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साबरमती आश्रम में कोई भी बदलाव गांधीजन सहन नहीं करेंगे: उत्तराखंड के गांधीजनों की बैठक

विश्व धरोहर व महात्मा गांधी की प्रारंभिक कर्मस्थली रहे साबरमती आश्रम को पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित करने के नाम पर उस पर सरकारी क़ब्जे का उत्तराखंड के गांधी विचार से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता विरोध करते हैं तथा सरकार से मांग करते हैं कि साबरमती आश्रम के स्वरूप में किसी तरह की छेड़छाड़ या उसमें बदलाव की कोशिश न करें। सरकार के इस प्रयास का पूरे देश के गांधीजन विरोध कर रहे हैं, इस क्रम में पूरे देश में विरोधस्वरूप धरना, प्रदर्शन और पदयात्राओं का आयोजन हो रहा है। इसी उद्देश्य से गांधीजनों ने सेवाग्राम से साबरमती आश्रम तक एक संदेश यात्रा निकाली.

उल्लेखनीय है कि केन्द्र सरकार ने 55 एकड़ के  साबरमती आश्रम परिसर को ‘विश्वस्तरीय पर्यटक आकर्षण’ केंद्र बनाने के लिए 1,246 करोड़ रुपये की विवादास्पद योजना को मंजूरी दी है. गांधीजनों को यह आशंका है  कि सरकार की इस योजना के लागू होने से स्वतंत्रता आंदोलन के मुख्य केंद्रों में से एक रहा यह आश्रम और उसके आस पास का इलाका हमेशा के लिए बदल जाएगा. इस गांधी आश्रम को मूलरूप से सत्याग्रह आश्रम कहा जाता था. महात्मा गांधी ने अपने जीवन के 15 वर्ष, 1917 और 1930 के बीच यहां बिताए और  फिर यहीं से मार्च, 1930 में दांडी यात्रा का ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह आरम्भ हुआ।

इस आश्रम में हृदयकुंज के अलावा, पांच एकड़ के मुख्य आश्रम क्षेत्र में एक प्रार्थना क्षेत्र शामिल है, एक कुटी विनोबा भावे और गांधी जी की शिष्य मीराबेन के निवास के रूप में जानी जाती है. इसके अलावा मगन निवास, जो महात्मा गांधी के भतीजे और शिष्य मगनलाल गांधी का निवास स्थान है। हृदय कुंज के आसपास ऐतिहासिक महत्व की अन्य इमारतें, नंदिनी  (आश्रम गेस्ट हाउस ) उद्योग मंदिर, सोमनाथ छात्रालय, वास्तुकार चार्ल्स कोरिया द्वारा बाद में जोड़ा गया  संग्रहालय, पुस्तकालय और प्रदर्शनी क्षेत्र हैं।

सरकार इस परिसर के कुछ भवनों को तोड़कर शापिंग माल और पर्यटन गतिविधियों के लिए संरचनाएं बनाना चाहती है, जो गांधी विचार दर्शन व इस विश्व धरोहर की मूल भावना के विरुद्ध है। देश के गांधीजन इसे कभी भी सहन नहीं करेंगे।
                                                                         – इस्लाम हुसैन

Co Editor Sarvodaya Jagat

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