इलेक्टोरल बांड योजना अविलम्ब रद्द हो

इलेक्शन बांड स्कीम को तत्काल बंद करना अति आवश्यक है, क्योंकि अगर इसे तुरंत बंद नहीं किया गया तो देश में लोकतंत्र बिलकुल ख़त्म हो जाएगा.

यह देश में लोकतंत्र की रक्षा करने और भ्रष्टाचार की गंगोत्री को मिटाने केलिए शुरू किया गया अभियान है। इसमें एडीआर \ सीएफडी \पीयूसीएल\ एनएपीएम \ एलआरएन \ सोसाइटी फॉर कम्युनल हार्मनी जैसे गैरराजनीतिक संगठनों से जुड़े लोग शामिल हैं।

आप जानते हैं कि आज हमारे लोकतंत्र पर पूंजीपतियों का कब्जा हो गया है। बड़े बड़े पूंजीपति इलेक्शन बांड के माध्यम से सरकार को घूस दे रहे हैं और उसी पैसे से जनता का वोट खरीद लिया जाता है। स्वाभाविक है कि सरकार पर कब्जा वोट बेचने वालों का नहीं, वोट खरीदने वालों का हो गया है। इलेक्शन बांड के नियम ऐसे हैं कि किस कंपनी ने किस दल को रिश्वत दी, पता नहीं चलता। इलेक्शन बांड द्वारा दी गयी अधिकांश रिश्वत भाजपा को मिल रही है। यदि कोई पूंजीपति किसी अन्य दल को कोई बड़ी मदद कर दे तो उस पर इंकमटैक्स का छापा पड़ जाता है।

भाजपा सरकार ने अमीरों पर से संपत्ति कर हटा दिया और कंपनियों पर कर बहुत कम कर दिया है, जबकि गरीबों के आटे दाल पर टैक्स लगाकर डेढ़ लाख करोड़ रुपए से अधिक प्रतिमाह वसूल रही है। बड़े बड़े उद्योगों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे बेरोजगारी तेजी से बढ रही है। क्योंकि इन बड़े उद्योगों में ज्यादातर काम ऑटोमेटिक मशीनों से किया जाता है।

मतदाता का मत बदलने वाले इलेक्टोरल बांड्स लोकतंत्र के लिए खतरा हैं

नोटबंदी इसलिए लागू की गयी थी कि लोगों के घरों में रखा पैसा बैंकों में चला जाये और बैंक वह पैसा कर्ज के तौर पर बड़े बड़े उद्योगपतियों को सस्ती दरों पर दे सकें। दुनिया के सबसे बड़े उद्योगपतियों में से एक अडाणी समूह पर करीब दो लाख करोड़ रुपए का कर्ज है। अनेक उद्योगपति पैसा लेकर विदेश भाग जा रहे हैं। किसानों, पशुपालकों, छोटे व्यापारियों, छात्रों आदि को जल्दी कर्ज नहीं मिलता। जो मिलता है वह भी ऊंचे दर पर। हां टीवी, स्कूटर, कार आदि के लिए कर्ज जरूर मिलता है, ताकि बड़े उद्योगों का माल बिकता रहे।

सरकार मंहगाई रोकने में कोई रुचि नहीं रखती है। हाल ही में पाम ऑयल की जमाखोरी की छूट दे दी गई है। किसानों को उचित दाम नहीं मिलता और व्यापारी जनता को लूट रहे हैं। यह सब इलेक्शन बांड और काले धन के रूप में दिये जा रहे चंदे के कारण हो रहा है।

और अब तो हमारी आजादी भी खतरे में है। विदेशी कंपनियां भी इलेक्शन बांड के जरिए रिश्वत दे रही हैं। इलेक्शन बांड को एफसीआरए के कानूनों से मुक्त रखा गया है। यही कारण है कि अमेजन और फ्लिपकार्ट की बढ़ोत्तरी के परिणामस्वरूप लाखों लोग बेरोजगार हो गये हैं। कोकाकोला जैसी विदेशी कंपनियों का एकछत्र राज हो गया है।

इलेक्शन बांड और काले धन के माध्यम से देश पर सबसे बुरा असर भ्रष्टाचार का पड़ रहा है। ईमानदार आदमी चुनाव नहीं लड़ सकता है। राजनीति में ज्यादातर भ्रष्ट और पूंजीपतियों का राज हो गया है। पंचायत चुनाव में भी करोड़ों खर्च करने वाले लोग मौजूद हैं। जब ऐसे लोग जीतेंगे तो भ्रष्टाचार करेंगे ही। यथा राजा, तथा प्रजा। जब नेता ही भ्रष्ट होगा तो कर्मचारी को भी होना पड़ेगा। यही कारण है कि देश में बारंबार भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन होने पर भी कोई रोक नहीं लग पायी। हाल ही में मोरवी गुजरात में भ्रष्टाचार के कारण ही 134 लोगों की जान चली गई। सरकार जब अपने उद्योगपति मित्रों का लाखों करोड़ रूपये माफ कर सकती है तो क्या दस बीस हजार करोड़ चुनाव रूपये लड़ने वालों को नहीं दे सकती?

आगामी 6 दिसंबर 2022 को सर्वोच्च न्यायालय इलेक्शन बांड को रद्द करने पर सुनवाई करेगा। यही मौका है कि जनता इसका खुलेआम विरोध करे। हस्ताक्षर अभियान चलाया जाये। लेख लिखे जायें। मीटिंग्स की जायें। सोशल मीडिया पर भी अभियान चलाया जाये।

इलेक्शन बांड के खतरे
हालाँकि सरकार बार बार कहती रही है कि इलेक्शन बांड ने राजनैतिक चंदे की प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी बना दिया है पर सच्चाई इसके बिलकुल उलट है, इलेक्शन बांड ने राजनैतिक चंदे की प्रक्रिया को पूरी तरह से छिपा लिया है।

कानून के मुताबिक, केवल स्टेट बैंक ही जानता है कि किसने कितने रूपये के इलेक्शन बांड ख़रीदे और किस राजनैतिक दल ने कितने रूपये के इलेक्शन बांड भुनाये। स्टेट बैंक इसका विवरण केवल और केवल अदालत के आदेश पर ही बताने को बाध्य है।

लेकिन यह तो स्पष्ट है कि स्टेट बैंक, सरकार (वित्त मन्त्रालय) से कोई भी सूचना छिपा नहीं सकता और एक बार जो भी सूचना वित्त मन्त्रालय को मिल जाती है, वह सूचना सत्तारूढ़ दल को तो सीधे-सीधे मिल जाती है। यही कारण है कि 10,000 करोड़ रूपये के भुनाये गये इलेक्शन बांड में से 70-75% भारतीय जनता पार्टी को मिले हैं और बाकि सब राजनैतिक दलों को बाकी बचे 25-30% इलेक्शन बांड ही मिले हैं।

इलेक्टोरल बांड्स का ब्यौरा बताने के लिए स्टेट बैंक को अदालत ही बाध्य कर सकती है।

चुनाव जीतने में पैसा खर्चने का महत्व बहुत ज़्यादा है, इसलिए इलेक्शन बांड का इस तरह का बंटवारा चुनावों को पूरी तरह एक-तरफ़ा कर देता है, जिससे भाजपा को ज़बर्दस्त और अनुचित फायदा होता है।

और भी दिक्कते हैं इलेक्शन बांड में
इन्हें संसद में केंद्रीय बजेट के एक हिस्से के तौर पर पारित किया गया था, जो असंवैधानिक है, क्योंकि बजट एक ‘मनी बिल’ है और इलेक्शन बांड को ‘मनी बिल’ में शामिल करना संवैधानिक नहीं है।

पहले प्रावधान था कि कोई भी कंपनी अपने पिछले तीन साल के औसत लाभ का केवल 7.5% ही राजनैतिक दलों को चंदे के तौर पर दे सकती थी, ये 7.5% की सीमा अब हटा दी गई है और अगर कोई कंपनी चाहे तो अपना 100% मुनाफा राजनैतिक दलों को चंदे के रूप में दे सकती है।

एक प्रावधान यह भी था कि अगर कोई कंपनी किसी भी राजनैतिक दल को चंदा देती थी तो उसे राजनैतिक दल का नाम और चंदे में दी गई राशि उजागर करनी होती थी। इस प्रावधान को पूरी तरह से हटा दिया गया है और अब कंपनी को न तो चंदे की राशि, न राजनैतिक दल का नाम बताने की ज़रुरत है।

एफसीआरए में संशोधन कर के विदेशी स्त्रोत की परिभाषा को पूर्वप्रभावी रूप से बदल दिया गया है। नई परिभाषा के मुताबिक विदेश में स्थित कोई भी कंपनी भारत में अपनी सहायक अथवा अधीन कंपनी खोलकर, उसके द्वारा राजनैतिक दलों को चंदा दे सकती है। ये विदेशी कंपनी चाहे हथियार बनाने वाली हो, चाहे नशीले पदार्थ बनाने वाली हो, चाहे तस्करी या आतंकवाद जैसी अवांछनीय गतिविधियों में ही क्यों ण लिप्त हो। ऊपर लिखी हुई तीनों बातें भारतीय लोकतंत्र को सम्पूर्णतया धन बल के कब्ज़े में ले सकती हैं। बड़ी बड़ी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनिया मोटे मोटे चंदे देकर राजनैतिक दलों को पूरी तरह आपने नियंत्रण में करके, इन दलों की बनाई हुई सरकारों को देश और जनता के हितों के विरुद्ध फैसले लेने के लिए मजबूर कर सकती हैं। ऐसी स्थिति देश की सुरक्षा और अखंडता के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।

इलेक्शन बांड खरीदने वालों की जानकारी केवल स्टेट बैंक (और उसके द्वारा सत्तारूढ़ दल) तक सीमित रहना, बाकी सारे विपक्षी दलों को मिलने वाले चंदे को बिलकुल बंद कर सकता है। इससे देश में केवल एक ही राजनैतिक दल की सरकार अनंत काल तक बनी रह सकती है, क्योंकि और कोई भी दल सत्तारूढ़ दल की धनबल की क्षमता का मुकाबला नहीं कर सकेगा और चुनाव पूरी तरह एक-तरफ़ा हो जायेंगे।

इन कारणों की वजह से इलेक्शन बांड स्कीम को तत्काल बंद करना अति आवश्यक है, क्योंकि अगर इसे तुरंत बंद नहीं किया गया तो देश में लोकतंत्र बिलकुल ख़त्म हो जाएगा।

-रामशरण

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