देखिये न! कान खोल कर सुन लीजिए, हम गांधी को फिर मरने नही देंगे!

गांधी की जितनी आलोचना करनी हो, कीजिए पर यह बात कान खोलकर सुन और समझ लीजिये, गाली नही देने देंगे अब हम आपको। शरीर को मार डाला आपने, आत्मा छेदने की इजाजत नहीं होगी। देश किसी की आलोचना पर सहिष्णु हो सकता है, हत्या पर नहीं। हर गोडसे को सलाखों के पीछे डाला जाएगा। हर हत्यारे को चौराहे पर लाया जाएगा। रायपुर से नागपुर तक, वह चाहे जहां छुपा बैठा हो, खोजकर उसे उसके अंजाम तक पहुंचाया जाएगा। आप जितना जोर लगा सकते हैं, लगा लीजिये, हम गांधी को फिर मरने नहीं देंगे।

गांधी भगवान नहीं थे, अवतार नहीं थे, नबी नहीं थे, जीसस भी नहीं थे। वे खुद ही कहते थे कि मैं तो एक मामूली इंसान हूँ। वे जो सोचते थे, बोलते थे, उसे लोग सुनते थे, मान जाते थे, या नहीं भी मानते थे। फिर भी हम गांधी को पूजते हैं। किसी मन्दिर में नहीं, हृदय के भीतर। माना कि गांधी ईश्वर नहीं हैं, माना कि वह आलोचना से परे नहीं हैं। हों भी क्यों? हम तो यहाँ ईश्वर की भी आलोचना करते हैं। राम द्वारा शंबूक की हत्या पर, बाली को छुपकर मारने पर, स्त्री के त्याग पर। हम तो भारत के हिन्दू हैं, टिप्पणी कृष्ण पर भी करते हैं, संविधान पर भी। इसलिए यह सही है कि आलोचना से परे तो कोई नहीं है। खुद गांधी भी नहीं हैं। पर तय तो हो कि आलोचना किस बात की करेंगे? विरोध किस बात का करेंगे? क्या सत्य बोलने के आग्रह पर आलोचना करेंगे? क्या अहिंसा के प्रण पर आलोचना करेंगे? क्या आप भरोसे, मुस्कान, प्रेम और एकता के विचार के लिए गांधी का विरोध करेंगे, या भाईचारे के उनके आग्रह पर विरोध करेंगे?


विरोध या आलोचना हो कहाँ पाती है आपसे? आप जब झूठ फैलाते हैं, तो खुद ही उसे “असली सच” का नाम देते हैं। देखिये न, सत्य का ढोंग ही सही, पर वह आपकी भी जरूरत है। और आप तो हिंसा भी चाहते हैं, पर उसे “नये स्वाधीनता संग्राम” का नाम देकर प्रतिष्ठित भी करते हैं, क्योकि बापू के स्वाधीनता संग्राम में तो आप कहीं थे नहीं। आपके इस विरासत में हिस्सेदारी चाहिए। तो नकली लालकिला बनायेंगे। नकली इतिहास गढ़ेंगे।


आप भी एकता चाहते हैं, पर अपने वर्ण, जाति के लोगों के बीच। क्योंकि सेना बनानी है आपको। देखिये न, एकता की बात अपने फायदे के दायरे में आप भी चाहते हैं। लेकिन जब गांधी की शिक्षाओं से, उनके असर और व्यक्तित्व से न लड़ सके, तो आपने गांधी को ही खत्म कर दिया।
इस उम्मीद में कि विचारों का ये झरना मिट जाएगा। वह गोडसे जो कर गया, अधूरा ही रह गया। गांधी नही मिटा, वह और बड़ा हो गया, इसलिए तिहत्तर साल से आप गोडसे का कद बढ़ा रहे हैं। नाथूरामों की संख्या बढ़ा रहे हैं।


देखिये न, लगभग दो तिहाई शताब्दी बाद भी आपकी कैसी कैसी मजबूरियां हैं! गोडसे का समर्थन! हत्या का समर्थन! अपराध का समर्थन! आप एक निरीह वृद्ध की छातियों से रिसते लहू की कल्पना करते हैं। लेकिन देखिये न, विशाल गांधी ठठाकर हंसता है और आप पिस्तौल उठाकर फिर-फिर उसी कोशिश में लग जाते हैं।


संभव है कि गोडसे अच्छा पुत्र, पिता, छात्र, या आपके संगठन का समर्पित कार्यकर्ता रहा हो। इस बात की प्रशंसा कर लीजिए। गुणों के आधार पर इस देश में पूजा रावण की भी हो सकती है, महिषासुर की भी। यह तो इतना उदार देश है कि जिन्ना तक की तस्वीर उनके विश्वविद्यालय में लग जाती है।


मगर रावण द्वारा स्त्री अपहरण का प्रशंसक कोई नहीं मिलेगा, जिन्ना के बंटवारे की जिद का समर्थक कोई नहीं मिलेगा। गोडसे द्वारा गांधी की हत्या की प्रशंसा नहीं हो सकती। निहत्थे, प्रार्थना को जाते एक निःशंक, कृशकाय वृद्ध के पैर छूकर उसे मार डालना, कतई कायरतापूर्ण जघन्य और क्रिमिनल एक्ट था। इसकी इजाजत न तो आपका हिन्दू धर्म देता है, न आपका आत्मार्पित संविधान।


इसलिए गांधी की जितनी आलोचना करनी हो, कीजिए पर यह बात कान खोलकर सुन और समझ लीजिये, गाली नही देने देंगे अब हम आपको। शरीर को मार डाला आपने, आत्मा छेदने की इजाजत नहीं होगी। देश किसी की आलोचना पर सहिष्णु हो सकता है, हत्या पर नहीं।


कान खोलकर ही एक बात और सुन लीजिये। हर गोडसे को सलाखों के पीछे डाला जाएगा। हर हत्यारे को चौराहे पर लाया जाएगा। रायपुर से नागपुर तक, वह चाहे जहां छुपा बैठा हो, खोजकर उसे उसके अंजाम तक पहुंचाया जाएगा। आप जितना जोर लगा सकते हैं, लगा लीजिये, हम गांधी को फिर मरने नहीं देंगे।

-मनीष सिंह

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