सर्वोदय जगत पत्रिका की पाठक मैं दशकों से रही हूं। पिछले कुछ समय से इस पत्रिका के रूप-स्वरूप तथा सामग्री में जो अंतर आपके मार्गदर्शन में आया है, उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जा सकता। जिस तरह इसकी सामग्री अधिक प्रभावशाली, रोचक, सामयिक और समाज को अपील करने वाली बनती गयी है, उसकी मैं सराहना करती हूं।
1-15 फरवरी का अंक जो मां गंगा तथा सभी नदियों को केन्द्र में रखकर प्रकाशित हुआ है, उसे मैं पूरा पढ़ गयी हूं। मेरी दृष्टि में इस अंक में उत्तम सामग्री आयी है। प्रो. वेकटेश दत्ता का लेख ‘नदियों का कायाकल्प कैसे हो!’ बहुत ही अच्छा बन पड़ा है। उन्होंने नदी को केवल पानी की धारा नहीं, एक संपूर्ण सजीव संसार मानते हुए पारिस्थिकीय यूनिट के रूप में प्रस्तुत किया है। साथ ही छोटी नदियों के महत्त्व को भी उजागर किया है और जल ही नहीं, नदी के साथ उसकी भूमि, उसके आकाश और उसके सारे सहयोगी पर्यावरण को भी जोड़ा है। इतने सुंदर व जानकारीपूर्ण आलेख के लिए मैं प्रोफेसर दत्ता और आपको बहुत-बहुत बधाई देती हूं। इस अंक के दूसरे लेख कुछ पढ़ने को रह गये हैं, लेकिन अधिकांश मैं पढ़ चुकी हूं। अंक बहुत अर्थपूर्ण और रोचक बना है।
आज से एक दशक पूर्व मैंने कोशी नदी के साथ-साथ उत्तराखंड की सैकड़ों छोटी-बड़ी नदियों को बचाने के लिए ‘उत्तराखंड नदी बचाओ अभियान’ चलाया था। उससे भी पहले टिहरी आंदोलन में हमने नारा दिया था ‘गंगा को अविरल बहने दो, गंगा को निर्मल रहने दो।’ आज इस पत्रिका ने हमारे नारे की पुष्टि की है और हमारे अभियान को सही ठहराया है।
आपको प्रधान संपादक बनने की बधाई देती हूं और शुभकामना देती हूं कि इसी तरह सही मूल्यों को आप समाज में रोपित करते रहें।
-राधा भट्ट, पूर्व अध्यक्ष, सर्व सेवा संघ