जहरीली हवा में जीवन जीते हम

देश में वायु प्रदूषण एक आम भारतीय से उसके जीवन के औसतन 5.9 वर्ष कम कर रहा है। दुनिया की 99% आबादी जहरीली हवा में सांस ले रही है। आंकड़ों के मुताबिक आज दुनिया के 117 देशों के 6000 से अधिक शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है, लेकिन इस निगरानी का वायु गुणवत्ता की वास्तविक स्थिति पर कोई बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ रहा है, बल्कि अधिकांश देशों में वायु गुणवत्ता की स्थिति और बिगड़ती ही जा रही है।

आज हमारे स्वास्थ्य को कई अलग-अलग दिशाओं से चुनौती मिल रही है, उनमें से दो हैं प्रदूषण और बीमारियां। आजकल होने वाली बहुत सी बीमारियों का कारण प्रदूषण है। प्रदूषण को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल के पहले एक बहुत ही महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें उसका कहना है कि आज दुनिया की 99% आबादी जहरीली हवा में सांस ले रही है। इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि लगभग 8 अरब लोग अपनी सांस के द्वारा ऐसी हवा अंदर ले रहे हैं, जो सीधे-सीधे उनके स्वास्थ्य और जीवन दोनों के लिए खतरा है। विश्व स्वास्थ संगठन की रिपोर्ट 117 देशों में किए गए उनके अध्ययन पर आधारित है। आजकल अधिकांश देशों में वायु प्रदूषण की मॉनिटरिंग की जाती है। भारत में भी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एवं राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के द्वारा वायु प्रदूषण की मॉनिटरिंग की जाती है। इसके अतिरिक्त भारत में सफर (SAFAR) नामक तंत्र के द्वारा भी वायु प्रदूषण की रियल टाइम स्थिति की जानकारी रखी जाती है।

भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति की जानकारी रखने के लिए जिन 8 चीजों पर नजर रखी जाती है, उनमें दो तरह के कणीय पदार्थ (PM10 एवं PM2.5), तथा 6 अन्य गैसें नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सतही ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड अमोनिया एवं लेड हैं। विश्व स्वास्थ संगठन ने अपने अध्ययन का आधार इनमें से दो चीजों को बनाया है वह है कणीय पदार्थ एवं नाइट्रोजन डाइऑक्साइड। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड को विश्व स्वास्थ संगठन ने पहली बार अपने अध्ययन में शामिल किया है। दुनिया में वायु प्रदूषण की समस्या कितनी गंभीर है, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि इस कारण प्रत्येक वर्ष 70 लाख से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो रही है। हालांकि विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार अब दुनिया के ज्यादातर देश वायु प्रदूषण को लेकर गंभीरता दिखा रहे हैं और अब अधिक देशों के अधिक शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी हो रही है। ध्यान देने वाली बात है कि वायु गुणवत्ता की निगरानी करने वाले शहरों की संख्या पहले की तुलना में 2000 से बढ़ गई है। दरअसल 2011 में यह डेटाबेस लॉन्च होने के बाद से वायु गुणवत्ता के आंकड़ों को साझा करने वाले शहरों की संख्या में छह गुना की वृद्धि हुई है। आंकड़ों के मुताबिक आज दुनिया के 117 देशों के 6000 से अधिक शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है, लेकिन इस निगरानी का वायु गुणवत्ता की वास्तविक स्थिति पर कोई बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ रहा है, बल्कि अधिकांश देशों में वायु गुणवत्ता की स्थिति और बिगड़ती ही जा रही है। विशेषकर विकासशील एवं अवकसित देशों में यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर है अर्थात उच्च आय वाले देशों की तुलना में मध्यम और निम्न आय वर्ग वाले देशों में वायु प्रदूषण से होने वाले खतरे कहीं ज्यादा गंभीर हैं। जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार उच्च आय वर्ग वाले देशों में 17% शहरों में कणीय पदार्थों की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा तय की गई सीमा से कम है जबकि मध्य में निम्न आय वर्ग वाले देशों में यह संख्या 1% शहरों से भी कम है। कमोबेश ऐसी ही स्थिति नाइट्रोजन डाइऑक्साइड को लेकर भी है।

नाइट्रोजन डाइऑक्साइड एवं कणीय पदार्थों का स्वास्थ्य पर असर
नाइट्रोजन डाइऑक्साइड हमें कई तरीके से प्रभावित करता है. यह सीधे हमारे फेफड़े में जाकर हमारे फेफड़ों के ऊपर असर डालता है. वहां मौजूद म्यूकस के साथ मिलकर डाइल्यूटेड एसिड एनी अम्ल का निर्माण करता है, जो फेफड़ों को सीधे तौर पर प्रभावित करता है और लोग कई तरह के श्वसन संबंधी रोगों से प्रभावित होते हैं। इसके अतिरिक्त यह वातावरण में मौजूद हाइड्रोकार्बन के साथ मिलकर सतही ओजोन का निर्माण करता है, जो फोटोकेमिकल स्मॉग का मुख्य घटक है. यह सतही ओजोन पेड़-पौधों के लिए हानिकारक होता है. यह एल्डिहाइड के निर्माण में भी सहायक होता है, जिसके कारण शहरियों को आंखों में जलन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त यह दृष्टि बाधक का भी काम करता है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का मुख्य स्रोत पेट्रोलियम है।

वातावरण में कणीय पदार्थों की उपस्थिति हमारे स्वास्थ्य को कई तरह से प्रभावित करती है। PM 2.5 और उससे छोटे कण आसानी से हमारे फेफड़ों के माध्यम से हमारे रक्त परिसंचरण तंत्र तक पहुंच जाते हैं और इसके बाद हृदय आघात, स्ट्रोक और सांस सम्बन्धी विकार पैदा हो सकते हैं। इस बात के भी प्रमाण सामने आए हैं कि पार्टिकुलेट मैटर शरीर के कई अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। कई बीमारियों के जोखिम को और बढ़ा सकता है। गर्भावस्था के दौरान प्रदूषण के इन सूक्ष्म कणों के संपर्क में आने से जन्म के समय नवजातों का वजन सामान्य से कम हो सकता है, जिसकी वजह से जन्म के तुरंत बाद ही उनकी मृत्यु हो सकती है। जर्नल प्लस मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध में यह बताया गया है कि वायु प्रदूषण के चलते दुनिया भर में हर साल करीब 59 लाख नवजातों का जन्म समय से पहले ही हो जाता है, जबकि इसके चलते करीब 28 लाख शिशुओं का वजन जन्म के समय सामान्य से कम होता है। अगर हम भारत की बात करें तो एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि देश में वायु प्रदूषण एक आम भारतीय से उसके जीवन के औसतन 5.9 वर्ष कम कर रहा है। ऐसी स्थिति में अगर सही समय से सही कदम उठाए जाएं तो हम वायु गुणवत्ता की स्थिति में सुधार लाकर लोगों की जीवन प्रत्याशा को बेहतर कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए हम सबको मिलकर काम करना होगा।

-धीप्रज्ञ द्विवेदी

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