जनमन
आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था। महात्मा गांधी ने शराबमुक्त भारत की कल्पना की थी। उन्होंने यहां तक कहा था कि यदि मैं एक दिन का शासक बन जाऊं तो बिना मुआवजा दिए शराब की सभी दुकानें बंद करा दूं।
खबर है कि शराब पीने से मोतिहारी के तुर्कौलिया, हरसिद्धि , सुगौली और पहाड़पुर में करीब तीन दर्जन लोगों की मौत हो गई है। पिछले वर्ष सारण, मुजफ्फरपुर और भागलपुर में दर्जनों लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हुई थी। जब से बिहार में शराबबंदी कानून लागू हुआ, तब से अब तक 199 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हुई है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराब पीकर मरने वालों को चार लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा की है।
शराबबंदी का हम न केवल समर्थन करते हैं, बल्कि उसके लिए सतत अभियान भी चला रहे हैं। लोक समिति के भागलपुर जिला संयोजक गौतम मल्लाह पर शराब माफियाओं के खिलाफ अभियान के चलते तिलका मांझी विश्वविद्यालय थाने में मुकदमा दर्ज हुआ और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। अभी वे जमानत पर बाहर हैं। शराबबंदी की असफलता के पीछे पुलिस माफिया गठजोड़ एक मुख्य कारण है। शराब पीने से हुई इन मौतों से स्पष्ट है कि केवल कानून बना देने से सफलता प्राप्त नहीं होती। कानून के साथ-साथ जागरूकता अभियान भी जरूरी है। बिहार में बहुत से ऐसे संगठन और संस्थाएं हैं, जो शराबबंदी के लिए प्रयासरत हैं। मुख्यमंत्री को चाहिए कि उन संगठनों को प्रोत्साहित करें और पुलिस माफिया गठजोड़ पर कड़ा प्रहार करें। आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था। महात्मा गांधी ने शराबमुक्त भारत की कल्पना की थी। उन्होंने यहां तक कहा था कि यदि मैं एक दिन का शासक बन जाऊं तो बिना मुआवजा दिए शराब की सभी दुकानें बंद करा दूं।
आजादी के बाद भारत की केंद्र सरकार ने अप्रैल, 1958 तक पूरे देश में शराबबंदी का लक्ष्य रखा था, जो कभी पूरा नहीं हो पाया। हालांकि आजादी के दो दशक बाद तक मौजूदा महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक और केरल का बड़ा हिस्सा शराबमुक्त था, लेकिन 1967 में इनमें से ज्यादातर राज्य सरकारों ने अतिरिक्त राजस्व के लोभ में शराब की बिक्री की अनुमति दे दी। इसके बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने पूरे देश में शराब पर प्रतिबंध लगा दिया, पर बाद में आयी कांग्रेस सरकार ने 1981 में उसे हटा लिया। बाद के वर्षों में देश के कई राज्यों में शराब पर प्रतिबंध लगाया गया और फिर हटा लिया गया। बिहार में अप्रैल, 1916 में नीतीश कुमार की सरकार ने शराब की बिक्री और पीने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया।
लोक समिति लंबे समय से शराबबंदी के लिए मुहिम चला रही है। लोक समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष गिरिजा सतीश का मानना है कि जब तक शराब पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगेगा, तब तक लोगों का सम्यक विकास नहीं होगा। इस तरह हमारी सुचिंतित धारणा है कि समाज और मनुष्य के विकास के लिए शराबबंदी एक अनिवार्य शर्त है. यह उद्देश्य सिर्फ सरकार और कानून से पूरा नहीं हो सकता। इसके लिए समाजिक स्तर पर सतत अभियान चलाने की जरूरत है।
-कौशल गणेश आजाद