जसवा के तत्वावधान में जमशेदपुर में ‘उलगुलान एवं पंचायत’ विषयक संगोष्ठी उलगुलान दिवस पर 9 जनवरी को जन मुक्ति संघर्ष वाहिनी के तत्वावधान में जमशेदपुर के गोलमुरी स्थित भोजपुरी साहित्य परिषद के सभागार में “उलगुलान एवं पंचायत” विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी में उपस्थित साथियों ने […]

भारतीय संस्कृति तो नदियों को पोषणकारी मां मानकर व्यवहार करती रही है। आज की शोषणकारी सभ्यता नदियों का इस्तेमाल उद्योगों के लिए मालगाड़ी की तरह करती है। नदियों को बाजार की बस्तु बनाने की साजिश दिखती है। इस साजिश को रोकना हमारे समय का सबसे जरूरी काम है। नदियों का […]

गंगा को 2009 में राष्ट्रीय नदी घोषित किया गया था और डॉल्फ़िन को राष्ट्रीय जलीय जीव। डॉल्फ़िन गंगा प्रणाली के लिए अद्वितीय जलचर है। पहले बंगाल की खाड़ी से लेकर हरिद्वार तक गंगा में डॉल्फ़िन हुआ करती थीं। गंगा की डॉल्फ़िन के पुराने रिकॉर्ड हैं। लेकिन जब बैराज बनाये, तो […]

वैदिक विमर्श से लेकर आधुनिक ज्ञान-विज्ञान तक भगवती गंगा अत्यंत गंभीर चिंतन का केंद्र बिंदु रही हैं। गंगा की उत्ताल लहरों से भ् तरंगित होती है। लोक मानस का धार्मिक और आध्यात्मिक वैभव मां गंगा को पाकर गौरवान्वित होता है। जीवन का सार तत्व मां गंगा में समाहित है। अफसोस, […]

अंग्रेजों ने गंगा के साथ वही सलूक किया, जो यहां के लोगों के साथ किया। गंगा के साथ सरकार का अंग्रेजों वाला ही रिश्ता आज भी है। आजाद होने के बाद गंगा को तो पता ही नहीं चला कि यह सब इतना चुपके चुपके कैसे और कब हो गया। गंगोत्री […]

उत्तराखण्ड हाईकोर्ट ने 20 मार्च 2017 को एक ऐतिहासिक फैसले में गंगा और यमुना को जीवित मानव का दर्जा देने का आदेश दिया था। इस फैसले की व्याख्या करें तो जीवित इन्सान का दर्जा मिलने के बाद गंगा, यमुना और उनकी सभी सहायक नदियों को एक जीवित इंसान के सभी […]

आधुनिकता से उपजा विकास और प्रगति का जो दंभी दावा है, उससे गंगा को बचाना होगा। ‘विकास’ का पूरा ढांचा प्रकृति-विनाश पर खड़ा है और इसी से वन-पर्वत सभी उजड़ रहे हैं। महानगरीय सभ्यता-संस्कृति का मैलापन गंगा के प्राणों को निकाल रहा है। इसलिए गंगा-मंत्रालय को गंगा को बचाने के […]

आज असि की कोख तक निर्माण कर इमारतें तान दी गयी हैं। वाराणसी प्रशासन ने खुली छूट दे रखी है। छूट दे भी क्यों न, जब असि-गंगा संगम स्थल पर पूर्व में गंगा मंत्री रहीं उमा भारती से जुड़ा हुआ उडुपी मठ सीना तानकर खड़ा है! कोरोना की पिछली बंदी […]

मीडिया इसे विकास और टूरिज़्म बता रहा है और लोग इस अदा पर मरे जा रहे हैं। इस खेल का नाम है पीपीपी मॉडल। बनारस के 6 घाट 2020 में ही बिक चुके हैं। सरकार इस पर बोलने से बचती है। काशी लोक-आस्था और संस्कृति का भारत का सबसे पुराना […]

जलपुरुष और पानी बाबा के लोकप्रिय नामों से जाने जाने वाले राजेन्द्र सिंह 1 जनवरी को बनारस में थे। काशी विश्वनाथ कॉरीडोर के नाम पर राजनीतिक हलकों में मचे शोर के पीछे का सच जानने और गंगा की धारा में बड़े पैमाने पर चल रहे निर्माणों का जायजा लेने वे […]

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