बनारस में बिक रहे हैं गंगा के घाट

मीडिया इसे विकास और टूरिज़्म बता रहा है और लोग इस अदा पर मरे जा रहे हैं। इस खेल का नाम है पीपीपी मॉडल। बनारस के 6 घाट 2020 में ही बिक चुके हैं। सरकार इस पर बोलने से बचती है।

काशी लोक-आस्था और संस्कृति का भारत का सबसे पुराना शहर है। गंगा को हमारे शास्त्रों में जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी कहा गया है, लेकिन 8 साल पहले एक राजनीतिक बयान में यह कहा गया कि मुझे मां गंगा ने बुलाया है, मुझे गंगा और गंगा के 84 घाटों को साफ करना है। गंगा सफाई कार्यक्रम को एक नये नाम ‘नमामी गंगे के साथ पूरे तामझाम के साथ लांच किया गया। इसके लिए वाराणासी को खास तौर से चुना गया। 2017 तक गंगा सफाई, एसटीपी और सीवर पर सरकारी कार्य समान्य रुप से चलते रहे। हालांकि उसमें कोई खास सफलता नहीं मिली। एक बार फिर मंत्रालय के नेतृत्व में बदलाव हुआ और नितिन गड़करी को यह महत्वपूर्ण मंत्रालय दिया गया। जलमार्ग और सड़क परिवहन मंत्रालय पहले से ही उनके पास था। अब यहां से नई नई चीजें होने लगीं। गंगा सफाई का मुद्दा पीछे धकेला जा चुका था।


मोक्षदायिनी गंगा, अब एक रेवेन्यू मॉडल और नये प्लान में बदल गई। इसी वक्त गंगा के व्यापारीकरण के लिए गंगा जलमार्ग की घोषणा हुई और तुरंत काम भी शुरू हो गया। 2019 में भारत में चुनाव भी होने थे। उसके ठीक पहले यह सब चल रहा था। 40 रीवर बेसिन की सफाई, गंगा सफाई बांड, गंगा म्यूजियम, गंगा तारिणी, गंगा दर्पण के नाम से गंगा को महिमामंडित करती योजनाएं इसी बनारस से 2017 में शुरू की गईं, लेकिन सरकार की असली मंशा कुछ और थी। हल्दिया से बनारस-इलाहाबाद फिर यमुना से दिल्ली तक जलमार्ग की योजना सरकार में लम्बे समय से अटकी पड़ी थी। कुछ कारपोरेट्स को इस योजना से लगाव था। सिविल एवियेशन और जल मार्ग उनके प्रमुख व्यापारिक क्षेत्र थे और समय भी उनके अनुकूल था। गंगा जलमार्ग और अन्य योजनाओं को जामा पहनाने का वक्त आ चुका था।

बनारस में गंगा की टूटती लहरों पर सवार लग्जरी क्रूज


वाराणासी के विश्वविख्यात घाटों पर सरकार की नज़र थी। वाराणसी में काशी विश्वनाथ दर्शन और गंगा आरती के अवलोकन में सुगमता के लिए गंगा घाटों के विपरीत दिशा में प्रस्तावित चार लेन मॉडल सड़क सहित कई अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं के प्रोजेक्ट पर अभी भी काम चल रहा है। इस सड़क के साथ हेलीपैड की सुविधा भी रहेगी। वीआईपी, हेलीपैड पर सीधे हेलीकॉप्टर से उतर कर ज्योतिर्लिंग दर्शन और गंगा आरती का अवलोकन कर सकेंगे। मॉडल सड़क के साथ ग्रीनफील्ड भी बनेगा। असल में ये गंगा के मोनेटाइजेशन का प्लान है। गंगा टूरिज़्म प्लान का एक वृहद रूप, नया गंगा जलमार्ग इसी वक्त सरकार ने प्रस्तुत किया है। इसे जलमार्ग और टूरिज़्म का नाम देकर सरकार ने इसे लोकलुभावन बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।


मीडिया इसे विकास और टूरिज़्म बता रहा है और लोग इस अदा पर मरे जा रहे हैं। इस खेल का नाम है पीपीपी मॉडल और इसके दो फायदे हैं- गंगा सफाई के मुद्दे को गायब करना और कार्पोरेट्स के लिए पैसा कमाने के नये रास्तों को सुगम बनाना। बनारस के 6 घाट 2020 में ही बिक चुके हैं। सरकार इस पर बोलने से बचती है। खिड़किया घाट पर हेलीपैड, रेस्त्रां, आर्ट गैलरी, एम्फीथिएटर, सीएनजी स्टेशन पीपीपी मॉडल के तहत बनकर लगभग तैयार हो चुका है। यही हाल इलाहाबाद, पटना और कानपुर में हैं। हां, हर शुरुआत बनारस से होती है। पैसे और बाज़ार का खेल खेलकर पहले गंगा सफाई प्रोजेक्ट से पैसा खाना अब घाट और गंगा को बेचना, नये मंत्री का विकास मॉडल है।


नये साल की पूर्वसंध्या को 31 दिसम्बर की रात गंगा में क्रूज पार्टी हुई थी। क्रूज स्टाफ के हवाले से ऐसी खबरें हैं कि बनारस से चुनार तक गंगा में चलने वाले क्रूज पर मांस और शराब परोसी जा रही है। खबर है कि नये साल में गंगा के उस पार टेंट सिटी बसायी जाने वाली है। एक मिनी चौपाटी गंगा के उस पार तैयार हो भी गई है। ये कौन लोग है? ये क्या चाहते हैं? ये बनारस की संस्कृति के बारे मे क्या जानते हैं? सवाल ये है कि यह संस्कृति आ कहाँ से रही है? हल्दिया से वाराणसी तक वाटरवेज बन गया, हेलीपैड बन गया, रेस्त्रां बन गया, आर्ट गैलरी बन गई, फूड कोर्ट बन गया, गंगा को साफ करने की बात कही गयी थी, लेकिन गंगा के घाट बिकने लगे।


खिड़किया घाट और सूजाबाद के विस्थापितों को आजतक घर नहीं मिला। गंगा का बीओडी आज 5000 है। गंगा के तटवर्ती गावों में आर्सेनिक बढ़ता जा रहा है, लाखों लोग आर्सेनिक जनित कैंसर से मर चुके हैं। इस पर मानवाधिकार की भी रिपोर्ट है, लेकिन उस पर ध्यान देने की किसी को फुरसत नहीं है। गंगा के क्षेत्रों में रिवर्स रीचार्ज हो रहा है। जिस एसटीपी को मैला साफ करने काम करना था, वह अपने प्लांट का अनट्रीटेड पानी गंगा में डाल रहा है। एनजीटी ने पांच करोड़ जुर्माना लगा दिया। उसके प्लांट की वजह से बीएचयू के पीछे के मुहल्लों में लोगों के मकानों में दरारें आ गईं।


आधुनिक भव्यता और ऐतिहासिक धरोहरों में अंतर होता है। गंगा नदी अब व्यापार और मुनाफ़े का केन्द्र है। इन्तज़ार करिये, गंगा एक नये उद्योग, मौज मस्ती और सैर सपाटे के केंद्र के रूप में हमारे सामने आ रही है।

-सौरभ सिंह

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