2 अक्तूबर से 26 नवंबर 2022 (गांधी जयंती से संविधान दिवस) तक वर्धा में नागरिकों को संविधान समझाने के प्रयास के तौर पर 25 से 30 सामाजिक परिवर्तनकारी संगठनों तथा संस्थाओं के भारतीय लोकशाही मोर्चा द्वारा लोकतंत्र को सुदृढ करने हेतु संवैधानिक मूल्यों को सार्वजनिक जीवन में स्थापित करने के उद्देश्य से निरंतर चलने वाली पदयात्राओं का आयोजन किया गया है. पांच-पांच दिन की कुल दस पदयात्राएं इस अभियान के तहत होने वाली हैं.
एक पदयात्रा के समापन के बाद दूसरी पदयात्रा शुरू होती है. अभी तक पहला चरण पूरा चुका है और दूसरे चरण की पदयात्रा चल रही है. तीसरा चरण 14 अक्तूबर से शुरू होगा. सभी पदयात्राएं सेवाग्राम आश्रम, नयी तालिम परिसर से शुरू होकर जिले की अलग-अलग तहसीलों में 75 किलोमीटर चलेंगी. कुल 50 दिनों में लगभग 750 किलोमीटर का फासला तय होगा. दो माह में 160 से 175 गांवों से संपर्क होगा. दस पदयात्राओं के दस स्वतंत्र संयोजक व सहभागी साथी हैं. हर पदयात्रा में पूरे समय रहने वाले 10 से 12 साथी होते हैं, अन्य साथी समय व आवश्यकता के अनुसार सहभागी होते हैं. इन पदयात्राओं के सुव्यवस्थित संचालन के लिए एक प्रमुख समन्वयक तथा दो सहसंयोजकों के साथ एक संयोजन समिति का गठन किया गया है..
वर्तमान में सरकारों द्वारा देश भर में जिस तरह से लोकतान्त्रिक संस्थाओं को नियंत्रित करके लोकशाही में निहित समता, बंधुत्व, स्वतंत्रता आदि की भावनाओं को कम करने की कोशिश हो रही है. मंदिर-मस्जिद और भगवान-अल्लाह के नाम पर सांप्रदायिकता व कठमुल्लेपन को पूरे देश में बढ़ावा दिया जा रहा है, आम आदमी खौफ में है. देश के युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है, दैनंदिन आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं, शिक्षा का निजीकरण हो रहा है, महिलाओं के लिए असुरक्षित वातावरण बना हुआ है, देश का आम आदमी दिनोंदिन आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है और दूसरी तरफ केंद्र सरकार की नीतियों से देश के एक उद्योगपति की संपत्ति बेतहाशा बढ़ रही है. इस तरह सरकार के असमान विकास के रवैये से देश में समुचित संवैधानिक विकास कि संकल्पना खंडित हो रही है.
जनता को महसूस हो रहा है कि लोकतंत्र को बनाये रखने के लिए संविधान को बचाने की जरूरत है. उसके लिए संविधान को पढ़ना, समझना जरूरी है. आज लोगों को अपना नागरिक धर्म निभाने की आवश्यकता है. इसके लिए नागरिकों के अधिकार व कर्तव्यों को समझना जरूरी है. ये बातें पदयात्राओं के दरम्यान सभाओं में हो रही हैं. लोगो की परेशानियाँ समझने की कोशिश भी हो रही है. इस माध्यम से नागरिकों की आवाज बुलंद हो और उसके असर से सरकारें संवैधानिक तौर तरीकों पर अमल करने के लिए बाध्य हों, इसकी जरूरत है.
-अतुल शर्मा
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