चांडिल बांध झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में सुवर्ण रेखा नदी के ऊपर बनाया गया है। यह बांध 1993 में बनकर तैयार हुआ और तब से 116 गांवों के 15 हज़ार परिवार विस्थापन का दंश झेल रहे हैं।
बेरोजगार युवा विस्थापित संगठन की ओर से रोजगार की मांग अब जोर पकड़ने लगी है। ये युवा उन परिवारों की दूसरी पीढ़ी से हैं, जो चांडिल बांध के बनने के चलते विस्थापित हुए थे। चांडिल बांध झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में सुवर्ण रेखा नदी के ऊपर बनाया गया है। यह बांध 1993 में बनकर तैयार हुआ और तब से 116 गांवों के 15 हज़ार परिवार विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। जब 20 वीं शताब्दी के आठवें दशक में इस बांध के निर्माण की घोषणा की जा रही थी, तब कहा गया था कि हर परिवार से एक व्यक्ति को नौकरी दी जाएगी, पर यह दावा खोखला साबित हुआ।
ईचा बांध, गालूडीह बराज, चलियामा बराज और नहर निर्माण के चलते कुल मिलाकर सुवर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना से लगभग 25 हज़ार परिवार विस्थापित हो रहे हैं और नौकरी मिली सिर्फ ढाई हजार लोगों को। जिन विस्थापितों को नौकरी मिली थी, अब वे धीरे-धीरे रिटायर होने लगे हैं। विगत वर्षों में तो नौकरी की संभावनाएँ अत्यंत सीमित हो गई हैं। बैंक, एलआईसी, रेलवे, प्रशासन जैसे क्षेत्रों में रोजगार के अवसर लगभग समाप्त हैं। आसपास के इलाके में जो प्रदूषणकारी स्पंज आयरन के कारखाने लगे थे, वे भी बंद हो चुके हैं; जमीन तो पहले ही हाथ से निकल गयी थी। अब युवाओं के सामने अनिश्चित और अंधकारमय भविष्य खड़ा है, इसलिए विस्थापित युवा उद्वेलित हो उठे हैं और संघर्ष के लिए कमर कस रहे हैं, क्योंकि अब कोई उपाय नहीं है।
बेरोजगार युवा विस्थापित संगठन के अध्यक्ष जगदीश सिंह सरदार से जब पूछा गया कि आप नौकरी चाहते हैं या रोजगार, तो उनका जवाब था कि हमें नौकरी और रोजगार दोनों चाहिए। जगदीश सिंह ने स्पष्ट करते हुए कहा कि नौकरी तो सिर्फ उन्हें ही मिलेगी, जो उसकी योग्यता रखते हैं, लेकिन जीने-खाने के लिए रोजगार तो सबको चाहिए। हमारी जमीनें चली गयीं। जमीन तो ऐसा संसाधन है, जिससे पीढ़ियों तक परवरिश हो सकती है। सरकार ने वादा किया था कि हर परिवार से एक को नौकरी मिलेगी, कुछ लोगों को मिली भी, लेकिन नौकरी तो एक पीढ़ी का पुनर्वास है। हमें तो ऐसा रोजगार चाहिए, जिससे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य भी सुरक्षित हो सके.
अब सवाल यह है कि 15 हज़ार विस्थापित परिवारों की वर्तमान पीढ़ी को जमीन खोने के बाद किस प्रकार रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है? विस्थापितों के पुनर्वास के लिए विगत 20 वर्षों से सक्रिय विस्थापित मुक्ति वाहिनी के श्यामल मार्डी ने कहा कि हम लोगों का एक नारा है- माछ, गाछ और चास से होगा विकास। चांडिल जलाशय 40 हज़ार एकड़ में फैला हुआ है, जहां मछली पालने की अपार संभावनाएं हैं। इस इलाके में सब्जी की अच्छी खेती होती है। दुकानों का निर्माण करके भी सैंकड़ों युवाओं को राजगार देना संभव है।
बेरोजगार युवा विस्थापित संगठन ने 10 अक्टूबर को चांडिल स्थित निर्मल भवन में आयोजित अपने सम्मेलन में प्रस्ताव पारित किया है कि बांध का पानी जिन कंपनियों द्वारा उपयोग में लाया जा रहा है, वहां विस्थापितों को नौकरी में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। एक और प्रस्ताव भी पारित किया गया कि कंपनियों से जल कर की तत्काल वसूली हो और इस रकम को पुनर्वास पर खर्च किया जाए। टाटा स्टील सहित कई कंपनियों के ऊपर जलकर के रूप में 1000 करोड़ से भी ज्यादा की राशि बकाया है।
लागत और लाभ के अनुपात में नुकसान होने के बावजूद सुवर्णरेखा परियोजना को इस वजह से स्वीकृति मिली थी कि इससे आदिवासी बहुल एवं पिछड़े इलाके में सिंचाई के द्वारा खेती में विकास होगा। चांडिल बांध को बने लगभग 30 वर्ष पूरे होने को हैं, पर सिंचाई के लिए इसका लाभ नगण्य ही माना जाएगा। नहर- निर्माण अधूरा होने के चलते संचित पानी का एकमात्र उपयोग औद्योगिक एवं नागरिक आपूर्ति के लिए किया जा रहा है। टाटा स्टील की अनुषांगिक कंपनी द्वारा पानी बेचा जा रहा है, लेकिन जब जलकर भुगतान की बात आती है तो फिर तटवर्ती अधिकार का बहाना बना दिया जाता है। यह बहुत ही विचित्र बात है कि जिस योजना का निर्माण जनता के पैसे से किया गया है, उसका लाभ निजी कंपनियां उठा रही हैं।
लेकिन क्षेत्र के युवा विस्थापित पानी पर अपना हक जताते हुए अब कंपनियों से रोजगार का दावा करने लगे हैं.
-अरविंद अंजुम
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