अपनी एक रिपोर्ट में नीति आयोग कहता है कि वर्ष 2030 तक देश के 40% लोगों की पहुंच पीने के पानी तक नहीं होगी. पिछले 10 सालों में देश की करीब 30 फीसदी नदियां सूख चुकी हैं। वहीं पिछले 70 सालों में 30 लाख में से 20 लाख तालाब, कुएं, पोखर, झील आदि पूरी तरह खत्म हो चुके हैं। ग्राउंड वाटर (भूजल) की स्थिति भी बेहद खराब है। देश के कई राज्यों में कुछ जगहों पर तो ग्राउंड वाटर लेवल 40 मीटर तक नीचे जा चुका है। खबर है कि चेन्नई में धरती के 2000 फीट नीचे भी पानी नहीं मिला.
जलपुरुष राजेन्द्र सिंह कहते हैं कि देश भर में 10 साल पहले कुल 15 हजार के करीब नदियां थीं। इस दौरान करीब 30 फीसदी नदियां यानी साढ़े चार हजार के करीब सूख गई हैं, ये केवल बारिश के दिनों में ही बहती हैं। वे बताते हैं कि कुछ वर्ष पहले उनकी टीम ने देश भर में एक सर्वे किया था, जिससे पता चला कि आजादी से लेकर अब तक देश में दो तिहाई तालाब, कुएं, झील, पोखरे, झरने आदि पूरी तरह सूख चुके हैं। आजादी के समय देश में 7 लाख गांव थे। लगभग एक लाख गांव पाकिस्तान में जाने के बाद 6 लाख गांव बचे। हमारे लगभग हर गांव में औसतन 5 जल संरचानाएं होती थीं। इस अनुपात से देशभर में 30 लाख! लेकिन बीते सालों में तकरीबन बीस लाख जल संरचनाएं पूरी तरह सूख चुकी हैं। देश में भूजल-स्तर प्रतिवर्ष 3 मीटर नीचे जा रहा है। ऊपर से अभी हम 72% पानी का अतिरिक्त दोहन कर रहे हैं।
राजेंद्र सिंह कहते हैं कि सरकार को जल संरक्षण पर पूरा फोकस करना चाहिए। जल शक्ति मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में कई स्थान ऐसे हैं, जहां पानी 40 मीटर तक नीचे चला गया है। इसमें मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों के नाम हैं। मौसम वैज्ञानिक वेद प्रकाश सिंह के मुताबिक मानसून में 81 फीसदी से कम बारिश होने पर सूखे की स्थिति मानी जाती है, लेकिन वर्ष 2000 के बाद ऐसा कभी नहीं हुआ है। ये जरूर है कि पानी का दुरुपयोग करने के कारण हमने ऐसी स्थिति बना दी है, जैसे हमेशा बारिश 50 फीसदी से कम ही होती रही हो। नदियों के सूखने के पीछे मानवीय गलतियां भी हैं।
देश की 93 फीसदी नदियां झरनों से निकलती हैं, लेकिन भूजल के बढ़ते दोहन के कारण अब झरने भी सूख गए हैं। दूसरी तरफ अत्यधिक सिंचाई कार्य भी नदियों को प्रभावित कर रहा है। नालों का प्रदूषित जल नदियों में मिलने के कारण इनका जीन पूल भी खत्म हो रहा है। लगातार घटते पेड़ और नदियों के किनारे बढ़ती बसाहट भी इनकी बर्बादी के अहम कारण हैं।
बारिश का कितना पानी जमा करते हैं
अमेरिका 6000
ऑस्ट्रेलिया 5000
चीन 2500
स्पेन 1500
भारत 200
पाकिस्तान 100
मीटर क्यूब/व्यक्ति, 1 मी. क्यूब=1000 लीटर
सर्वाधिक ग्राउंड वाटर नीचे जाने वाले राज्य
राज्य कितने स्थानों पर
राजस्थान 20% स्थान
हरियाणा 20% स्थान
गुजरात 12% से अधिक
चंडीगढ़ 22% से अधिक
मध्य प्रदेश 4% से अधिक
देश में पानी का हाल
मध्यप्रदेश के बांधों में 90% से अधिक पानी खत्म
प्रदेश में पिछले साल हुई कम बारिश की वजह से अधिकांश बांधों में पानी बहुत कम हो गया है। नर्मदा नदी पर बने तीन प्रमुख बांधों इंदिरा सागर, ओंकारेश्वर और जबलपुर स्थित बरगी में से किसी में भी 50 फीसदी से ज्यादा पानी नहीं बचा है। ओंकारेश्वर बांध में तो दस फीसदी से भी कम पानी बचा हुआ है। खास बात यह है कि प्रदेश के अन्य बांधों की भी कमोबेश यही स्थिति है। ऐसे कई बाँध हैं, जिनमें कुल क्षमता का दस प्रतिशत से भी कम पानी शेष है। प्रदेश की नर्मदा नदी में भी पानी आधा रह गया है। 1979 में अनुमान था कि नर्मदा बेसिन में कुल 2 करोड़ 80 लाख एकड़ फीट पानी मौजूद है। 2017-18 में यह 1.54 करोड़ एकड़ फीट तक पहुंच गया है।
झारखंड में सूख जाती हैं राज्य की 95% नदियां
झारखंड में 16 बड़ी और 24 से अधिक छोटी नदियां हैं। गर्मी के दिनों में 95 प्रतिशत से अधिक नदियां सूख जाती हैं या इनमें पानी का बहाव इतना कम होता है कि वह नहीं के बराबर है। सरकार के आंकड़ों के हिसाब से पूरे रांची जिले में करीब 900 तालाब हुआ करते थे, जिनमें अब केवल 280 ही बचे हैं। इसी प्रकार पूरे राज्य में करीब 10 हजार तालाब हुआ करते थे, जिसमें से 7860 तालाब ही बचे हैं। जो बचे हैं, उनमें भी मई-जून में आधे तालाबों का पानी सूख जाता है। हालांकि झारखंड के गठन के बाद हर गांव एवं पंचायत में नए तालाब खोदे भी जा रहे हैं।
राजस्थान में तालाबों पर अतिक्रमण
राजस्थान के शहरी इलाके में तालाब और बावड़ियों की संख्या 772 है। इनमें से 443 में तो पानी है, जबकि शेष 329 बावड़ियां और तालाब सूख चुके हैं या इन पर अतिक्रमण हो चुका है। राजस्थान में 11 प्रमुख नदियां हैं, जिन्हें पेयजल या सिंचाई के काम में उपयोग करते हैं। इनमें से ज्यादातर बरसाती नदियां हैं, जो केवल बारिश के मौसम में ही बहती हैं। बारिश के बाद ये सूख जाती हैं।
उत्तरप्रदेश में 7 साल में 77 हजार कुएं सूखे
उत्तर प्रदेश में 1 लाख 77 हजार कुएं हैं, जबकि केवल पिछले पांच साल में 77 हजार कुएं कम हुए हैं। सिंचाई विभाग के आकड़ों के अनुसार कुल तालाबों/ पोखरों की संख्या 24354 है, जिसमें से 23309 तालाब/पोखरों में पानी भरना पड़ा है और इन्हीं पांच सालों में 1045 तालाब कम भी हुए हैं। यहां करीब 24 झीलें हैं, लेकिन पांच साल में 12 झीलें सूखकर खत्म हो चुकी हैं।
बिहार में 4.5 लाख हैंडपम्प सूख गए
लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के अनुसार बिहार में लगभग 4.5 लाख हैंडपंप (चापाकल) सूख चुके हैं। 8386 में से 1876 पंचायतों में ग्राउंड वाटर नीचे चला गया है। बिहार सरकार के मत्स्य निदेशालय के अनुसार लगभग 20 वर्ष पहले राज्य में सरकारी और निजी तालाबों की संख्या 2.5 लाख थी, जो अब घटकर 98401 हो गई है। यहां 150 छोटी-बड़ी नदियां हैं, उनमें से 48 सूख गई हैं।
-सर्वोदय जगत डेस्क