आने वाला तंत्रज्ञान सिर्फ आर्थिक सवाल नहीं पैदा कर रहा है, वह पूरी संस्कृति, सभ्यता तथा कुटुम्ब व्यवस्था बदल रहा है। उसका असर नाट्य, शिल्प, चित्र और भाषा जैसे अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों पर होने वाला है। मानव से श्रम और बुद्धि छीनकर उसे सिर्फ उपभोक्ता बनाने का विचार रखकर सारे बदलाव होने वाले हैं। हमें जीवन के सभी अंगों में इस व्यवस्था के पर्याय खड़े करने होंगे। इसलिए आउट ऑफ बाक्स सोचने वाले तकनीकी विशेषज्ञों से लेकर, नाट्य, शिल्प, भाषा विशेषज्ञों तक सबको अपने साथ लेना पड़ेगा।
जैसे-जैसे तकनीकी ज्ञान का विकास हुआ, समाज बदलता गया है। दुनिया की पहली औद्योगिक क्रांति 1774 के आसपास हुई। तरह-तरह के आविष्कारों का उपयोग हो रहा था। भाप के इंजन की खोज के बाद काम की गति में बढ़ोत्तरी हुई। 1923 के आसपास दूसरी औद्योगिक क्रांति हुई, बिजली का निर्माण शुरू हुआ। उत्पादन प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर बदलाव हुए। उत्पादन की श्रृंखला तैयार हो गयी। 1969 से कम्प्यूटर का इस्तेमाल शुरू हुआ। उसके बाद डिजिटलाइजेशन और रोबोट यानी यंत्र मानव की उत्पादन में सहभागिता शुरू हुई। चौथी औद्योगिक क्रांति की नींव 2014 के आसपास पड़ी। 4-जी इंटरनेट सेवा प्रमुख उपलब्धि थी। 4-जी के आधार पार क्लाउड तकनीकी, बिन डेटा एनालिसिस और ब्लाकचेन जैसी अलग-अलग तकनीकें आयीं। अपने विषय के संदर्भ से जुड़ी हुई इन तीन प्रातिनिधिक तकनीकों का संक्षिप्त परिचय देखें।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
आप सबने कम्प्यूटर देखा है, शायद रोबोट भी देखा होगा। कम्प्यूटर, रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में क्या अंतर है? कम्प्यूटर बहुत तेजी से, बिना गलती किये काम करता है, उसकी मेमोरी बहुत है, कम्प्यूटर के ऐसे कई विशेष गुण हैं। वह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से ऊपर सोचता भी है और निर्णय भी लेता है। एक उदाहरण देता हूं, मान लीजिये आपके घर में कचरा निकालने का काम हमने एक रोबोट को दे दिया। हमारे घर में कई सजीव और कई निर्जीव वस्तुएं होती हैं। जैसे अपना मोबाइल और एक छोटा बच्चा। रोबोट के प्रोग्राम में दो लिस्ट रहेगी, ये कचरा है और ये कचरा नहीं है। एक दिन अचानक घर में उल्लू आ गया और रोबोट के सामने बैठा। रोबोट की दोनों लिस्ट में उल्लू का नाम नहीं है। अब रोबोट की समस्या शुरू हो गयी। यहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस काम करती है। वह सामने बैठे हुए उल्लू का निरीक्षण करके, उसके गुण विशेष किसके अनुरूप हैं, इसका विश्लेषण करता है और इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि ये कचरा नहीं, बल्कि सजीव वस्तु है। वह अपनी ‘कचरा नहीं’ वाली लिस्ट में उल्लू का नाम डाल देता है। मतलब अपना प्रोग्राम अपग्रेड करता है। ये कहानी सुनने में अच्छी है, लेकिन तकनीकी ज्ञान में आया यह बदलाव बहुत महत्त्वपूर्ण है, जिससे पूरी मानव जाति तनावग्रस्त है।
दूसरी चीज है, थ्री डी प्रिंटर
जैसे अपने कम्प्यूटर से जुडे हुए प्रिंटर में कागज डालकर हम कुछ प्रिंट निकालते हैं, वैसे ही ये नया थ्री डी प्रिंटर पूरी वस्तु का निर्माण करता है। आपके मोबाइल में यूट्यूब है, वहां टाइप कीजिये थ्री डी प्रिंटर। आपको हजारों वीडियो मिलेंगे। किसी भी बड़े कारखाने में मोटरगाड़ी, ट्रैक्टर, बड़े-बड़े यंत्र बनते हैं, लेकिन इनके छोटे छोटे स्पेयर पार्ट बड़े कारखानों में नहीं बनते। दूसरे छोटे कारखानों में बनते हैं। सभी छोटे कारखानों का काम अकेला थ्री डी प्रिंटर कर सकता है।
तीसरी चीज है, इंटरनेट ऑफ थिंग्स
पहले उत्पादन की श्रृंखला में काम को आगे बढ़ाने का तरीका यह था कि एक आदमी दूसरे को, दूसरा तीसरे को, तीसरा चौथे को बनायी हुई चीज सौंप देता था। बाद में ये काम मशीनों से होने लगे, लेकिन उसे आगे सौंपने का काम आदमी ही करता था।
तीसरी औद्योगिक क्रांति में एक यंत्र था रोबोट, दूसरे यंत्र को काम सौंप देता था, लेकिन उसका नियंत्रण व्यक्ति के हाथ में होता था। चौथी औद्योगिक क्रांति में व्यक्ति के बदले आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आ बैठा। कारखाने में कौन-सी मशीन को क्या काम करना है, वह कब बिगड़ती है, उसे कैसे रिपेयर किया जा सकता है, एक यंत्र दूसरे यंत्र को काम कैसा सौंपता है, कारखाना चलाने में आने वाली तकलीफें और उसके उपाय यह सब उस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में भरी जाती हैं और वह अपने निर्णय खुद लेना चालू करता है। जैसे-जैसे काम होता है, वह अपने आप अपग्रेड होता जाता है। मैं तीन उदाहरण देता हूं।
जापान की पैनॉसोनिक कंपनी अपने टीवी या कम्प्यूटर के प्लाज्मा स्क्रीन बनाती है। एक महीने में 20 लाख स्क्रीन बनते हैं। कर्मचारी हैं सिर्फ 15, स्युवोट नाम की अमेरिकन कंपनी आदिदास कंपनी के लिए टीशर्ट बनाती है। एक साल में 2 करोड़ 30 लाख टी शर्ट बनाती है, लेकिन फैक्टरी के कर्मचारी हैं सिर्फ 22, कुनुक नाम की रोबोट बनाने की एक फैक्टरी है, वहां कभी लाइट की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि वहां कोई कर्मचारी ही नहीं है।
इन चारों औद्योगिक क्रांतियों के परिणाम क्या हुए? तकनीकी में बदलाव हुआ, उत्पादन का दर्जा सुधर गया, उत्पादन मांग से कई गुना बढ़ गया, इसलिए उत्पादक को नया बाजार ढूंढ़ना पड़ा। संपत्ति बढ़ गयी, लेकिन विषमता भी बढ़ गयी।
चौथी औद्योगिक क्रांति के पहले तकनीक कितना भी विकसित हुई, उस पर नियंत्रण मनुष्य का था। नई खोज के साथ नये रोजगार भी तैयार होने लगे। जैसे बिजली की खोज के बाद वायरमैन, इलेक्ट्रीशियन आदि के रोजगार बढ़ गये।
सही मायने में मशीन का काम क्या है? वह मनुष्य के श्रम, कार्यक्षमता और गलती करने की सीमा तोड़कर उत्पादन करती है। मशीन ने मनुष्य को श्रमहीन किया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने मनुष्य के निर्णय लेने की क्षमता को बेकार बना दिया। यह कोई छोटा बदलाव नहीं है, यह बहुत चिंताजनक है।
अगले 10-15 सालों में इसके परिणाम हमें दिखेंगे। बहुत सारी नौकरियां और काम नष्ट होंगे। कौन से काम नष्ट होंगे? जो एकविध, एकसुरा काम हैं, जिन कामों में पुनरावृत्ति है, वह सारे काम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस करेगा। आप किसी भी ऑफिस में जाकर देखिये, कम से कम 70 प्रतिशत काम एकसुरा और पुनरावृत्ति वाले होते हैं। ये कब नष्ट होंगे? जब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मनुष्य से सस्ता होगा, तो मनुष्य को काम से दूर किया जायेगा। ये दिन अब ज्यादा दूर नहीं हैं। खेती में भी कुछ अलग नहीं होने वाला है। अमेरिका की आयरोनॉक्स कंपनी पूरी खेती सेंसर्स इस्तेमाल करके करती है। इसमें उनको बहुत फायदा होता है। भारत में पौधों से कपास निकालने के लिए रोबोट आने वाले हैं। महाराष्ट्र में गन्ना काटने के लिए 300 यंत्र अगले सालों से आने वाले हैं। गन्ना काटना सीजनल काम है। महाराष्ट्र में 10 से 12 लाख मजदूर ये काम करते हैं। बहुत ही गरीब और पिछड़े वर्ग से ये मजदूर आते हैं। अगले साल उनका क्या होगा?
चौथी औद्योगिक क्रांति के बाद कौन सा काम बचेगा? जिस काम का प्रोग्राम नहीं बनता, जैसे हॉस्पिटल में आया या वार्डब्वाय का काम, नृत्य दिग्दर्शन करना। कौन से काम की मांग रहेगी? जो लाग बहुत ही अलग तरह से सोचते हैं, और जिनका तंत्रज्ञान पर प्रभुत्व है, वैसे गिने चुने लोगों की मांग रहेगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के यंत्र में आप जितनी सामग्री या डेटा भर देंगे, वह उतनी ही अच्छी तरह काम करेगा। अधिकाधिक रोजगार कम होते जायेंगे। कौन से क्षेत्र में कितने रोजगार कम होंगे, उसके बारे में कई सक्षम लोगों ने लिखा है। अभी देश की आज की आर्थिक स्थिति पर नजर डालेंगे।
नोटबंदी और जीएसटी से अर्थव्यवस्था पूरी तरह टूट चुकी है। देश के विकास की दर मार्च 2020 में न्यूनतम थी। भारतीय अर्थव्यवस्था ने आर्थिक मंदी में प्रवेश किया। बाजार में वस्तु उपलब्ध थी, लेकिन खरीदने वाला कोई नहीं था। क्योंकि लोगों के हाथों में पैसा ही नहीं था।
आबादी में सबसे ऊपर के 1 प्रतिशत लोगों के पास 51 प्रतिशत संसाधन हैं, उसके बाद के 4 प्रतिशत लोगों के पास 17 प्रतिशत, तीसरे स्तर पर 35 प्रतिशत के पास 27 प्रतिशत और अंतिम स्तर के 60 प्रतिशत लोगों के पास 5 प्रतिशत संसाधन हैं। ये दिसम्बर-2019 के आंकड़े हैं. नोटबंदी और जीएसटी के प्रभाव से अनेक छोटे-छोटे उद्योग बंद हुए। असंयमित उपभोग जारी रहा, उसके बाद कोरोना शुरू हुआ। आजकल कई अर्थशास्त्री कहते हैं कि पूंजीपतियों को आम आदमी का हाथ छोड़ना नहीं चाहिए। इसका कारण यह है कि एक सीमा के बाद बढ़ती हुई यह विषमता पूंजीपतियों को घाटा देती है। ताजा आंकड़े कहते हैं कि सर्वोच्च 5 प्रतिशत लोगों के पास 68 प्रतिशत संसाधन हैं, नीचे के 95 प्रतिशत लोगों के पास सिर्फ 32 प्रतिशत संसाधन हैं, लेकिन तंत्र विज्ञान की प्रगति के कारण सर्वोच्च 5 प्रतिशत रईसों की भूख और शौक मिटाने के लिए 95 प्रतिशत जनता के श्रम की जरूरत नहीं पड़ेगी।
जो लोग कॉलेज जाते हैं, टीवी पर समाचार सुनते हैं, अखबार पढ़ते हैं, उनको एक शब्द मालूम पड़ा है, ‘जॉबलेस ग्रोथ’, यानी विकास तो है, लेकिन बिना रोजगार के। जीडीपी का सीधा मतलब है, देश में होने वाले उत्पादन का टोटल यानी सकल राष्ट्रीय उत्पादन। अर्थशास्त्र में कहा जाता है कि जब जीडीपी 3 प्रतिशत बढ़ती है तो 9 प्रतिशत रोजगार बढ़ता है। इसमें ये माना गया है कि उत्पादन बढ़ता है तो रोजगार भी बढ़ता होगा। लेकिन बीते 20-25 सालों में जीडीपी की वृद्धि तो हुई, पर रोजगार में वृद्धि की दर कम होने लगी। इसका सीधा कारण यह है कि ऑटोमेशन की शुरुआत हो गयी है। अभी हमने तंत्रज्ञान के साथ विकास का प्रभाव कैसा होगा, यह देखा। जैसे जैसे तंत्रज्ञान का विकास होता है, नौकरियां कम होती हैं और संपत्ति का केन्द्रीकरण होता है। मनुष्य निर्माण का विचार करता है, उसके लिए श्रम करता है और उसका उपभोग करता है। सर्जनात्मक चिंतन, श्रम और उपभोग आदि क्रियाओं से उसे मनुष्यत्व प्राप्त होता है। मनुष्य के सर्जनात्मक चिंतन और उसके लिए श्रम करने का काम तंत्रज्ञान ने अपना लिया है। मनुष्य सिर्फ उपभोग के लिए बचा है, लेकिन पूरा समाज उपभोगी नहीं हो सकता। सिर्फ ऊपर के लोग ही उपभोक्ता होते हैं, ऐसे में आगे क्या होगा?
समाज में गिने चुने लोग काम करते रहेंगे। सतत बदलते तंत्रज्ञान के साथ जुड़ने का प्रयत्न करते रहेंगे और तनावग्रस्त मानसिकता में रहेंगे। दूसरा वर्ग रहेगा निकम्मे लोगों का, इस वर्ग में ठुकराये हुए कामगार, मजदूर और तंत्रज्ञान की वजह से बेदखल हुए लोग होंगे। इस व्यवस्था का बोझ किसके ऊपर आयेगा? खेती यानी गांवों के ऊपर, किसानों के ऊपर, आज किसानों की क्या स्थिति है? सरकार ने अभी 20 लाख करोड़ का पैकेज दिया, उसमें किसानों के लिए कुछ भी नहीं है। किसानों की आत्महत्या बढ़ती जा रही है। गांवों में पढ़े लिखे युवाओं के पास नौकरी नहीं है, इसलिए घर में बैठे हैं। खेतों में उत्पादन कम हुआ है। महाराष्ट्र में तो किसान के लड़के की शादी ही बड़ी समस्या बन गयी है। कोई भी पिता किसान के घर में अपनी लड़की देना नहीं चाहता।
अभी औद्योगिक क्रांति को हम अनदेखा नहीं कर सकते। उत्पादन बड़े पैमाने पर होगा और ग्राहकों के लिए हमने एक नयी संस्कृति को जन्म दिया है। इस संस्कृति ने वस्तु के रूप में व्यक्ति की प्रतिष्ठा का हिसाब सिखाया है। यह आदमी प्रतिष्ठित है, क्योंकि उसके पास कार, बंगला आदि है। व्यक्ति के भीतर हमने खरीदने का व्यसन जगाया है, व्यक्ति की सोच कम हो गयी है। परिणामत: व्यक्ति की सोच बहुत ही उथली हो गयी है। समाचार माध्यमों का मनुष्य के जीवन पर कब्जा करना, व्यक्ति की सोच उथली होना, केन्द्रीभूत उत्पादन और परिणामतः संपत्ति का केन्द्रीकरण जो किसी विकेन्द्रित राज्य व्यवस्था में असंभव होता है, उत्पादन संस्कृति की विविधता को नष्ट करता है और सबकी अभिरुचि एक समान बनाता है। क्या आपको इसमें फासिज्म के पदचिह्न नहीं दिख रहे हैं? आज हिन्दू धर्म का सबसे क्रूर और दबंग रूप पूरे देश को कब्जे में ले रहा है। आदमी कितना भी छोटा या महान हो, हर एक का आत्मसम्मान होता है। समाज में हर व्यक्ति के आत्मसम्मान का महत्त्व है। किसी के आत्मसम्मान को हम ठेस पहुंचायेंगे तो समाज का संतुलन बिगड़ता है।
औद्योगिक क्षेत्र में कोरोना के पश्चात ऑटोमेशन का वेग बढ़ गया है। लाखों रुपये खर्च करके, कर्ज लेकर इंजीनियर बने जवान लड़के-लड़कियां आज बेरोजगार हैं। हमें एक और चीज पर निर्णय करना होगा। आज तक हुईं चारों औद्योगिक क्रांतियां यूरोप में पैदा हुईं. यूरोप में जनसंख्या की वृद्धि दर नकारात्मक है, इस स्थिति में आटोमेशन और रोबोट का इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन पूरे विश्व में सबकी संस्कृति, पर्यावरण, लोकजीवन, जनसंख्या का घनत्व, भाषा, विज्ञान का विकास, जीवन की तरफ देखने की दृष्टि बहुत ही अलग है। ऐसे में सबके लिए तंत्र विज्ञान उत्पादन का एक ही फार्मूला इस्तेमाल करना सही नहीं है। हम इसे सही नहीं मानते, लेकिन उसे रोकने की ताकत हममें नहीं है। यह स्थिति स्वीकारने में हमें बहुत दुख होता है। इसलिए देश भर के परिवर्तनवादी कार्यकर्ताओं में निराशा की झलक दीख रही है। चौथी औद्योगिक क्रांति में जो आउट ऑफ बॉक्स सोचेगा, उसे परिस्थिति की चिंता नहीं रहेगी, यह पहले ही स्पष्ट किया है। स्वातंत्र्यपूर्ण काल में भारत में ऐसे सर्जक प्रयोग हुए हैं और उन प्रयोगों से लाखों लोगों को सम्मानपूर्वक रोजगार मिला है। समाज का कोई भी सवाल सुलझाने के तीन मार्ग होते हैं – पहला मार्ग है, सवाल का विश्लेषण करो, उसका उत्तर ढूंढने के लिए हमारे संसाधन क्या है, उस संसाधन के ऊपर प्रक्रिया करने का कौशल हमारे पास है क्या? क्या हम नये कौशल आत्मसात कर सकते हैं? हम एक समूह के तौर पर इस सवाल का जवाब तैयार कर सकते हैं क्या? इस मार्ग में समूह की भागीदारी सदजीवन की जिम्मेदारी अंतर्भूत होती है। दूसरा मार्ग है, सवाल सुलझाने के लिए मैं अपने जीवन में क्या बदलाव कर सकता हूं? मैं कोई वस्तु खरीदता हूं तो उस वस्तु की उत्पादन व्यवस्था को मान्यता देता हूं। यह हमें नहीं करना चाहिए। तीसरा मार्ग है, शासन संस्था के सामने सवाल सुलझाने के लिए मांगें रखना। इन तीनों मार्गों में आउट ऑफ बॉक्स सोच होनी चाहिए। अगर उत्पादन तंत्र न बदले तो वितरण तंत्र बदलना चाहिए। जैसे वर्धा शहर में उत्पादित होने वाला ‘गोरस पाक’ आपको अमेजॉन पर उपलब्ध है। आप उत्पादन तंत्र भले अपना रखो, लेकिन वितरण और मार्केटिंग में आधुनिक तंत्रज्ञान का इस्तेमाल कर हमारे ग्रामोद्योग कैसे सफल होंगे, यह सवाल लेकर हमें विविध प्रयास करते जाना चाहिए। नये विचारों के नये बुद्धिजीवियों को हमारे काम की तरफ आकृष्ट करना चाहिए। हमें उनसे व्यावसायिकता सीखनी चाहिए। उन्होंने एकादश व्रत नहीं पढ़ा है, लेकिन उनको पर्यावरण के प्रति प्रेम और आदर है। ये लोग अपनी जरूरतें कम रखने के आग्रही हैं। क्या हम इनसे संबंध जोड़ सकते हैं? क्या हम आंदोलनों में यह विचार रख सकते हैं?
तंत्रज्ञान को हम रोक नहीं सकते, उसको अपने हिसाब से, अपनी जरूरतों को मद्देनजर रखते हुए अपनी ओर झुकाने की व्यवस्था करनी होगी। आने वाला तंत्रज्ञान सिर्फ आर्थिक सवाल नहीं पैदा कर रहा है, वह पूरी संस्कृति, सभ्यता, कुटुम्ब व्यवस्था बदल रहा है। उसका असर नाट्य, शिल्प, चित्र और भाषा जैसे अभिव्यक्ति के सभी माध्यमों पर होने वाला है। मानव से श्रम और बुद्धि छीनकर उसे सिर्फ उपभोक्ता बनाने का विचार रखकर सब बदलाव होने वाले हैं। हमें जीवन के सभी अंगों में इस व्यवस्था के पर्याय खड़े करने होंगे। इसलिए आउट ऑफ बाक्स सोचने वाले तकनीकी विशेषज्ञों से लेकर, नाट्य, शिल्प, भाषा विशेषज्ञों तक सबको अपने साथ लेना पड़ेगा।
-विजय ताम्बे