1942 में जब बापू को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस आयी, तो बापू बोले, पहले मैं कस्तूरबा से बात करके आता हूं. बापू ने बा से कहा, ‘पुलिस मुझे पकड़ने आयी है, कहां ले जाएगी पता नहीं, कब छोड़ेगी ये भी पता नहीं, इसके बाद अपन मिल भी नहीं सकते हैं। तय तुमको करना है, तुम मेरे साथ आ सकती हो, लेकिन मेरे बाद आंदोलन को भी जारी रखना है, क्या कहती हो। ‘बा ने जवाब दिया,’हम आगे मिलें न मिलें, लेकिन आंदोलन चलना जरूरी है, आप जाइए।’
बा ने बापू की गोद में ही प्राण छोड़ा। ये है सगुण भक्ति का समर्पण।
अंग्रेजों की नजरबंदी में बा अस्वस्थ थीं, बापू भी वहीं बंद थे. बा ने बापू को कहला भेजा कि आज मेरे पास ही रहना,कहीं और नहीं जाना नहीं. यह 22 फरवरी 1944 का दिन था. बा ने बापू की गोद में ही प्राण छोड़ा। ये है सगुण भक्ति का समर्पण। नजरबंदी में भी बा तुलसी के पौधे की पूजा करती थीं, बा के बाद पूजा का सिलसिला बापू ने जारी रखा, बा के जाने के छः महीने बाद बापू जब जेल से रिहा हुए, तो अपने साथ बा की मिट्टी और तुलसी का वह पौधा भी सेवाग्राम आश्रम अपने साथ ले आए। दोनों का एक-दूसरे के प्रति यह समर्पण अद्वितीय है।
-झनखना जोशी
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