4 नवम्बर 1974 और जेपी की वह अमर मुद्रा

जेपी गाँधी मैदान पहुंचकर सभा को सम्बोधित करने ही जा रहे थे कि भारी संख्या में सीआरपी आ गयी। एक तरफ छात्र, दूसरी तरफ सीआरपी की फौज। निहत्थों की यह लड़ाई देखते बन रही थी। प्रशासन ने चेतावनी दी। आंसू गैस के गोले गिरने लगे। जेपी आंसू गैस का सामना करते हुए बाहर निकले। वे सटे हुए बैंक के कैम्पस में प्रवेश कर गए। मैंने उस 72 साल के नौजवान को चारदीवारी फांदते देखा।

4 नवबर 1974 का दिन मुझे याद है। मै खुद उसका साक्षी रहा हूँ। सरकार ने तय कर लिया था कि जेपी के नेतृत्व में लोगों को विधान सभा एवं मुख्यमंत्री का घेराव नहीं करने देंगे। पहले से गिरफ्तारियां हो रही थीं। मेरी और डॉ विनयन की ड्यूटी पटना जंक्शन पर लगी थी। बाहर से आये छात्रों को उचित स्थान पर ठहराना था। मैंने सबको को कई निर्माणाधीन मकानों में ठहराया तथा शास्त्री नगर के घरों से आये पैकटों का खाना खिलाया. 4 नवंबर को पटना की बेरिकेटिंग इस तरह की गयी थी कि कोई परिंदा भी गाँधी मैदान न पहुंच सके। पटना के लड़कों की टीम गलियों से निकालकर लोगों को गाँधी मैदान के इर्द गिर्द जमा कर रही थी, क्योंकि हर सड़क पर पुलिस खड़ी थी। जो लड़कियां गाँधी मैदान पहुंची थीं, उन्हें गाँधी संग्रहालय के अंदर बंद करके बाहर से ताला लगा दिया गया था। गाँधी मैदान के चारों ओर की गलियों में छात्र भरे थे, क्योंकि गाँधी मैदान में सीआरपी बैठी थी। सबको लोकनायक की प्रतीक्षा थी। जेपी पटना कॉलेज की ओर से छात्रों के साथ प्रकट हुए। पुलिस छात्रों को खदेड़ने में नाकाम रह गयी। लड़कियां भी ताला तोड़ते हुए जेपी के पीछे हो लीं। जेपी गाँधी मैदान पहुंचकर सभा को सम्बोधित करने ही जा रहे थे कि भारी संख्या में सीआरपी आ गयी। एक तरफ छात्र, दूसरी तरफ सीआरपी की फौज। निहत्थों की यह लड़ाई देखते बन रही थी।

जेपी

प्रशासन ने चेतावनी दी। आंसू गैस के गोले गिरने लगे। जेपी आंसू गैस का सामना करते हुए बाहर निकले। वे सटे हुए बैंक के कैम्पस में प्रवेश कर गए। मैंने उस 72 साल के नौजवान को चारदीवारी फांदते देखा। आंसू गैस सेल को उठा उठा कर नौजवान पुलिस की और फेंक रहे थे। सीआरपी को पीछे हटना पड़ा। डाक बंगले का बैरिकेट टूट चुका था। जेपी ने एक पुलिस अधिकारी को कोतवाली बैरिकेट के पास बुलाया और उन्हें कुछ समझाया। बैरिकेट खुल गया। इनकम टैक्स चौराहे पर सीआरपी का जमावड़ा था। लोगों को तितर वितर कर जेपी को घेरा गया। जब मैंने देखा कि जेपी पुलिस से घिर गए हैं, तो मुझे गुस्सा आ गया। मैंने मारने के लिए ईंट उठा ली, पर किसी व्यक्ति ने मेरा हाथ पकड़ लिया और कहा कि भूल गए? हमला चाहे जैसा होगा, हाथ हमारा नहीं उठेगा। ईंट मेरे हाथ से गिर गयी, उसके बाद लड़कियों को लाठी लगी। नानाजी देशमुख को हाथ पर लाठी लगी। उनका हाथ फ्रैक्चर हो गया। सीआरपी उस दिन जेपी को मार ही देती, यदि लोग उन्हें हर हालत में घेरे नहीं रहते। अंत में उनके बॉडीगार्ड ने अपनी पिस्तौल सीआरपी पर तान दी, इस तरह जेपी बच पाए। मैं उस फोटोग्राफर रघु राय को मन ही मन दाद दे रहा था, जिसके सिर से खून बह रहा था, पर उसने फोटो खींचना नहीं छोड़ा। ऊपर से हवाई जहाज उड़ रहे थे। लोगों का कहना था की आंसू गैस के सेल ऊपर से भी गिर रहे थे। घायल छात्रों की देखभाल स्थानीय महिलाएं कर रही थीं। कई छात्र तालाब में गिर गए थे। सिर पर पगड़ी और हाथ में लाठी लिए जेपी आगे बढ़े। उनकी यह मुद्रा इतिहास में अमर हो गई। इसी मुद्रा में उनकी एक प्रतिमा आज भी आयकर चौराहे पर लगी है। जेपी शिक्षामंत्री के दरवाजे पर पहुंचे और जिद पर अड़ गये कि उन्हें गिरफ्तार किया जाये। वे वहीं खड़ी बस में बैठ गए। हम लोग भी छत पर चढ़ गए।

-प्रभात कुमार

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