देश के गरीबों को दी जाने वाली रियायती अनाज की यह खेप राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत दी जाएगी, यह मार्च 2020 में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत घोषित मुफ्त खाद्यान्न योजना के विस्तार की तरह ही है, जिसमें प्रत्येक गरीब को 5 किलो खाद्यान्न प्रदान किया गया था। यह स्कीम महामारी और संपूर्ण लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित 80 करोड़ लोगों को कवर करने के लिए लायी गयी थी।
उल्लेखनीय है कि एनएफएसए पहले से ही अस्तित्व में था और गरीबों को सब्सिडी वाला खाद्यान्न उपलब्ध करा रहा था। इसमें 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी शामिल है। कवर की जाने वाली जनसंख्या 81।34 करोड़ आंकी गई थी। एनएफएसए की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, 80 करोड़ गरीबों को चावल, गेहूं और मोटा अनाज 3 रुपये/2 रुपये/1 रुपये प्रति किलो की दर से मिल रहा है।
खाद्य सब्सिडी में कमी : बजट के दस्तावेजों से पता चलता है कि दोनों योजनाओं ने मिलकर 2021-22 में 2।9 लाख करोड़ रुपये की खाद्य सब्सिडी दी। 2019-20 में, पीएमजीकेवाई योजना शुरू होने से पहले, खाद्य सब्सिडी 1।09 लाख करोड़ रुपये थी। अब इन दोनों योजनाओं का एनएफएसए में विलय किया जा रहा है, जिसमें 81 करोड़ गरीबों को 5 किलो खाद्यान्न मुफ्त दिया जायेगा।
पीएमजीकेवाई के तहत प्रदान किया जाने वाला खाद्यान्न अब भी गरीबों को दिया जाएगा, लेकिन एनएफएसए के तहत उन्हें जो रियायती दरों पर मिल रहा था, वह अब गरीबों को उपलब्ध नहीं कराया जाएगा। इस प्रकार, सरकार 1।09 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी बचाएगी, जो पहले एनएफएसए के तहत सस्ते खाद्यान्न के लिए जाती थी।
यह गरीबों पर एक अतिरिक्त बोझ बन जाएगा और यह सरकार द्वारा बचाई गई सब्सिडी से कहीं अधिक होगा। गरीबों को अपनी जरूरतें खुले बाजार से पूरा करनी होंगी, जहां खाद्यान्न की कीमत अब सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कीमत से बहुत अधिक है। 2022 में गेहूं का उत्पादन और खरीद घटी है तथा प्रमुख चावल उत्पादक क्षेत्रों में देर से बारिश और मौसम के अंत में आयी बाढ़ के कारण धान की फसल को भी नुकसान हुआ है।
गरीबी बढ़ेगी : कोई घटती नहीं मानते हुए अबतक, 316 मिलियन टन के उत्पादन में से लगभग 100 मिलियन टन खाद्यान्न ,81 करोड़ लोगों को प्रदान किया गया। इस प्रकार, 60% आबादी सरकार से लगभग 32% खाद्यान्न प्राप्त कर रही थी और शेष जरूरतों के लिए उन्हें खुले बाजार पर निर्भर रहना पड़ता था।
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, 2019-20 (महामारी से पहले) में अनाज की औसत उपलब्धता प्रति व्यक्ति प्रति माह 13।9 किलोग्राम थी। यह खाद्यान्नों की औसत खपत को दर्शाता है। माना जाता है कि अमीर लोग, गरीबों की तुलना में कम खपत करते हैं, गरीब लोग औसत राशि का उपभोग करते हैं। पहले गरीबों को प्रति व्यक्ति 3।9 किलो अनाज प्रति माह बाजार से खरीदना पड़ता था और अब उन्हें 8।9 किलो अनाज प्रति व्यक्ति प्रति माह खरीदना होगा। गेहूं की लगभग 2,500 रुपये प्रति क्विंटल की मौजूदा कीमत पर, पांच लोगों के परिवार के लिए अतिरिक्त मासिक खर्च 575 रुपये बढ़ेगा। इसमें पीएमजीकेवाई के तहत गरीबों को मिलने वाली दाल को शामिल नहीं किया गया है, जिसकी आपूर्ति अब नहीं की जाएगी।
इसलिए भारत में गरीबी बढ़ेगी। महामारी के दौरान काम के नुकसान और आय में गिरावट के कारण यह पहले से ही बढ़ी हुई है। महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार ने स्वीकार किया है कि भारत में 80 करोड़ आबादी गरीब है, जिसे मुफ्त खाद्यान्न की आवश्यकता है। इसलिए यह सामाजिक कल्याण की स्कीम है।
कितने गरीब? : भारत में 81 करोड़ गरीबों का आंकड़ा असल आंकड़े से दूर नहीं है। विश्व बैंक ने गरीबी रेखा का अपना मानक $1।9 प्रतिदिन से बढ़ाकर $2।15 प्रतिदिन कर दिया है; यानी मौजूदा समय में 143 रुपये से 176 रुपये प्रतिदिन। चूंकि यह क्रय शक्ति में समानता के संदर्भ में है, इसलिए इसे 2,650 रुपये प्रति माह के रूप में लिया जा सकता है। तो, पांच लोगों के परिवार के लिए यह 13,250 रुपये प्रति माह पारिवारिक खर्च आता है।
यदि 2018 के दिल्ली सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर अखिल भारतीय स्तर पर अनुमान लगाया जाए, तो 90% भारतीय परिवारों ने प्रति माह 10,000 रुपये से कम खर्च किया और 98% ने प्रति माह 20,000 रुपये से कम खर्च किया। ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 28 करोड़ असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों में से 94% ने प्रति माह 10,000 रुपये से कम आय की सूचना दी। यहां तक कि अगर प्रति परिवार दो लोगों को कामकाजी मान लिया जाए, तो भी परिवार की आय 20,000 रुपये से कम ही होगी।
इसलिए अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार 90% भारतीय तो गरीब हैं। ऐसे में 60% लोगों को कवर करने वाले एनएफएसए को वास्तव में अपने कवरेज को बढ़ाने की जरूरत है।
गरीबी बढ़ना तय है : संक्षेप में यह कि सरकार की यह योजना देश में गरीबी बढ़ाने वाली है, भले ही 5 किलो अनाज मुफ्त दिया जाएगा। यह रियायती अनाज भी ज्यादा नहीं मिलेगा और गरीबों को अपनी जरूरत का 64 फीसदी अनाज बाजार से महंगे दामों पर खरीदने को मजबूर होना पड़ेगा।
गौरतलब है कि सरकार यह मान चुकी है कि देश की 81 करोड़ आबादी गरीब है। आखिर गरीबों की इतनी बड़ी संख्या क्यों, जब सरकार मजबूत आर्थिक विकास का दावा करती है? या तो विकास बहुत कम है या यह संगठित क्षेत्र में अत्यधिक केंद्रित है।
दरअसल, दोनों सही हैं। राष्ट्र के पास संसाधनों की कमी नहीं है, लेकिन वे धनी लोगों के हाथों में तेजी से केंद्रित होते जा रहे हैं। सरकार गरीबों को मिलने वाली सब्सिडी में कटौती करते हुए उन्हें मिलने वाली रियायतें बढ़ा रही है। क्या यह न्याय है?
– प्रो अरुण कुमार, द इंडिया केबल
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