सबको सन्मति दे भगवान

गांधी पाकिस्तान बनने नहीं देना चाहते थे और जब उनकी मर्ज़ी के खिलाफ बन गया तो दोनों जगह अल्पसंख्यकों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार चाहते थे।

इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि जिसे दुनिया महात्मा और अहिंसक प्रतिकार का सबसे बड़ा योद्धा मानती है, उसकी हत्या को जायज़ ठहराने के लिए झूठ पर आधारित फ़िल्म बनवायी गयी। लगता है, कुछ लोग अब भी गांधी हत्या के अपराधबोध से ग्रस्त हैं। ये लोग प्रायश्चित करने के बजाय हत्या को जायज़ ठहराने के लिए मनगढ़ंत कहानियां गढ़ रहे हैं।

एक सभ्य समाज में हत्या किसी परिस्थिति में जायज़ नहीं ठहरायी जा सकती, पर एक विचारधारा है जो न केवल झूठ, बल्कि हिंसा को भी जायज राजनीतिक हथियार मानती आयी है।

दावा है कि 1948 में महात्मा गांधी की हत्या इसलिए की गयी कि वह मुस्लिम समर्थक थे और उन्होंने पाकिस्तान बनवाया। यदि ऐसा है तो उसी व्यक्ति ने चौदह साल पहले 1934 में पूना में या फिर बाद में 1944 में वर्धा में गांधी जी की हत्या के प्रयास क्यों किये थे? तब तो पाकिस्तान या भारत के बँटवारे का प्रश्न ही नहीं था।

साफ़ है कि उनको गांधी के समतावादी और मानवतावादी विचारों से समस्या थी। वास्तव में महात्मा गांधी की हत्या के पीछे समाज की वे ताक़तें थीं, जो चाहती थीं कि अगर अंग्रेज़ी हुकूमत ख़त्म हो तो देश में हिंदू राज के नाम पर फिर से कुछ मुट्ठी भर लोगों और राजे रजवाड़ों का सामंती शासन हो।

महात्मा गांधी पहले व्यक्ति थे, जो हत्यारे के गुरु की मंशा 1909 में ही भाँप गये थे, जब वह उससे लंदन में मिले थे। उसी लंदन प्रवास में गांधी मुस्लिम अलगाववादियों और सशस्त्र क्रांतिकारियों से भी परिचित हुए थे।

गांधी ने इन तीनों हिंसापरस्त विचारधाराओं से देश और दुनिया को आगाह करने के लिए 1909 में लंदन से दक्षिण अफ़्रीका लौटते हुए हिंद स्वराज पुस्तक लिखी।

गांधी ने दक्षिण अफ़्रीका में अंग्रेज़ी हुकूमत से लड़ते हुए जो जीवनशैली अपनायी और अपने आश्रम में जिस तरह एक आदर्श भारतीय समाज का विकास किया, उसमें मानवमात्र की समानता सबसे बड़ा सूत्र था। गांधी ने अपने घर और परिवार से ही यह नियम लागू किया कि हिन्दू मुस्लिम भाई-भाई हैं और एक ही ईश्वर की संतानें हैं और यह भी कि जन्म से न कोई ऊँच है, न नीच।

भारत लौटने पर जब गांधी ने अहमदाबाद के कोचरब आश्रम में एक दलित बच्ची को गोद लिया, तब भी समाज के यथास्थितिवादी लोगों को उनका यह कदम पसंद नहीं आया। अस्पृश्यता निवारण और क़ौमी एकता गांधी के प्रमुख कार्यक्रमों में शामिल थे. जिस विचारधारा ने गांधी की हत्या करवायी, वह हिन्दू और मुस्लिम को दो क़ौम या राष्ट्र मानती रही है, उनको जिन्ना के दो राष्ट्र के सिद्धांत से परेशानी नहीं थी। वे तो जिन्ना की मुस्लिम लीग से मिलकर तीन प्रांतों में सरकारें चला रहे थे।

दूसरी ओर गांधी भारत को अखंड और एक राष्ट्र रखने के लिए अपने कट्टर विरोधी जिन्ना को भी अंतरिम प्रधानमंत्री बनाने को तैयार थे, ताकि देश में खूनखराबा न हो। गांधी तो अल्पसंख्यक हिन्दुओं की रक्षा के लिए पाकिस्तान जाने की घोषणा भी कर चुके थे। गांधी पाकिस्तान बनने नहीं देना चाहते थे और जब उनकी मर्ज़ी के खिलाफ बन गया तो दोनों जगह अल्पसंख्यकों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार चाहते थे।

सच्चाई है कि तीस जनवरी 1948 को हत्या के बाद भी गांधी नहीं मरे, उनके विचार आज भी मानव और प्रकृति विरोधी पूँजीवादी विचारधारा को चुनौती देते हैं। इस साल तीस जनवरी को जिस तरह देश भर में गांधी की 75 वीं शहादत पर उन्हें याद किया गया, वह फ़िल्म का करारा जवाब है।
यह फ़िल्म गांधी की समता और मानवतावादी विचारधारा को मिटाने के लिए बनायी गयी है, लेकिन वे अपने इरादों में कभी कामयाब नहीं होंगे।

सरकार ने अहमदाबाद का साबरमती आश्रम और गुजरात विद्यापीठ अपने कब्जे में ले लिया है। कहते हैं कि बापू की सेवाग्राम कुटी पर भी उनकी निगाहें हैं। ये सब भौतिक निशानियाँ वैसे भी एक न एक दिन मिटनी ही हैं, पर गांधी विचार दुनिया से मिटने वाला नहीं है।

गांधी ने जब इंग्लैण्ड की औद्योगिक सभ्यता का विरोध किया था, तब की तुलना में आज स्थिति और भयावह है. आज की टेक्नोलॉजी ने न केवल औद्योगिक क्षेत्र से, बल्कि कृषि उत्पादन क्षेत्र से भी मनुष्य को क़रीब-क़रीब बाहर कर दिया है। औद्योगिक क्रांति ने पहले हुनरमंद शिल्पकारों को मालिक से मज़दूर बनाया, अब वह उन्हें मज़दूर से मजबूर बना रही है, जिन्हें दो जून की रोटी के लिए सरकार पर आश्रित रहना होगा। अब आने वाली आर्टीफि़शियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स तो समूची मानव जाति को निकम्मा करके बर्बाद करने वाली है।

दुनिया की अर्थव्यवस्था को कंट्रोल करने वाली चंद बड़ी कंपनियां चीन की प्राकृतिक सम्पदा का दोहन करने के बाद अब भारत और दूसरे विकसित देशों में अपने कारख़ाने लगाकर सारी धन संपदा बटोरना चाहती हैं और हमारी सरकारें उनके स्वागत के लिए रेड कार्पेट बिछाने का काम कर रही हैं।

गांधी विचार व्यक्ति के लोक-परलोक दोनों की चिंता करता है यानी मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा का पोषण करता है। दूसरे वह मानव और प्रकृति के सामंजस्य की बात करता है। तीसरे वह गांव यानि स्वशासन की बुनियादी इकाई से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक विकेंद्रीकृत लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की बात करता है, जिसमें कोई किसी का शोषण न कर सके। गांधी विचार क़ानून के राज और न्याय पर आधारित है। गांधी विचार सभी जातियों और धर्मों के सहअस्तित्व की बात करता है। वह सबको रोज़गार देने वाली अर्थव्यवस्था की वकालत करता है, जिसमें प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा संभव हो।

आज भारत में जो लोग सत्ता में हैं, वे देश में एक सम्प्रदाय विशेष का आधिपत्य चाहते हैं और उन्हें लगता है कि उनके इस उद्देश्य में गांधी विचार सबसे बड़ी बाधा है, लेकिन धर्म पर आधारित राष्ट्र निर्माण का जो ख़ामियाज़ा पाकिस्तान भुगत रहा है, कम से कम अब तो उससे सबक़ लेना चाहिए।

-राम दत्त त्रिपाठी

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