बाबा विनोबा भूदान के काम को राष्ट्रीय आंदोलन नहीं, बल्कि जागतिक आंदोलन मानते थे। आंदोलन से भी आगे बढ़कर इसे आरोहण मानते थे. आरोहण में हम एक एक शिखर चढ़ने की कोशिश करते हैं। वही इसमें भी हो रहा है।
बाबा विनोबा का मानना था कि मुझे भय नहीं, निर्भयता चाहिए। ग्रामदान से लाख गुनी योग्यता निर्भयता की है। निर्भयता की तुलना में ग्रामदान जरा भी नहीं टिकेगा, फिर भी ग्रामदान में ज्यादा से ज्यादा निर्भयता है। बाबा ने एक बार ‘हमारा मंत्र जय ग्रामदान’ का नारा लगा दिया। अब तक हमारा मंत्र देश या समाज की सेवा का और तंत्र परिवार की सेवा का था। अब इस जमाने में इस विचार को व्यापक करना होगा। अब हमारे काम से दूसरे देश का कुछ न बिगड़े। हमारे कृत्य से दुनिया के किसी देश को नुकसान न हो। अब तक हम जो कुछ परिवार के लिए करते थे, वह अब गांव के लिए करना होगा। जो देश के लिए करते थे, अब जगत के लिए करना होगा। बाबा विनोबा भूदान के काम को राष्ट्रीय आंदोलन नहीं, बल्कि जागतिक आंदोलन मानते थे। आंदोलन से भी आगे बढ़कर इसे आरोहण मानते थे. आरोहण में हम एक एक शिखर चढ़ने की कोशिश करते हैं। वही इसमें भी हो रहा है। दुनिया में इस समय विज्ञान का बल काफी बढ़ा है, जबकि ग्रामदान के पीछे तो आत्मज्ञान का जितना बल है, उतना ही विज्ञान का भी बल भी है। वह आवाहन कर रहा है कि हे मानव! तुम एक हो जाओ या मिट जाओ।
अब तक हम जो कुछ परिवार के लिए करते थे, वह अब गांव के लिए करना होगा। जो देश के लिए करते थे, अब जगत के लिए करना होगा।
बाबा कहते थे कि हम दोनो स्थितियों में मदद के लिए तैयार हैं। अगर मिटना चाहते हो तो तुम्हें मिटाने की शक्ति भी मेरे पास है और अगर तुम व्यापक बनना चाहते हो तो उसके लिए भी हम मदद को तैयार हैं। यह असाधारण विचार दोनो मार्ग के लिए मान्य लगता है। बाबा कहते थे कि इस आंदोलन को केवल एक राष्ट्रीय भूमिका के स्तर का मत मानो, इसके पीछे जागतिक भूमिका है। कोई ताकत या कोई विचार मुझे घुमा रहा है, मैं नहीं घूम रहा हूं। आखिर हम और आप कौन हैं? बिल्कुल नाचीज़ हैं। हमारी कोई हस्ती नहीं है। जो कुछ भी हो रहा है, बाबा से सब भगवान ही करा रहा है। – रमेश भइया