बाबा को भिक्षा मांगने की आदत नहीं। बाबा तो सभी को दीक्षा देने आया है। काहे की दीक्षा! प्रेम जीवन की दीक्षा। सारा गांव एक परिवार बनकर रहे। जमीन सबके लिए है, उसको सबके पास पहुंचाए।
बाबा अभी तक भूमिदान लेते थे, लेकिन अब संपत्तिदान भी लेने लगे। संपत्ति में भी पैसा नहीं। पैसा तो दाता के पास ही रहेगा। दाता अपनी संपत्ति का एक हिस्सा हर साल समाज को देगा। बाबा केवल वचन-पत्र ही लेते थे। उसका विनियोग दाता ही करेगा। बाबा कहते थे कि हमें आपका पैसा ही नहीं चाहिए, टैलेंट और अक्ल भी चाहिए। बाबा तो मुक्त रहना चाहता है। अपनी-अपनी अक्ल से यह दान किसी पवित्र काम में खर्च हो। भूमिदान एक बार देना पड़ता है, लेकिन संपत्ति में हिस्सा हर साल देना पड़ेगा। यह संपत्तिदान विनोद में नहीं हो सकता। उसके लिए जीवन को निष्ठावान बनाने का काम होना चाहिए। अंदर की निष्ठा जागनी चाहिए। छठा हिस्सा देने का मतलब है, जीवन के लिए एक निश्चय करके दान करना।
देने को कर्तव्य मानना चाहिए। शरीर और आत्मा के बीच या आज की स्थिति या प्राप्तव्य स्थिति के बीच धर्म एक पुल का काम करता है। पुल नदी के एक किनारे नहीं, बल्कि दोनों किनारों पर खड़ा होता है। भोग इस पार है, तो मोक्ष उस पार, पर धर्म दोनों पार है। पंथ और मुकाम में जो फर्क और संबंध है, वही धर्म और मोक्ष में है। संपत्ति दान यज्ञ मोक्ष का विचार नहीं, धर्म का विचार है। निरपेक्ष विचार में न तो संपत्ति रहेगी, न दान। और शायद यज्ञ भी नहीं रहेगा। बाबा ने भक्तों से कहा कि जिसने एक दफा हरिनाम बोल लिया,उसने मोक्ष प्राप्ति के लिए कमर कस ली। जिसने जीवन भर के लिए निष्ठा के तौर पर एक बटा छह हिस्सा, समाज को निरंतर अर्पण करने का नियम कबूल किया, उसने अपनी सारी संपत्ति, अपना सारा जीवन, यहां तक कि अपना शरीर निर्वाह भी समाज को अर्पित करने के लिए कमर कस ली।
पुल नदी के एक किनारे नहीं, बल्कि दोनों किनारों पर खड़ा होता है। भोग इस पार है, तो मोक्ष उस पार, पर धर्म दोनों पार है। पंथ और मुकाम में जो फर्क और संबंध है, वही धर्म और मोक्ष में है। संपत्ति दान यज्ञ मोक्ष का विचार नहीं, धर्म का विचार है। निरपेक्ष विचार में न तो संपत्ति रहेगी, न दान। और शायद यज्ञ भी नहीं रहेगा।
बाबा को भिक्षा मांगने की आदत नहीं। बाबा तो सभी को दीक्षा देने आया है। काहे की दीक्षा! प्रेम जीवन की दीक्षा। सारा गांव एक परिवार बनकर रहे। जमीन सबके लिए है, उसको सबके पास पहुंचाए। अपने पास जरूरत से ज्यादा न रक्खे। बाबा सबसे कहते थे कि गफलत में मत रहो। सावधान रहो। दुनिया बड़े खतरे में है। देश-देश में द्वेष बढ़ रहा है। इस हालत में अपने देश में प्रेम राज्य होना चाहिए। अगर हिंदुस्तान में प्रेमराज्य होगा तो सारी दुनिया को हम बचा सकेंगे और हम भी बचेंगे। इसी वास्ते सारी दुनिया हमारी ओर देख रही है। – रमेश भइया
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