हिन्दू चेतना का विकास रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द, अरविन्द, गांधी एवं विनोबा जैसों के माध्यम से हो रहा था, जो सर्वसमावेशी था और पूंजीवादी साम्राज्यवाद की सभ्यता का निषेध करने वाला था। इसी प्रकार मौलाना आजाद, अशफाकउल्ला जैसों का इस्लाम भी पूंजीवादी साम्राज्यवाद का विरोधी था। राष्ट्र की चेतना सभी प्रकार की आध्यात्मिकता एवं मुक्ति के विचारों की नैतिकता के उत्स से निर्मित हुई।
अंग्रेजी शासन के आने के पूर्व तक भारतीय ग्रामीण समाज राजाओं के युद्ध से प्रभावित नहीं होता था, क्योंकि राजाओं के युद्ध के बीच भी गांव की स्वायत्तता बहुत हद तक बनी रहती थी। अंग्रेजों का शासन आने के बाद कुटीर व ग्राम उद्योगों का तीव्र ह्रास हुआ; जमींदारी व्यवस्था लागू की गयी, जिसके कारण किसानों का शोषण बढ़ा एवं व्यापक स्तर पर उनकी बेदखली बढ़ी। इतना ही नहीं, भारतीय चेतना के वाहक बौद्धिक वर्ग को अंग्रेजों द्वारा हेय दृष्टि से देखा जाने लगा था। इसी कारण सन् 1857 में जब अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह हुआ, तो उसमें व्यापक जन-भागीदारी और औपनिवेशिक शोषण के विरुद्ध जनता की अभिव्यक्ति थी। इस प्रकार सन् 1857 में विद्रोह तो राजाओं के नेतृत्व में हुआ, लेकिन आम जनता की भागीदारी व्यापक स्तर पर हुई।
सन् 1857 के बाद गैर-सैनिक नागरिकों की भूमिका बढ़ती गयी तथा सभी बड़े विरोध और विद्रोह नागरिकों एवं नागरिकों से उभरे नेतृत्व द्वारा हुए। नागरिक सत्ता के आविर्भाव एवं विकास की शुरुआत यहीं से हुई। सन् 1857 के बाद भारत की आजादी की लड़ाई कोई रजवाड़ों की लड़ाई नहीं थी, ये दुनिया के सबसे ताकतवर साम्राज्य के खिलाफ, जनता के खड़े होने एवं जनता के सिलसिलेवार विद्रोहों की श्रृंखला थी।
स्वाभाविक था कि जन-विद्रोहों का यह सिलसिला, जनता में नयी चेतना के उभार का भी कारण बना। अब जनता, विशेषकर युवा, अंग्रेजों के साम्राज्यवाद के विकल्प में कोई राजा नहीं लाना चाहती थी। इसी कारण औपनिवेशिक साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ाई में विकल्प के कई स्तर एवं भविष्य रचना के कई स्वरूप उभरते चले गये। हर पीढ़ी के नौजवान, दुनिया भर में हुई क्रांतियों का अध्ययन करते थे तथा भविष्य में स्वतंत्र भारत कैसा बनाना है, इसका खाका तैयार करते थे। नौजवान गांधी का भी विकास इसी माहौल के दौरान हुआ। सन् 1900 आते-आते क्रांतिकारियों की धारा, वैधानिक रास्ते पर चलने वालाें की धारा एवं शांतिमय आंदोलन करने वालों की धारा अपनी जड़ें जमाती चली गयी।
गांव की स्वायत्तता का क्षीण होना, शोषण, अत्याचार, लूट, दोहन एवं बेदखली आदि स्वराज्य केन्द्रित विमर्श के मुद्दे, भारत में नयी चेतना के प्रवाह के नियामक बनते चले गये। जनता की इस जाग्रत चेतना और बढ़ती एकजुटता को देखते हुए अंग्रेजी हुकूमत समझ गयी थी कि अब वे केवल जमींदारों एवं रजवाड़ों के समर्थन से अपने शासन को स्थाई नहीं बनाये रख पायेंगे। जनता की एकता को तोड़ने के लिए और स्वराज्य केन्द्रित विमर्श के मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए औपनिवेशिक सत्ता तरह-तरह के कुचक्र रचने लगी। साम्प्रदायिक शक्तियों को खड़ा करना, उनका पोषण करना एवं उन्हें संरक्षण देना इस नीति के मुख्य अंग बन गये। इस तरह जमींदारों और रजवाड़ों के अलावा, भारत से गद्दारी करने वालों का एक नया वर्ग खड़ा किया गया। तमाम सरकारी संरक्षण के बावजूद, इनके जाल में भारत के बहुत थोड़े युवक फंसे।
यहां इस बात को समझना जरूरी है कि सांप्रदायिक हिन्दुत्व या सांप्रदायिक मुस्लिम लीग का निर्माण और विकास धर्म के मूल तत्वों, आध्यात्मिकता एवं साधना के पक्ष को काट कर हुआ। आध्यात्मिकता एवं साधना से कटी सांप्रदायिक एकजुटता ही पूंजीवादी साम्राज्यवाद के साथ गठबंधन कर सकती थी। इसीलिए इन सांप्रदायिकताओं को अध्यात्म एवं साधना से काट कर विकसित किया गया। जबकि सच्ची हिन्दू चेतना का विकास, इस दौर में रामकृष्ण परमहंस, विवेकानन्द, अरविन्द, गांधी एवं विनोबा जैसों के माध्यम से हो रहा था, जो सर्वसमावेशी था और पूंजीवादी साम्राज्यवाद की सभ्यता का निषेध करने वाला था। इसी प्रकार मौलाना आजाद, अशफाकउल्ला जैसों का इस्लाम भी पूंजीवादी साम्राज्यवाद का विरोधी था। राष्ट्र की चेतना सभी प्रकार की आध्यात्मिकता एवं मुक्ति के विचारों की नैतिकता के उत्स से निर्मित हुई।
इस प्रकार जहां एक ओर युवकों का बहुत बड़ा वर्ग पूंजीवादी-साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, जमींदारी, रजवाड़ा व्यवस्था, अस्पृश्यता व जातीय भेदभाव एवं आदिवासी शोषण विरोधी चेतना से प्रेरित हो रहा था और अपने अध्ययन व कार्यों द्वारा इन विचारों का विस्तार कर रहा था, वहीं दूसरी ओर एक बहुत छोटी संख्या उनकी भी थी, जो जमींदारी समर्थक, रजवाड़ा समर्थक, पूंजीवादी-साम्राज्यवाद समर्थक एवं दलित-पिछड़ा विरोधी थे। आज कारपोरेटी नव-उपनिवेशवादी शक्तियों का गठबंधन सांप्रदायिक शक्तियों के साथ पुन: हो रहा है। ऐसे में आजादी की लड़ाई में शामिल सभी धाराओं के उत्तराधिकािरयों को पुन: एकजुट होना होगा।
-बिमल कुमार