विकास करते-करते पचास साल पहले की जिंदगी को छोड़कर हम बहुत आगे निकल चुके हैं. पीछे जाना संभव नहीं है. मुझे लगता है कि ‘विकास’ की जिस अंधी गुफ़ा में इंसान घुस गया है, उसमें सिर्फ जाने का रास्ता है, निकलने का नहीं. गुफ़ा में आगे घना अंधेरा है, जिससे […]

मानव जीवन का अस्तित्व प्रकृति के संतुलन पर आधारित है. विकास की अंधी दौड़ में मानव समाज प्रकृति को व्यापक तौर पर क्षतिग्रस्त कर चुका है. वर्तमान वस्तुस्थिति यह है कि अपनी ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने के लिए हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है. भौतिक विकास के जिस आयाम तक […]

जीएसटी परिषद की 47 वीं बैठक ने एकाउंटिंग के स्तर पर, जीएसटी के विवाद कम करने और कंप्लायंस में कुछ सहूलियतें जरूर दी हैं, लेकिन सोलह राज्यों की राजस्व क्षति का सवाल अनसुना करके सरकार ने अपने एक राष्ट्र-एक टैक्स के गाजे-बाजे का स्वर स्वयं ही बेसुरा कर दिया है। […]

ग्रामीण पुनरुत्थान का छत्तीसगढ़ मॉडल आजादी के बाद हमने जिस शहर केंद्रित विकास मॉडल को अपनाया, उसने ग्रामीण भारत के अस्तित्व को ही संकट में डाल दिया। ग्रामीण विकास के कुछ सफल प्रयोग ग्राम्य स्तर पर अवश्य हुए, लेकिन इससे ग्रामीण भारत की निराशा कम नहीं हुई। छत्तीसगढ़ में पहली […]

गांधीजी की इस ऐतिहासिक यात्रा के आगामी अगस्त में 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं. इस अवसर पर शांति, प्रेम और भाईचारे का संदेश लेकर अस्वस्थ, विचलित और निराश कश्मीरी जनता से गांधीजी के रास्ते, भूमिका और भाषा के माध्यम से संवाद स्थापित करने के लिए 24 से 30 अगस्त […]

गांधीवाद केवल एक नैतिक आग्रह नहीं, अपितु एक अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र भी है. इसमें एक ओर वर्तमान आर्थिक जीवन की अनेक समस्याओं तथा सामाजिक जीवन में व्याप्त अनेक जटिलताओं का सम्यक समाधान निहित है, तो दूसरी ओर सुखद मानवीय भविष्य के लिए स्वतःस्फूर्त क्रान्ति की शिक्षादृष्टि भी है. गांधी उस […]

विद्या मनुष्य के जीवन में विकास के द्वार खोलती है। एक सार्थक जीवन जीने का माध्यम बनती है। विद्या मनुष्य को मुक्त कर देती है. यह विद्या आखिर है क्या? इसे जानने, समझने, पहचानने, अपनाने की आवश्यकता है। विद्या में ब्रह्माण्ड की समग्रता, विविधता और अनेकता में एकता का भाव […]

देश का कोई भी नागरिक अपनी मातृभाषा अथवा राष्ट्रभाषा हिन्दी में अपनी फरियाद देश के सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत नहीं कर सकता है, वहां आज भी मैकाले ब्राण्ड अंग्रेजी भाषा का ताला है। आजादी का 75 वां महोत्सव आजादी के 75वें महोत्सव को कैसे मनायें, यह बड़ा गंभीर प्रश्न है। […]

मानव सभ्यता के पिछले 5000 वर्षों के इतिहास में महाभारत तथा राम-रावण के युद्ध ही धर्मयुद्ध थे और वे समाज में ईश्वरीय सभ्यता स्थापित करने के लिए लड़े गये थे। मोहम्मद साहब को भी धर्मयुद्ध करना पड़ा था। उसके बाद जितने भी युद्ध धर्म के नाम पर लड़े गये, उनमें […]

भारत की एकता और एकता से समृद्धि सम्बन्धी दृष्टिकोण व्यापक है. सिद्धान्त और व्यवहार दोनों में, यह दृष्टिकोण वैश्विक महत्त्व का है. इसके मूल में बसे सत्य का सरोकार सम्पूर्ण मानवता से है. जब भारत की राष्ट्रीय एकता और समृद्धि की बात की जाए, तो उसे वसुधैव कुटुम्बकम के परिप्रेक्ष्य […]

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