जमीन के वितरण से लेकर भगवद्भक्ति तक का पंचविध कार्यक्रम सच्चे अर्थों में ग्रामराज्य, रामराज्य, लोकराज्य या स्वराज्य का स्वरूप होगा। दुनिया तृषित होकर शांति की तीव्र खोज में है।
सबसे पहले अधिष्ठान को लें तो भूमि अधिष्ठान है, जिसका विषम बंटवारा ही समाज रचना की सारी अच्छाइयों को नष्ट कर रहा है। ऐसे में सबसे पहला काम विषमता दूर कर सही वितरण करना होगा। दूसरा काम ग्रामसेवा और जनसेवा के लिए अच्छी तालीम देकर और विषय वासना से मुक्त होने की दीक्षा देकर, वानप्रस्थ आश्रम का जीवन में पुनुरुद्धार करते हुए कार्यकर्ताओं का निर्माण करना होगा। इसी क्रम में तीसरा काम गांवों के औजारों को सुधारकर गांवों की कच्ची चीजों से छोटे छोटे धंधे खड़े करना और जमीन तथा मलमूत्र आदि के सदुपयोग की व्यवस्था बनाना। गांवों में कुएं हों, गायें हों, हरा भरा वातावरण रहे, तभी लोगों को गांव की ओर आकर्षित करने की वजह बन सकेगी। चौथा काम गांवों के लोगों को नई-नई कलाएं सिखाना, जिसमें अच्छी मोचीकला, अच्छी बढ़ईगीरी, अच्छी चित्रकारी, अच्छी लोहरगीरी, अच्छा संगीत, अच्छा वाद्य आदि हों। गांव को कलावान, खूबसूरत और सुंदर बनाएंगे, तो उसका आकर्षण और बढ़ेगा। पांचवी और अंतिम बात यह कि गांव के सभी लोग भगवान के भक्त बनें। हमारा गांव स्वयं में एक विद्यापीठ हो, जहां शहर के लोग संस्कार और धर्म की दीक्षा पाने के लिए आने की उत्कंठा रक्खें, ऐसा गांव बनाना है।
बाबा इसीलिए कहते थे कि हमारे आराध्यदेव हमारे देहात ही हैं। भारत के आराध्य देव नगरों में न होकर देहातों में ही हैं। हमारे गांव छोटे-छोटे रहेंगे। जैसे मां अपने छोटे बालक की खूब सार संभाल रखती है। जैसे लोग बालकृष्ण को पूजते हैं, वैसे ही हम गांवों की सेवा करेंगे। वहां सफाई, सहकार, स्वाबलंबन, विद्या प्रसार, विचार प्रसार आदि का वातावरण बनायेंगे। ऐसे गांवों में न कभी दंगा,फसाद होगा, न ऊंच-नीच का भाव रहेगा, न जाति भेद ही होगा। आप देखेंगे कि इस तरह जमीन के वितरण से लेकर भगवद्भक्ति तक का पंचविध कार्यक्रम सच्चे अर्थों में ग्रामराज्य, रामराज्य, लोकराज्य या स्वराज्य का स्वरूप होगा। दुनिया तृषित होकर शांति की तीव्र खोज में है। हिंदुस्तान में शांति की हवा है। यहां पर यह काम हो सकता है। -रमेश भइया