हेलंग प्रकरण
हाल ही में चमोली जिले के हेलंग गाँव में हुई घटना से राज्य का आम जनमानस उद्वेलित है। घटना की शुरुआत 15 जुलाई को सीआरपीएफ और पुलिस द्वारा दो महिलाओं की काटी हुई घास छीनने से हुई। उन महिलाओं का कसूर केवल इतना था कि वे सरकारी विकास के पंजे से बचे अपने एकमात्र चारागाह से अपनी गायों के लिए चारा ला रही थीं, जिसे टीएचडीसी कम्पनी ने मलबा डालने के लिए खेल का मैदान बनाने के नाम पर कब्जा कर रखा है। महिलाओं का कसूर यह भी था कि वे अपने चारागाह को खेल का मैदान बनाने के विरोध में शामिल थीं।
लोगों के वनाधिकारों को कम करने के पीछे वनों और इसके उत्पादों के बाजारीकरण का दृष्टिकोण रहा है। औपनिवेशिक काल के समय जब यूरोप सहित पूरी दुनिया में विकास के मानदण्ड बदल रहे थे, तब वनों और प्राकृतिक संसाधनों पर ही सर्वाधिक दबाव पड़ा। जैसे जैसे दुनिया विकास कर रही थी, वैसे वैसे जंगल साफ हो रहे थे। इसका असर भारत पर भी पड़ा, यहां के जंगलों पर भी मुनाफाखोरों की कुदृष्टि पड़ी। आजादी के आंदोलन के साथ साथ अपने प्राकृतिक संसाधनों को बचाने के लिए भी लोगों ने आंदोलन किया। कानूनों की आड़ लेकर वनों पर किये गये अप्रत्याशित हमलों ने लोक और वनों के स्वच्छ और अबोध रिश्तों पर असर डाला, आमजन का मानस बदला और इन रिश्तों में लालच और लाभ का समावेश हुआ।
उत्तराखण्ड प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता वाला राज्य है। यहां हुए 1921 के प्रतिरोध, 1930 की तिलाड़ी की घटना और सत्तर के दशक के चिपको आंदोलन ने देश-दुनिया को पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। उस उत्तराखंड में आज प्राकृतिक संसाधनों की लूट चरम पर है। यहां प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के सारे दरवाजे खुले हुए हैं। वन माफिया, जड़ी-बूटी माफिया और शिकारियों के द्वारा भी प्राकृतिक संसाधनों की लूट खसोट बेखटके जारी है। जंगलों में माफिया की मौजूदगी से वन विभाग अनभिज्ञ नहीं है। माफिया को रोकने में सरकार किन कारणों से सफल नहीं हो रही है, इस पर बहुत अधिक शोध की आवश्यकता नहीं है। उत्तराखण्ड को ऊर्जा प्रदेश बनाने का सपना यहां की नदियों, वनों और पहाड़ों पर भारी पड़ रहा है। लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने वाले संवैधानिक अधिकारों में निरंतर कटौती की जा रही है और इन ऊर्जा परियाजनाओं के जरिये प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के खुले अवसर दिये जा रहे हैं।
हाल ही में चमोली जिले के हेलंग गाँव में हुई घटना से राज्य का आम जनमानस उद्वेलित है। घटना की शुरुआत 15 जुलाई को सीआरपीएफ और पुलिस द्वारा दो महिलाओं की काटी हुई घास छीनने से हुई। उन महिलाओं का कसूर केवल इतना था कि वे सरकारी विकास के पंजे से बचे अपने एकमात्र चारागाह से अपनी गायों के लिए चारा ला रही थीं, जिसे टीएचडीसी कम्पनी ने मलबा डालने के लिए खेल का मैदान बनाने के नाम पर कब्जा कर रखा है। महिलाओं का कसूर यह भी था कि वे अपने चारागाह को खेल का मैदान बनाने के विरोध में शामिल थीं। इस घटना के वायरल हुए वीडियो वीडियो में सीआरपीएफ और पुलिस के सामने घसियारी महिलाओं की कातर विनय और घास का गट्ठर बचाने के उनके संघर्ष को लोगों ने अपने बचे-खुचे हक-हकूक पर सरकार द्वारा किया गया निर्मम प्रहार माना। पूरे प्रदेश से इस घटना के विरोध में आवाजें उठने लगीं और लोगों ने विभिन्न माध्यमों से अपना विरोध सरकार व मुख्यमंत्री तक दर्ज करवाया। महिलाओं ने घास छीने जाने का प्रखर विरोध किया, परंतु पुलिस और सीआपीएफ के जवानों ने अंततः घास को छीन कर अपने कब्जे में ले लिया। महिलाएं अपने पुराने गौचर से घास लाने को अपना पुश्तैनी हक बता रही थीं तो पुलिस प्रशासन डपिंग जोन बन चुके चारागाह को प्रतिबन्धित क्षेत्र बता रहा था। महिलाओं से घास छीनने के बाद उन्हें तहसीलदार की गाड़ी में ठूंसकर नौ किलोमीटर दूर जोशीमठ थाने में पूरे दिन भूखे-प्यासे बिठाकर रखा गया। महिलाओं को ढाई सौ रूपये का चालान करके शाम को छोड़ा गया। पुलिस कस्टडी के दौरान दो-ढाई वर्ष की बच्ची को भी थाने में रखा गया। यह खबर सर्वोदय जगत के अगस्त संयुक्तांक के ‘जन-मन’ स्तम्भ में प्रकाशित हुई थी.
इस घटना के सुर्खियों में आने के बाद जिला प्रशासन ने दावा किया कि डपिंग जोन की भूमि, जिस पर खेल मैदान प्रस्तावित है, पर कुछ लोग कब्जा करना चाहते हैं। इसके समर्थन में हेलंग के ग्राम-प्रधान का बयान भी सोशल मीडिया के जरिये वायरल करने की कोशिश चमोली जिला प्रशासन द्वारा की गई। असल खेल यह है कि टीएचडीसी (टिहरी हाइड्रो डेवलपमेन्ट कार्पोरेशन) द्वारा बनाई जाने वाली विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना के लिए बनने वाली सुरंग के मलबे के निस्तारण के लिये गांव का चारागाह कम्पनी के हवाले कर दिया गया था। महिलाएं उसी चारागाह से अपनी गाय-भैसों के लिए घास लेकर आ रही थीं। पूरे राज्य में इस घटना के प्रति भड़के आक्रोश को देखते हुए मुख्यमंत्री ने घटना की जांच के आदेश दिये व गढ़वाल कमिश्नर को जांच अधिकारी नियुक्त किया। जनसंगठनों और पीड़ितों द्वारा चमोली के जिलाधिकारी और उपजिलाधिकारी सहित पुलिस के आला अफसरों द्वारा कम्पनी के हक में की जा रही कारगुजारियों के खिलाफ राज्य सरकार को अनेक ज्ञापन दिए जा चुके हैं। ऐसे में गढ़वाल कमिश्नर द्वारा जांच के लिए नियुक्त एडीएम चमोली जांच में कितनी निश्पक्षता दिखा पायेंगे, इस पर संशय बना हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि गौचर या चारागाह की भूमि का किसी अन्य कार्य के लिए उपयोग नहीं किया जायेगा. इस आदेश की सरेआम अवहेलना करते हुये टीएचडीसी कम्पनी को डंपिंग जोन बनाने के लिए चारागाह की भूमि उपलब्ध करवा दी गई। जिस जमीन को खेल मैदान बनाये जाने के नाम पर डपिंग जोन बनाया जा रहा है, भूगर्भ वेत्ता डॉ एसपी सती के अनुसार उस जमीन का ढाल बहुत तीखा होने के कारण वहां पर खेल मैदान नहीं बन सकता है और न ही ऐसी जमीन पर डंपिंग जोन बनाया जाना चाहिए। तीखा और सीधा ढाल होने के कारण सड़क से फेंका गया मलबा नीचे बह रही अलकनंदा नदी में गिर रहा है, जिससे निचले इलाकों में बाढ़ और आपदा आने का खतरा भी बढ़ गया है। मुनाफे और कमीशनखोरी के खेल में आमजन की जान को खतरा हो या उसके बुनियादी अधिकारों पर कुठाराघात हो, इससे हुक्मरानों को कोई फर्क नहीं पड़ता है और न ही उनमें इतनी संवेदना ही बची हुई है।
उत्तराखण्ड में सरकार के वन विभाग से घसियारियों का संघर्ष काफी पुराना है। घसियारियों द्वारा इसको अपने लोकगीतों में आवाज देकर मुखर भी बनाया गया। हालांकि घसियारियों का संघर्ष वन दरोगा या वन रक्षक तक ही सीमित रहा है। इन लोकगीतों को देखें तो वन विभाग के यही दो-तीन पद घसियारियों के खलनायक रहे हैं। हेलंग में सुनियोजित ढंग से कम्पनी, जिला प्रशासन और सरकार द्वारा पूरी ताकत लगाकर घसियारियों का दमन करने का यह कुत्सित प्रयास सरकारों की मंशा, उनकी नीतियों और उनके जनविरोधी चेहरे को उजागर करता है। कई जागरूक और संवेदनशील लोगों द्वारा हेलंग प्रकरण को जनाधिकारों और प्राकृतिक संसाधनों के अतिक्रमण का लिटमस टेस्ट भी माना जा रहा है। लोगों की ये आशंकायें निर्मूल भी नहीं हैं कि आने वाले समय में सरकार और मुनाफाखोर कम्पनियों की जुगलबंदी से लोक के सामूहिक हितों और प्राकृतिक संसाधनों को रौंदने के प्रयासों में और तेजी आएगी।
उत्तराखण्ड में मुनाफे के लिए प्राकृतिक संसाधनों को लूटने व जनाधिकारों पर अतिक्रमण का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही पुराना जनसंघर्षों का इतिहास भी है। हेलंग प्रकरण ने जनसंघर्ष की धार को तेज करने का काम किया है। हेलंग प्रकरण उत्तराखण्ड में संघर्ष की जमीन को मजबूत कर रहा है और जिन घसियारी महिलाओं से घास छीनी गयी है, वे आज जन और वन अधिकारों के संघर्ष का चेहरा बन गयी हैं।
मनुष्य और प्रकृति को अपने मुनाफे के लिए बरबाद करने की कम्पनियों की मानसिकता और सरकारों का कम्पनियों के पक्ष में खड़ा होना भविष्य में होने वाली बरबादी की बुनियाद को मजबूत करता है। घटना के पीड़ितों के साथ ही एक मासूम बच्ची को भी बिना किसी कारण भूखे, प्यासे हवालात में रखने वाले अधिकारियों के बारे में सरकार के जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों का निःशब्द रहना सरकार और कम्पनी के गठजोड़ की सरेआम पोल खोलता है। भाकपा (माले) के इन्द्रेश मैखुरी द्वारा मासूम बच्ची को हिरासत में रखने पर उत्तराखण्ड बाल संरक्षण आयोग में शिकायत की गई है। अभी तक किसी भी जिम्मेदार अधिकारी के विरूद्ध जांच या किसी कार्यवाही की कोई सूचना नहीं है। मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के जोशीमठ दौरे के दौरान हेलंग संघर्ष के सूत्रधार अतुल सती को उनके घर पर पूरे दिन नजरबंद रखा गया। यह पूरा घटनाक्रम यह बताता है कि सरकार किसी भी हद तक जाकर टीएचडीसी कम्पनी के हितों की रक्षा के लिये प्रतिबद्ध है।
वैश्वीकरण के इस दौर में पूंजी की प्रधानता और ज्यादा नंगई के साथ दिखाई दे रही है। दुनिया के अधिकांश देशों में पूंजी को पोषित करके मुनाफा कमाने की होड़ लगी है। लोगों के खून चूसकर और हाड़मांस गलाकर कम्पनियां अपना मुनाफा बढ़ाने में लगी हैं। इसके लिए वे सत्ता व सरकारों के कारिन्दों को लोभ लालच की चाशनी में डुबाये रखने का हुनर बेहतर जानती हैं। विश्व में जहां भी प्राकृतिक संसाधनों की अधिकता है, वहां पर लोग अपनी अस्मिता और भविष्य को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इस कड़ी में हेलंग का संघर्ष प्राकृतिक संसाधनों व जन अधिकारों को हड़पने के दौर में एक उम्मीद की किरण बन रहा है। हेलंग एकजुटता मंच के बैनर तले उत्तराखण्ड के जनसंघर्षों के सभी समूह व लोग एकत्रित होकर इस आंदोलन को आगे बढ़ा रहे हैं। यह संघर्ष अपनी पहचान, अस्मिता और भविष्य को सुरक्षित करने का है। जो गौचर और पनघट उत्तराखण्ड की पहचान रहे हैं, उस मर्म पर एक कम्पनी की मुनाफाखोरी को बढ़ावा देने के लिए चोट की गई है। इस चोट की गूंज लम्बे समय तक उत्तराखण्ड के समाज में सुनाई देगी।
-अरण्य रंजन