चार्ली चैप्लिन
इंसानों की नफरत ख़तम हो जाएगी, तानाशाह मर जायेंगे और जो शक्ति उन्होंने लोगों से छीनी, वह लोगों के पास वापस चली जायेगी। जब तक लोग मरने के लिए तैयार रहेंगे, स्वतंत्रता कभी ख़त्म नहीं होगी- चार्ली चैपलिन
मैं कम्युनिस्ट नहीं हूँ, लेकिन मुझे यह कहने में गर्व हो रहा है कि मैं अपने आपको जबर्दस्त कम्युनिस्ट समर्थक महसूस करता हूँ। चार्ली चैप्लिन ने 1942 में यह कहा था। मूक फिल्मों के महान अभिनेता और निर्देशक चार्ली चैपलिन ने अपनी फिल्मों के जरिये अमेरिका में पूंजीवाद, फासिज्म और युद्ध के खिलाफ मजबूत संदेश दिये थे। इसके बाद कभी कम्युनिस्टों के बारे में चैप्लिन ने कहा था, ‘कम्यूनिस्ट्स आर ऑर्डीनरी पीपल लाइक अवरसेल्व्स, हू लव ब्यूटी, हू लव लाइफ। चार्ली चैप्लिन का पूरा नाम सर चार्ल्स स्पेन्सर चैपलिन था।16 अप्रैल 1889 को चार्ली चैपलिन का जन्म हुआ था। चार्ली चैप्लिन के पिता एक ऐक्टर थे और उन्हें शराब की लत थी, उनका बचपन काफी संघर्षों में बीता। अपनी मां को मेंटल अस्पताल में भर्ती कराने के बाद, चार्ली और उनके भाई को अपने पिता के साथ रहना पड़ता था। कुछ सालों में चार्ली के पिता की मौत हो गई थी, लेकिन उनके व्यवहार के चलते एक संस्था को चार्ली और उनके भाई को उनके पिता से अलग कराना पड़ा था।
चार्ली चैप्लिन दुनिया के सबसे प्रसिद्ध कलाकारों में से एक होने के अलावा एक महत्वपूर्ण फिल्म निर्माता और संगीतज्ञ थे। परेशानी भरे बचपन के बावजूद वे अमेरिकी सिनेमा में अपनी गहरी छाप छोड़ने में कामयाब रहे, चैप्लिन ने 1930 के दशक में बहुत ही रोचक और आकर्षक फ़िल्में कीं।
सन 1931 में उनकी फ़िल्म ‘सिटी लाइट’ आई, इस फ़िल्म से उनको व्यावसायिक सफलता मिली और इस फ़िल्म में उन्होंने अपना खुद का संगीत शामिल किया। 1936 में इन्होंने दुनिया के आर्थिक और राजनीतिक ढांचे की स्थिति के बारे में एक कमेंटरी की, जिससे उनको बहुत प्रशंसा मिली।
चैप्लिन एक बहुत अच्छे निर्माता भी थे। 1940 में आई उनकी फ़िल्म ‘दी ग्रेट डिक्टेटर’ में उन्होंने हिटलर और मुसोलिनी की सरकारों का उपहास किया और कहा कि मैं शालीनता और दया की वापसी करना चाहता हूँ। उन्होंने फ़िल्म की रिलीज के आसपास यह भी कहा कि मैं सिर्फ एक इन्सान हूँ, जो इस देश में वास्तविक लोकतन्त्र चाहता है।
चार्ली चैप्लिन की असल जिंदगी में बहुत से ड्रामे हुए, जिसके लिए वे प्रसिद्ध हो गए। उनके साथ काम करने वाली बहुत-सी अभिनेत्रियों के साथ प्रेम सम्बन्ध थे। कई शादियों और तलाक के बाद 1943 में चैपलिन ने 18 साल की ‘ऊना ओ’नील’ से शादी की, यह उनकी सफल शादी रही, इससे उनके 8 बच्चे हुए।
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद 1950-60 के दशक में लगभग पूरी दुनिया दो गुटों में बंट गई थी। एक गुट का नेतृत्व अमेरिका और दूसरे का सोवियत संघ कर रहा था। सोवियत संघ जहां साम्यवाद का समर्थक था, वहीं अमेरिका पूंजीवाद का, ऐसे में अमेरिकी सरकार साम्यवाद का सफाया करने के लिए तरह तरह की कोशिश कर रही थी।
वामपंथ का समर्थन करने के कारण चार्ली पर अमेरिका ने बैन भी लगा दिया था, क्योंकि अमेरिका को शक था कि चार्ली चैप्लिन कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रेरित हैं और वे समाज में लोगों को इससे जोड़ने की कोशिश करते हैं, यही बात अमेरिकी सरकार को खटक रही थी। इसी कारण खुफिया एजेंसी एफबीआई को चार्ली चैपलिन की निजी जिंदगी से जुड़ी जानकारियां जुटाने को कहा गया।
दरअसल, चार्ली चैप्लिन ज्यादातर लंदन में निवास करते थे, इसलिए एफबीआई ने उनसे जुड़ी जानकारी जुटाने का जिम्मा एमआई-5 को सौंप दिया। एमआई-5 चार्ली चैप्लिन के खिलाफ वैसा कोई सबूत जुटाने में नाकाम रही, जो यह साबित कर सके कि यह हास्य कलाकार अमेरिका के लिए खतरा पैदा कर सकता है। 1953 में चार्ली चैप्लिन अमेरिका से बाहर गए, तो उन्हें दोबारा नहीं लौटने दिया गया। उनकी मृत्यु 25 दिसंबर 1977 को 88 साल की उम्र में हुई। फिल्म ‘लाइम-लाइट’ के लिए चार्ली चैप्लिन को 21 साल बाद 1973 में ऑस्कर अवॉर्ड दिया गया। यह अवॉर्ड फिल्म के बेस्ट म्यूजिक के लिए था। लॉस ऐंजिल्स में यह फिल्म 1972 में रिलीज हुई थी। उससे पहले यहां फिल्म के रिलीज न होने की वजह से इसे पुरस्कृत नहीं किया जा सका था। 1975 में महारानी एलिजाबेथ सेकंड ने उन्हें ‘नाइट’ की उपाधि दी।
महात्मा गांधी से हुई मुलाकात चार्ली चैप्लिन की जिंदगी के अहम पड़ावों में से एक है। मुलाकात के वक्त चार्ली चैप्लिन ने बापू से पूछा कि आधुनिक समय में उनका मशीनों के प्रति विरोधी व्यवहार कितना जायज है? बापू ने चैपलिन से कहा था कि वे मशीनों के नहीं, बल्कि इस बात के विरोधी हैं कि मशीनों की मदद से इंसान ही इंसान का शोषण कर रहा है! इससे चैप्लिन इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस मुद्दे पर ‘माडर्न टाइम्स’ नाम की एक फिल्म बना डाली।
उत्कट मानवतावादी और जनवादी, बीसवीं शताब्दी के महानतम सिने कलाकारों में से एक, चार्ली चैप्लिन की यह उक्ति उल्लेखनीय है- ‘इंसानों की नफरत ख़तम हो जाएगी, तानाशाह मर जायेंगे और जो शक्ति उन्होंने लोगों से छीनी, वह लोगों के पास वापस चली जायेगी। जब तक लोग मरने के लिए तैयार रहेंगे, स्वतंत्रता कभी ख़त्म नहीं होगी।’
-सुनील सिंह