आज़ादी के 75 साल के बाद निषाद समाज के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक प्रगति पर नजर डालें, तो पायेंगे कि यह मुख्यधारा से बाहर छूट जाने वाला वह समाज है, जिसकी न तो सत्ता में भागीदारी है, न प्रशासनिक संस्थाओं में। जब नदियों पर पुल नहीं बने थे, परिवहन और व्यापार के लिए जल-मार्गों का प्रयोग होता था, तब निषादों के पास काम होता था और वे अच्छी आय अर्जित करते थे. 2018 में पहली बार एक व्यापारी का निजी क्रूज गंगा में उतारा गया, जिसका बनारस के मांझी समाज ने विरोध किया, तो सरकार की तरफ से यह आश्वासन मिला कि अब दूसरा क्रूज नहीं आयेगा, लेकिन 2022 आते जाते गंगा में 4 क्रूज उतार दिए गये।
बिंद, निषाद, कश्यप, मल्लाह, मांझी, केवट, धीवर, धीमर, तुरहा, मांझी, मझवार,चाई, रैकवार, तियर, बाथम, बेलदार, बियार आदि के अतिरिक्त नदी पुत्रों के 153 से अधिक सजातीय समाज मौजूद हैं, जिनकी उत्तर प्रदेश में कुल आबादी लगभग 17.5% के आस-पास है। विधानसभा के स्तर पर देखा जाए तो उत्तर प्रदेश की कुल 403 विधानसभाओं में निषाद समाज की अच्छी खासी आबादी है, ख़ासकर 163 विधानसभा क्षेत्रों में निषाद निर्णायक वोटर की भूमिका निभाते हैं, यानी सरकार बनाने में इस समाज की भूमिका महत्वपूर्ण है।
इन सबके बावजूद आज आज़ादी के 75 साल के बाद निषाद समाज के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक प्रगति पर नजर डालें, तो पायेंगे कि यह मुख्यधारा से बाहर छूट जाने वाला वह समाज है, जिसकी न तो सत्ता में भागीदारी है, न प्रशासनिक संस्थाओं में। जब नदियों पर पुल नहीं बने थे, परिवहन और व्यापार के लिए जल-मार्गों का प्रयोग होता था, तब निषादों के पास काम होता था और वे अच्छी आय अर्जित करते थे. धीरे धीरे सरकारी दखल बढ़ना शुरू हुआ और नदियों पर तरह तरह के कानून बनने लगे, तो निषादों को दिक्कतों का सामना पड़ा, लेकिन फिर भी कुछ समय तक मछली मारने, बालू खनन और किनारे पर खेती करने का अधिकार इनके पास रहा, जिसके एवज में उन्हें सरकार को मामूली राजस्व देना पड़ता था।
2014 के लोकसभा चुनावों में पहली बार किसी नेता ने मां गंगा के नाम पर वोट मांगा और खुद को गंगापुत्र भी बताया, जिसका असर निषाद समाज पर गहराई से हुआ. अभी तक जिस समाज को हमेशा उपेक्षित किया जाता था, उसकी चर्चा सर्वोच्च स्तर पर होने लगी, तो भावुकतावश लोगों ने वोट भी दिया। लोगों को आशा थी कि उनकी बात ही नहीं होगी, उनके हक अधिकार भी वापस मिलेंगे। लेकिन समाज के इन भोले-भाले लोगों को कहां पता था कि एक व्यापारी मानसिकता का व्यक्ति, जो हमेशा बेचने और खरीदने की बात करता है, मुनाफे के अलावा अन्य कुछ सोचता ही नहीं, वह उनके सम्मानपूर्वक जीवन जीने के अधिकार का भी व्यापार करने लगेगा, मां गंगा की ही तिजारत करने लगेगा?
वह सरकार बनने के बाद शुरुआत बनारस से ही हुई और 2016 में पहली बार निजी कंपनियों के माध्यम से गंगा में फाइबर की नावें चलाने की कोशिश की जाने लगी. इसका विरोध होना शुरू हुआ, उसके बाद, सोलर से चलने वाली नाव, बैटरी से चलने वाली नाव और अब सीएनजी से चलने वाली नाव, यानी हर तरह का प्रयोग किया जाने लगा. बनारस एक व्यक्ति की प्रयोगशाला बनकर गया। 2018 में पहली बार एक व्यापारी का निजी क्रूज गंगा में उतारा गया, जिसका बनारस के मांझी समाज ने विरोध किया, तो सरकार की तरफ से यह आश्वासन मिला कि अब दूसरा क्रूज नहीं आयेगा, लेकिन 2022 आते जाते गंगा में 4 क्रूज उतार दिए गये। इन सब के बीच जो समाज के नेतृत्वकर्ता थे, जिनमें विनोद निषाद गुरू का नाम बड़ा था, उन्हें फर्जी मुकदमे में फंसाकर जेल में बंद कर दिया गया और जमानत की अर्जियां आजतक खारिज हो रही हैं. अन्य नेताओं को भी मुकदमों का डर दिखा दिखाकर चुप कराए रखा गया।
2019 में गंगा नदी में मछली मारने के लिए ठेके का कानून लाया गया, जिसमें यह कहा गया कि आठ-आठ किलोमीटर का पट्टा दिया जाएगा. इसकी शुरुआत चंदौली जिले से की गई, लेकिन स्थानीय लोगों और मां गंगा निषादराज सेवा समिति वाराणसी ने इसका जमकर विरोध किया और नीलामी रोकवाने में सफलता प्राप्त की। कोरोना प्रतिबंधों का उल्लंघन करने के बहाने बर्बरतापूर्वक निषाद समाज पर पुलिस की लाठियां भी चलीं। कोविड प्रोटोकाल के नाम पर सड़क पर गाड़ियों को बंद करना तो समझ में आता है, लेकिन नदी में नाव बंद करने का विज्ञान आज तक नहीं समझ में आया। नाव ही न चले, तो हमारे बच्चे जियेंगे कैसे, क्या यह जरूरी सवाल नहीं है? संत कबीरनगर, गोरखपुर, गाजीपुर आदि जिलों में गंगा के किनारों पर साग सब्जी की खेती करने वालों से वसूली की गई, जिसका विरोध करने पर उनको बुरी तरह से मारा पीटा गया और जेसीबी मशीनों से उनकी नावों को तोड़ दिया गया, कुछ को उठाकर थाने भी लाया गया। नाव मल्लाह के लिए मां की तरह होती है, जो उसके जीवनयापन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. आप कल्पना नहीं कर सकते कि जिस मल्लाह की आँखों के सामने ही उसकी नाव तोड़ दी गयी, उस पर क्या बीती होगी।
निषाद समाज के साथ ज़ुल्म ज्यादती अब आम बात है. आये दिन पुलिस उनको गिरफ्तार करती रहती है,मारना- पीटना, नावों को तोड़ना, जाल को जलाकर उनसे वसूली करना, यह सब इसलिए हो पाता है कि इस समाज में पढ़ाई-लिखाई कम है. लोगों को हक अधिकारों की जानकारी तो है, लेकिन उसे कैसे हासिल किया जाय, इसकी जानकारी का आभाव है. आज हालात ये हैं कि नई पीढ़ी दर-दर भटकने को मजबूर हो चुकी है। सरकारों ने एक बनी-बनायी व्यवस्था को उजाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। जहां नदियों की सफाई के नाम पर हजारों करोड़ रूपये डकार लिए गये, वहीं अभी भी चंद लोगों के फायदे के लिए नदी पर आश्रित समाज को उजाड़कर अवैध खनन को बढ़ावा दिया जा रहा है। पिछले दस पन्द्रह सालों से निषाद समाज लगातार अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है, इन सब के बाद समाज में राजनीतिक चेतना तेजी से बढ़ी है, जिसका परिणाम यह हुआ कि जो समाज पहले दूसरों के नेतृत्व पर निर्भर था, वह अब स्वयं अपनी लड़ाई लड़ने का काम कर रहा है,समाज के भीतर से नेतृत्व पैदा होने लगा है.
आगामी विधानसभा चुनावों के लिए निषाद समाज ने अपने मुद्दों की सूची बनाई है.
1. प्रदेश की प्रत्येक नदी पर निषाद समाज का अधिकार हो और यह वनाधिकार कानून की तरह हो।
2. प्रदेश की समस्त नदियों, बंधों, झीलों, तालाबों, पोखरों और अन्य जलस्त्रोतों का पट्टा निषाद समाज के लोगों को दिया जाए।
3. बालू खनन का अधिकार सिर्फ और सिर्फ निषाद समाज को हो. इसमें भी किसी व्यक्ति विशेष को पट्टा न करके, निर्धारित राशि लेकर समस्त समाज को पट्टा दिया जाय, ताकि प्रत्येक परिवार की आय बढ़े।
4. निषाद समाज को उसके ज्ञान के आधार पर जेल, पुलिस और एनडीआरएफ में नियुक्त किया जाए।
5. प्रदेश की नदियों में लोगों की जान बचाने वाले समाज के गोताखोरों को सरकारी नौकरी दी जाए और उनका वेतन सरकारी कर्मचारी जितना ही हो।
6. नदियों पर बनने वाली हर सरकारी योजना में निषाद समाज के लोगों को अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया जाए और उनकी राय ली जाए।
7. प्रदेश के सभी बाजारों में एक निश्चित स्थान मछली मार्केट के रूप में निर्धारित हो तथा जो पुराने मछली बाजार हैं, उन पर से अवैध कब्जे हटाए जाएं।
8. प्रदेश में हर वर्ष आने वाली बाढ़ से होने वाली कटान से जितने भी निषाद, माझी, मल्लाह समाज के लोगों के मकान गिरते हैं, उनके मकानों का पुनर्निर्माण हो तथा उनको सरकारी जमीन दी जाए।
9. प्रदेश के समस्त माझी, मल्लाह, नाविक, बिंद समाज के लोगों को नई नौकाओं के निर्माण तथा पुरानी नावों की मरम्मत के लिए सरकारी मदद मिले।
10. निषाद समाज के लोगों का शैक्षणिक पिछड़ेपन दूर करने तथा उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए विशेष योजनाएं बनाई जाएं, जिसके तहत समाज के लोगों को अपने घर पर ही अपने पारिवारिक/पारम्परिक धंधे, जैसे मछली पालन, खेती आदि काम करने की आजादी मिले।
11. प्रदेश में नए तालाबों के निर्माण तथा पुराने तालाबों की मरम्मत करवाई जाय और मछली पालन के ठेके, बिन्द, निषाद, कश्यप, मल्लाह आदि समाजों के लिए आरक्षित हों, साथ ही इन्हें सरकारी सहायता भी मुहैया कराई जाए।
12. निषाद समाज के सबसे बड़े मुद्दे आरक्षण को तत्काल बहाल किया जाए।
13. समाज के राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ताओं पर लगे मुकदमे वापस हों।