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यह समझना ज़्यादा ज़रूरी कि किसको सत्ता में नहीं आना चाहिए

अजमेर घोषणा-पत्र जारी

जिस विचारधारा का देश के इतिहास, देश के राष्ट्रीय गीत, देश के झंडे, देश के संविधान और देश की बहुलतावादी संस्कृति पर विश्वास नहीं है, उसे सत्ता में रहने का भी हक़ नहीं है।

25-26 फरवरी को अजमेर में जुटे देशभर के गांधीजनों के सम्मेलन में देश की वर्तमान अवस्था को आजादी के समय से भी ख़राब बताते हुए देश के बहुसांस्कृतिक व संवैधानिक ढांचे को बचाने के लिए करो या मरो की तर्ज पर सत्याग्रह और संघर्ष करने पर जोर दिया गया। सम्मेलन में देश के 20 राज्यों से आये 200 से अधिक गांधीजनों ने भाग लिया और देश की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक दशा संविधान के अनुकूल बनाने के लिए गांधी विचार के आधार पर एक प्रस्ताव पारित किया, जिसे अजमेर घोषणा पत्र का नाम दिया गया है।

देश की मौजूदा व्यवस्था पर चिंता प्रकट करते हुए घोषणापत्र में कहा गया है कि देश में साम्प्रदायिकता का माहौल एक विशेष राजनैतिक विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए योजनापूर्वक बनाया गया है, ताकि वोटों का ध्रुवीकरण करके राजनैतिक लाभ मिलता रहे। यह देश की संवैधानिक व्यवस्था के लिए आत्मघाती है। यह स्वतंत्रता आंदोलन की भावना और संविधान के विपरीत ले जाने का कुत्सित प्रयास है। यह वही विचारधारा है, जिसने देश का विभाजन कराया और महात्मा गांधी की हत्या करायी। अब यही देश का सामूहिक आत्मबल तोड़ रही है।


देश को आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक दृष्टि से कमजोर किया जा रहा है, असहमति को कुचला जा रहा है। जिस विचारधारा का देश के इतिहास, देश के राष्ट्रीय गीत, देश के झंडे, देश के संविधान और देश की बहुलतावादी संस्कृति पर विश्वास नहीं है, उसे सत्ता में रहने का भी हक़ नहीं है।

देश की पूंजी और संसाधन कुछ पूंजीपतियों के साथ में केन्द्रित करके देश को गहरे आर्थिक संकट में डाल दिया गया है, जिसका निदान ग्रामस्वराज्य की अवधारणा पर मिश्रित अर्थव्यवस्था को बढ़ाकर किया जा सकता है। पूंजी की एकाधिकारवादी व्यवस्था से बेरोजगारी और असमानता बढ़ रही है। देश के मौजूदा नेतृत्व पर प्रहार करते हुए घोषणापत्र में कहा गया है कि प्रधानमंत्री का ‘सबका साथ सबका विकास’ देश में कहीं नज़र नहीं आ रहा है।

महात्मा गांधी ने कहा था कि देश की आजादी का मतलब सत्ता में बैठे मुट्ठी भर लोगों की मनमर्जी नहीं होती, देश की सारी शक्ति आम जन में निहित है, इसलिए सत्ता की ज्यादतियों का प्रतिकार भी जनता की तरफ से हो रहा है, गांधीजन इसके लिए पूरे देश में जनता के साथ संवाद और सम्पर्क करेंगे। गांधीवादी देश की बिगड़ती दशा को एक चुनौती और मोर्चे के रूप में देख रहे हैं, इसलिए हर गांधीवादी सत्याग्रही और सैनिक है। देश में जहां भी चुनाव होंगे, गांधीजन देश की राजनीति को दिशा देने के लिए एकजुट होकर काम करेंगे। अजमेर घोषणा पत्र में कहा गया है कि मौजूदा दौर में सत्ता में कौन रहे से ज्यादा ज्यादा ज़रूरी यह हो गया है कि सत्ता में कौन न रहे। इसलिए देश में साम्प्रदायिक ताकतों और उनके गठबंधन को हटाया जाना बहुत ज़रूरी है। गांधीजन देशभर में गांधीवादी तरीके से यह काम करेंगे। सम्मेलन में देश की शीर्ष गांधीवादी संस्थाओं; सर्व सेवा संघ, गांधी शान्ति प्रतिष्ठान, सेवाग्राम आश्रम, गांधी स्मारक निधि, समग्र सर्वोदय संस्थान और इनसे सम्बद्ध गांधीजनों ने भाग लिया।

अजमेर घोषणा पत्र जारी होने तथा राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी द्वारा इसे प्रस्तुत किये जाने के साथ ही दो दिवसीय सम्मेलन का समापन हो गया। व्यापक विचार विमर्श के दौरान 60 से अधिक वरिष्ठ और युवा गांधीवादियों ने सम्मेलन में अपने विचार प्रकट किए।

गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचंद्र राही ने कहा कि इस समय देश की एकता खतरे में है, गांधीजनों को गांधीवादी तरीके से इसका प्रतिकार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि वे गुलाम भारत में पैदा हुए, लेकिन मौजूदा दौर की गुलामी में मरना पसंद नहीं करेंगे।
गांधी शान्ति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने कहा कि वर्तमान सत्ता की फासिस्ट नीतियों से देश में संकट गहराता जा रहा है। सवाल केवल साम्प्रदायिकता का नहीं, बल्कि संवैधानिक और बहुसांस्कृतिक मूल्यों के ह्रास का है। इस स्थिति का मुकाबला गांधी विचार से ही किया जा सकता है। उन्होंने राजस्थान सरकार द्वारा राज्य में शांति और अहिंसा विभाग बनाकर उसके माध्यम से प्रदेश के 50 हजार युवाओं को गांधीवादी शान्ति स्वयंसेवक बनाने के प्रयास की सराहना की और कहा कि इससे समाज में गांधीवादी मूल्यों के आधार पर अन्याय का प्रतिकार करने में मदद मिलेगी।

सेवाग्राम आश्रम प्रतिष्ठान की अध्यक्ष आशा बोथरा ने गांधीजनों से गांधी मूल्यों के आधार पर सामाजिक एकता और सद्भावना के लिए काम करने का आवाहन किया। उन्होंने कहा कि गांधी के विचारों में गाय आर्थिकी की रीढ़ है, लेकिन आज गाय की आड़ लेकर नफ़रत फैलाई जा रही है।

सम्मेलन में राजस्थान समग्र सेवा संघ के अध्यक्ष सवाई सिंह, डॉ विश्वजीत, अशोक दीवान, इस्लाम हुसैन, अशोक भारत, मनोज, सत्यप्रकाश भारत, फैजल खान, विनोद रंजन, जागृति राही, मनीष शर्मा आदि वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे और साम्प्रदायिक स्थिति से निपटने के लिए काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया। वक्ताओं ने कहा कि गांधीजनों को देश के संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने के लिए अधिक सक्रिय होने की जरूरत है। सम्मेलन को राजस्थान सरकार के शांति व अहिंसा विभाग के निदेशक ने भी संबोधित किया। उन्होंने गांधी विचार से युवाओं को जोड़ने पर बल दिया। राजस्थान सरकार द्वारा नवनिर्मित गांधी स्मृति स्थल में गांधीजनों के आयोजन का यह पहला अवसर था।

-इस्लाम हुसैन

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