बागी बलिया को गांधी का संदेश

सन बयालीस के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बलिया के स्वतंत्रता सेनानियों और उनकी क़ुर्बानियों ने इतिहास के पन्नों पर बलिया का नाम हमेशा के लिए अंकित कर दिया। भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले चित्तू पांडे, महानंद मिश्र और विश्वनाथ चौबे जैसे बलिया के सेनानी महात्मा गांधी से गहरे प्रभावित थे। बलिया के लोगों के मन में गांधी के प्रति कितना गहरा लगाव था और वे किस अधिकार-भाव से गांधी से जुड़े हुए थे, इसकी एक बानगी किसान आंदोलन के पुरोधा सहजानंद सरस्वती की आत्मकथा ‘मेरा जीवन संघर्ष’ में मिलती है। हुआ यह कि अगस्त १९२१ में महात्मा गांधी कानपुर, इलाहाबाद होते हुए बक्सर पहुँचे, जहाँ उन्हें एक सभा को संबोधित करना था।

महात्मा गांधी को सुनने और उनके दर्शन के लिए पहुँचे श्रोताओं में बलिया के अनगिनत लोग शामिल थे। लोगों ने गांधी जी से बलिया चलने का आग्रह किया, किंतु उस वक्त बलिया जाने का गांधी जी का कोई कार्यक्रम नहीं था, इसलिए उन्होंने उन लोगों को अपने पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम से अवगत कराया। इसके बाद वहां के लोगों ने गांधी जी को बलिया ले चलने के लिए क्या किया, इसका विवरण ख़ुद सहजानंद सरस्वती के शब्दों में पढ़ें–बलिया के लोगों ने जब कुछ उपाय न देखा तो गांधी जी के डेरे के सामने वाली सड़क के दोनों छोरों पर सड़क घेरकर सैकड़ों आदमी जमीन पर लोट गए और कहा कि जब तक गांधी जी चलने का वचन न देंगे, हम न हटेंगे, न उनकी मोटर जाने देंगे। गांधी जी मानने वाले थे नहीं। वे लोग भी सुनने वाले न थे। आखिर गांधी जी ने जब यह वचन दिया कि वे बलिया ज़रूर चलेंगे, मगर बाद में, अभी नहीं, तब कहीं लोग हटे और वे सभा में जा सके।      

बलिया में बापू

इस घटना के छह महीने बाद ही फरवरी १९२२ में महात्मा गांधी ने गुजराती पत्रिका ‘नवजीवन’ में एक लेख लिखा, शीर्षक था ‘बलिया में दमन’। यह लेख असहयोग आंदोलन के दौरान गोरखपुर में चौरीचौरा कांड होने के बाद बलिया समेत अनेक ज़िलों में किए जा रहे पुलिसिया दमन और बर्बरता के बारे में था। ‘नवजीवन’ में यह लेख चौरी-चौरा की घटना के पाँच दिनों बाद ९ फरवरी १९२२ को छपा था। लेख में महात्मा गांधी ने देवदास गांधी का वह पत्र भी उद्धृत किया था, जिसमें उन्होंने बलिया में पुलिस द्वारा किए जा रहे अत्याचारों का ब्यौरा दिया था। देवदास गांधी उस समय बलिया में ही थे और बाद में वहीं से वे गोरखपुर गए, जहाँ से उन्होंने महात्मा गांधी को लिखे पत्रों में गोरखपुर का आँखों देखा हाल भी बयान किया।

बलिया और वहाँ के लोगों के बारे में गांधीजी इस लेख में लिखते हैं, ‘बलिया संयुक्त-प्रांत का एक गरीब ज़िला है। वहाँ के लोग उत्साही, सीधे-सादे और भोले हैं। वे देशभक्त हैं। मैंने कई बार वहाँ जाने का प्रयत्न किया, परंतु जा नहीं सका। वह बिहार की सरहद पर है; इससे वहाँ के लोग बिहारियों से अधिक मिलते-जुलते हैं।’

साथियों के साथ बापू

बलिया में हो रहे अत्याचारों का विवरण देवदास गांधी के पत्र से उद्धृत करने के बाद गांधी ने लिखा कि ‘दमन से बलिया के लोगों की जो दशा हुई होगी, मैं उसकी कल्पना कर सकता हूँ। उस कल्पना से मेरा दिल रो उठता है। मैं वहाँ न जा सका; इससे मुझे दुख होता है। यदि मैं इस वेदना से पार पा गया तो बलिया को तीर्थ मानकर वहाँ की यात्रा करने की इच्छा रखता हूँ। मैं चाहता हूँ कि इससे बलिया के लोगों को कुछ सांत्वना मिले।’

राष्ट्रीय आंदोलन में बलिया की भागीदारी और बलिया के लोगों द्वारा किए गए बलिदानों को सराहते हुए गांधी ने लिखा कि ‘बलिया जैसे शहरों के बलिदान इस देश को अवश्य मुक्त करेंगे। परमात्मा बलिया के लोगों को कष्ट सहने की और अधिक शक्ति प्रदान करे।’ इतना ही नहीं, उन्होंने यह उम्मीद भी जतायी कि गुजरात के लोग भी बलिया के उदाहरण से प्रेरणा लेंगे और कहा—‘मेरी कामना है कि बलिया के उदाहरण से गुजरात के लोगों में कष्ट सहन करने की और भी अधिक उत्सुकता पैदा हो।’

यह लेख लिखे जाने के दो महीने बाद अप्रैल १९२२ में जवाहरलाल नेहरू बलिया आए और उन्होंने एक विशाल रैली को संबोधित किया, जिसमें हजारों लोगों ने शिरकत की। इसके दो महीने बाद ही जून १९२२ में मदन मोहन मालवीय और मोतीलाल नेहरू ने बलिया और रसड़ा में आयोजित जनसभाओं को संबोधित किया, जिनमें बड़ी संख्या में लोगों ने भागीदारी की। इसी दौरान बांसडीह में एक राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना हुई।

जवाहरलाल नेहरू वर्ष १९२३ में पुनः बलिया आए और उन्होंने एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया। नेहरू ने महात्मा गांधी की गिरफ्तारी की निंदा की और लोगों से हड़ताल का आवाहन करने की अपील की। फलस्वरूप बलिया जिले में १८ मार्च १९२३ को जनता द्वारा हड़ताल का आवाहन किया गया। उसी साल जिले से कुछ लोगों ने नागपुर के झण्डा सत्याग्रह में भी भाग लिया और गिरफ्तारी दी। वर्ष १९२५ में जवाहरलाल नेहरू और पुरुषोत्तमदास टंडन बलिया पधारे और इस दौरान उन्होंने खादी आश्रम के उद्घाटन कार्यक्रम में भी भाग लिया।

इसी वर्ष महात्मा गांधी भी पहली बार बलिया आए। १६ अक्तूबर १९२५ को महात्मा गांधी ने बलिया में आयोजित जिला परिषद को संबोधित किया। इस अवसर पर जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और डॉ. सैयद महमूद भी सभा में उपस्थित थे। इस अवसर पर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन में बलिया के लोगों के योगदान और उनकी कुर्बानियों की मुक्तकंठ से सराहना की। महात्मा गांधी ने कहा कि वे १९२१ से ही बलिया आना चाहते थे, पर ऐसा संभव न हो सका। चार वर्ष बाद आखिरकार बलिया पहुँचने पर गांधीजी ने खुशी जाहिर की। उन्होंने आगे कहा कि ‘बलिया के कार्यकर्ताओं ने जो रचनात्मक कार्य किया है, उसे देखकर मुझे बहुत खुशी हुई है और उसके लिए मैं उनको बधाई देता हूँ। मुझे यह जानकर भी प्रसन्नता हुई है कि यहाँ दोनों क़ौमें मिल-जुलकर रह रही हैं। ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है कि आपकी मित्रता की टेक पूरी हो और आप दूसरों के लिए इस दिशा में आदर्श स्थापित कर सकें।’

हिंदुस्तान के पुनर्निर्माण के लिए गांधी जी ने ठोस और बुनियादी काम करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। हिंदुस्तान की गरीबी को दूर करने में चरखे की उपयोगिता समझाते हुए उन्होंने कहा कि ‘गरीबी दूर करने के लिए चरखे से बढ़कर कोई और कारगर उपाय नहीं है।’ सभा में उपस्थित लोगों से गांधीजी ने विदेशी वस्त्रों का त्याग करने और चरखा चलाने का आह्वान किया और यह संदेश दिया कि ‘खादी पहनो और चरखे की शक्ति बढ़ाओ।’ इसके साथ ही उन्होंने लोगों से मादक द्रव्य, जुए और व्यभिचार से बचने का आग्रह किया। उन्होंने बलिया के लोगों की सराहना करते हुए कहा कि ‘आपकी भूमि वाल्मीकि, गंगा और सरयू की भूमि है और आप भारत की सेवा करने को कटिबद्ध हैं। इसमें शक नहीं कि आपने १९२१ में जो कुछ भी संभव था, किया।’ उन्होंने सभा में मौजूद लोगों से देशबंधु कोष में दान देने की अपील की और कहा कि इसका उपयोग चरखे के प्रचार-प्रसार में होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

गांधी का ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट

Tue Nov 16 , 2021
बापू ने सुब्रह्मण्यम भारती में क्या देखा १९१९ के मार्च महीने में गांधी जी मद्रास में थे। चक्रवर्ती राज-गोपालाचारी के घर पर उनका डेरा था। एक सुबह गांधी जी के कमरे में उनके साथ राजाजी, तमिल भाषा में धुआंधार भाषण के लिए ख्यात एस. सत्यमूर्ति, सालेम के प्रतिष्ठित वकील अधिनारायण चेट्टियार, […]

You May Like

क्या हम आपकी कोई सहायता कर सकते है?