गाय के बारे में आजकल जो विवाद चल रहे हैं, वह दरअसल केवल गाय के विवाद नहीं हैं। प्रश्न यह है कि पतन और विदेशी शासन के हजार वर्षों में जो विकृत, कुंठित व्यक्तित्व हमारा बना है, क्या उसे ही हम अपनी विरासत मानते हैं? हम इतने दिनों से लकवाग्रस्त […]
एक गोरक्षा प्रचारक और स्वामी विवेकानंद के बीच हुआ था यह दिलचस्प संवाद फरवरी 1897 की बात है. तत्कालीन कलकत्ते के बाग़ बाज़ार इलाके में स्वामी विवेकानंद स्वामी रामकृष्ण परमहंस के एक भक्त प्रियनाथ के घर पर बैठे थे. कई भक्त और अनुयायी उनसे मिलने वहां पहुंचे थे. तरह-तरह के […]
सावरकर कहते हैं कि मुझे ऐसा लगता है कि गाय का गोबर खाना और गोमूत्र पीना कभी किसी समय समाज में किसी निन्दनीय कार्य के लिए सजा की तरह उपयोग में लाया जाता रहा होगा। प्रायश्चित के तौर पर गोमय और गोमूत्र का सेवन भी यही दर्शाता है। आगे चलकर […]
प्रकृति का चिरंतन चक्र घूमता रहता है, इसलिए लाभ हानि में संतुलन बना रहता है। प्रकृति के इस नियम को खंडित किया गया। अंग्रेजों की मिलिटरी के भोजन के लिए बछड़े और जवान गायें डेढ़ सौ साल कटती रहीं। डेयरी के लिए शहरों में गया गोवंश गांव में वापस नहीं […]
गांधी जी ने गोसेवा और गोरक्षा का अंतर स्पष्ट करते हुए कहा था कि गोशाला से गोसेवा होगी और चर्मालय से, अर्थात मरे हुए गाय-बैलों की खाल निकालने से गोरक्षण होगा। अगर हम मरे हुए गाय-बैलों की खाल नहीं निकालते हैं, तो चमड़े के लिए गाय-बैलों का कत्ल करना नहीं […]
अगर इसी तरह दुनिया में मानव मूल्यों का ह्रास होता रहा, प्रकृति में असंतुलन पैदा होता रहा और वातावरण प्रदूषित होता रहा तो दुनिया में मनुष्य का अस्तित्व बचाना कठिन हो जायेगा, क्योंकि यह दुनिया आदमी के रहने लायक नहीं रह जायेगी। वैसी परिस्थिति में मानव-पशुश्रम आधारित अर्थव्यवस्था, मानव-जीवन का […]
शक हो, सवाल हो, किसी भी दशा में हों, दिलो दिमाग कुछ और कहता हो, लेकिन आपके पास नो सर, हाई सर कहने के अलावा और कुछ कहने का ऑप्शन ही नहीं है। वह आदेश लाखों देशवासियों को धर्म के नाम पर गैस चेम्बर में झोंक देने का हो या […]
प्राकृतिक संसाधनों से जीवन यापन करने वाले समुदायों – चरवाहों, मछुआरों और किसानों के बीच जारी है खूनी संघर्ष उत्तरी कैमरून में सिकुड़ते पानी के स्रोतों को लेकर तनाव के चलते 5 दिसंबर 2021 को शुरू हुए जातीय संघर्षों के बाद एक लाख लोग विस्थापित हुए हैं। इस क्षेत्र में […]
6 जनवरी 2022 को मायलम्मा की चौदहवीं पुण्य तिथि थी। उन्हें उनकी पुण्यतिथि पर देश, समाज और मीडिया याद करे इसकी संभावना कम ही थी। वैसा ही हुआ। कुछ यादें तो खुद धुंधला जाती हैं, लेकिन कुछ को धुंधलाने में सत्ता प्रतिष्ठान के फायदे जुड़े होते हैं। मायलम्मा को ऐसे […]
प्रदूषण अभी तक आम लोगों का मुद्दा नहीं बन पाया है। अभी तक यह मुद्दा सिर्फ पढ़े-लिखे वर्ग का ही मुद्दा है। अगर हम वास्तविक रूप से धरातल पर देखें और आम लोगों से उनकी शीर्ष पांच समस्याओं के बारे में पूछें तो पाएंगे कि प्रदूषण का मुद्दा उनमें शामिल […]