जैन आचार्य समंत भद्र ने सर्वोदय शब्द को प्राय: प्रथम बार उच्चारित किया, उन्होंने कहा कि सर्वोदय शब्द ने विद्युत शक्ति के समान मेरे हृदय को स्पर्श किया है। बाद में कई दूसरे आचार्यों ने भी अनेक संदर्भों में सर्वोदय शब्द की प्रेरणा दी है। आधुनिक समय में महात्मा गांधी और उनके बाद कई महान विभूतियों ने इस शब्द की व्याख्या की है। आचार्य विनोबा ने भी इस शब्द की निष्कपट व्याख्या की है। आचार्य समंत भद्र ने अपनी अचूक संवेदन शक्ति से संसार को अभिभूत किया है।
सारे सर्वोदय ज्ञान सागर में ‘सर्वोदय’ शब्द महागायत्री के रूप में प्रस्तुत है। सर्वोदय का चिंतन अन्त्योदय से प्रारंभ होता है और सर्वोदय में समाप्त होता है। इसलिए सर्वोदय को गांधी जी का ‘तीर्थ’ भी माना जाना चाहिए। रस्किन की पुस्तक का नामकरण भी ‘अनटू दिस लास्ट’ है। स्वयं बाइबिल में भी ऐसे व्यक्ति की चर्चा है, जो दुखी है और दलित संबोधन से पुकारा जाता है। इसीलिए गांधी जी अंतिम व्यक्ति की पूजा और अर्चना को ही भगवत अर्चना कहते हैं।
आज अंतिम व्यक्ति की पूजा के बदले, चमकते-दमकते मंदिरों के भगवान हमारे पूजनीय हैं, लेकिन दलित समाज की पूजा और अर्चना ही सच्ची उपासना है। इसीलिए गांधी जी ने अंतिम व्यक्ति को केवल हाड़-मांस का टुकड़ा ही नहीं माना, बल्कि उसे ईश्वर ही माना था। आज हम उस अंतिम व्यक्ति को भगवान के रूप में देखते हैं।
गांधी जी ने वैश्विक सभ्यता को अपनी ही सभ्यता माना है और अपने ही राष्ट्र को संपूर्ण विश्व माना है। आज हम सभ्यता के नाम पर हिमालय की ऊंचाई पर गर्व करते हैं, लेकिन मानव के प्रति क्रूरता से बाज नहीं आते। इसलिए आज या तो हम संकीर्ण राष्ट्रवाद को संपूर्ण रूप से समुद्र में फेंक दें या उसे आग में झोंक दें। विश्व की नागरिकता के बिना विश्व का पूर्ण विनाश ही होगा। संपूर्ण राष्ट्रवाद, संपूर्ण विनाश का पर्यायवाची है। इसलिए एक ही विश्व (वन वर्ल्ड) रहेगा। राहुल सांस्कृत्यायन ने भी एक विश्व की बात कही थी, लेकिन आज हम उसको भूल गये। लेकिन खुशी की बात है कि ऐसे मित्र हैं कि जिन्होंने विश्व सरकार, विश्व संसद और विश्व धर्म की बात की है. या तो एक ही विश्व रहेगा या अपने संपूर्ण स्वरूप में विनष्ट हो जायेगा।
भारतीय संसद के पटल पर वन वर्ल्ड, विश्व धर्म और विश्व संसद का प्रस्ताव, मानवीय सभ्यता का श्री गणेश है। अभी हाल में ही एचवी कामथ ने भारतीय संसद के पटल पर जब विश्व संसद का प्रस्ताव रखा था, तो उसे सभी दलों के सांसदों ने अपना पूर्ण समर्थन दिया था। आज धर्म और राष्ट्रीयता के नाम पर जितनी हिंसा होती है, उसे चुपचाप देखते रहना कायरता का चिन्ह है। आज विश्व धर्म, विश्व संसद और विश्व राष्ट्र के लिए अपने जीवन की आहुति देकर आणविक विध्वंस से केवल पृथ्वी ही नहीं, बल्कि आसपास के सभी ग्रहों को भी बचाने की जरूरत है, वरना इन सबका विनाश हो जायेगा। यही नहीं, इसके साथ सभी पेड़-पौधे, पशु-पक्षी आदि भी विनष्ट हो जायेंगे।
-डॉ. रामजी सिंह
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