उधार लेना चाहे, उससे मुंह न मोड़ना। -मत्ती 5.38-42
नैष्ठिक प्रेम- तुम सुन चुके हो कि प्राचीनकाल में ऐसा कहा गया था कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना और वैरी से वैर, परन्तु मैं तुमसे कहता हूं कि अपने वैरियों से प्रेम रखो, जो तुम्हें अभिशाप देते हैं, उन्हें आशीर्वाद दो, जो तुमसे घृणा करते हैं, उनके प्रति उपकार करो, जो तुम्हें धिक्कारते और सताते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो, इससे तुम परमपिता की संतान ठहरोगे, क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है और न्यायी तथा अन्यायी दोनों पर समान रूप से पानी बरसाता है, क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखने वालों से प्रेम रखो तो इसमें तुम्हारी कौन सी विशेषता रही? तुम यदि केवल अपने भाइयों को ही नमस्कार करो तो तुमने दूसरों से अधिक क्या किया? क्या भठियारे भी ऐसा नहीं करते? इसलिए तुम पूर्ण बनो, जैसा कि तुम्हारा परमपिता पूर्ण है। -मत्ती 5.43-48
दान- सावधान रहो। तुम मनुष्यों को दिखाने के लिए अपने दान के काम न करो, नहीं तो अपने परमपिता से कुछ भी फल न पाओगे, इसलिए जब दान करो तो अपने आगे तुरही न बजवाओ, जैसा ढोंगी धर्म-स्थलों में और सड़कों पर करते हैं, ताकि लोग उनकी बड़ाई करें। मैं तुमसे सच कहता हूं कि वे अपना फल पा चुके। जब दान करो तो जो दाहिना हाथ करता है, उसे बायां हाथ न जानने पाये, ताकि दान गुप्त रहे, तब तुम्हारा पिता, जो अन्तर्यामी है, तुम्हें प्रतिफल देगा। -मत्ती 6.1-4
प्रार्थना- जब तुम प्रार्थना करो, तो ढोंगियों के समान न करो, क्योंकि लोगों को दिखाने के लिए धर्म-स्थलों में और सड़कों की नुक्कड़ों पर खड़े होकर प्रार्थना करना उन्हें पसंद आता है। मैं तुमसे सच कहता हूं कि वे अपना फल पा चुके, परन्तु जब प्रार्थना करो तो अपनी कोठरी में जाओ और द्वार बंद करके अपने एकांतवासी पिता से प्रार्थना करो, तब तुम्हारा अंन्तर्यामी पिता तुम्हें प्रतिफल देगा। प्रार्थना करते समय विधर्मियों की तरह बार-बार पुनरुक्तियां न करो, क्योंकि वे समझते हैं कि उनके बहुत बोलने से उनकी सुनी जायगी। तुम उनकी तरह न बनो, क्योंकि तुम्हारा पिता तुम्हारे मांगने से पूर्व ही जानता है कि तुम्हारी क्या-क्या आवश्यकताएं हैं। तुम इस रीति से प्रार्थना किया करो : ‘हे हमारे पिता, जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्र माना जाय। तेरा राज्य आये, तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसी पृथ्वी पर भी हो। हमारी दिनभर की रोटी आज हमें दे और जिस प्रकार हमने अपने अपराधियों को माफ किया है, वैसे ही तू भी हमारे अपराधों को माफ कर और हमें परीक्षा में मत डाल। हमें बुराई से बचा; क्योंकि राज्य, सामर्थ्य और महिमा सदा तेरे ही हैं।’’ आमीन।
यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा करोगे तो तुम्हारा परमपिता भी तुम्हें क्षमा करेगा। पर यदि तुम मनुष्यों के अपराध क्षमा नहीं करोगे, तो तुम्हारा परमपिता भी तुम्हारे अपराध क्षमा नहीं करेगा।
-मत्ती 6.5-15
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