भूदान डायरी : आरोहण की तपस्या में लीन विनोबा के दिल में क्रांति की आग जल रही थी

जब भूदान की पदयात्रा शुरू की तब बाबा की उम्र 55 वर्ष थी। आखिर में जब बाबा बिहार से पवनार लौटे तब वे 74 वर्ष के हो चुके थे। आरोहण की यह जो तपस्या हुई, वह वयोवृद्ध उम्र में हुई।

बाबा विनोबा का भूदान आंदोलन ईश्वरीय प्रेरणा का ही संकेत माना जा सकता है. बाबा का आत्मीय संबंध ईश्वर से प्रतिक्षण जुड़ा हुआ था। विनोबा जी ने भूदान आंदोलन के पहले ही 1950 में जेपी से कहा था कि देश के निर्माण में जब कोई घर्षण पैदा हो, तो स्नेहन का काम करने की शक्ति प्रभु मुझे दे। कश्मीर का प्रश्न हो या भाषा का प्रश्न, चुनाव से देश छिन्न-भिन्न हो रहा हो या आपातकाल के कशमकश में फंसा हो, विनोबा जैसे राष्ट्र प्रेमी, मानव प्रेमी भक्त की आर्तता एक ही रही है कि कैसे तेल देकर घर्षण को कम कर सकूं।

इस चैतन्य वृक्ष को विनोबा ने तपस्या की खाद दी और पीयूषपूर्ण भक्ति भाव का पानी दिया, जिससे यह  ज्यादा पल्लवित  हुआ। विनोबा के दिल में आर्तता थी कि लोगों की सेवा करने में मेरी देह के चिथड़े भी हो जाएं तो कोई चिंता नहीं। आगे चलकर वही उन्होंने किया भी। जब भूदान की पदयात्रा शुरू की तब बाबा की उम्र 55 वर्ष थी। आखिर में जब बाबा बिहार से पवनार लौटे तब वे 74 वर्ष के हो चुके थे। आरोहण की यह जो तपस्या हुई, वह वयोवृद्ध उम्र में हुई। उनके दिल में क्रांति की आग जल रही थी और हृदय में करुणा का उफान था। उसने उनको बैठने नहीं दिया। उन्होंने प्रयत्न की पराकाष्ठा कर दी।

पोचमपल्ली में जो कुछ हुआ, उसके बारे में बाबा कहते थे कि ऐसा लगा, जैसे साक्षात ईश्वर से संवाद हुआ हो। कोई अगम था जरूर और उसके साथ सीधी बातचीत हुई।

बाबा की बाह्य यात्रा के साथ साथ उनकी अंतरयात्रा भी चलती रही। अंतर्मुख क्षणों में प्रकट हुए उनके अंतर शोधन के, मंथन के, गहरे चिंतन के भावोद्गार  संकलित हुए हैं। बाबा ने अपने साथियों को भी अपनी क्रांति की लगन और आध्यात्मिक भावना का रंग से खूब लगाया। विनोबा जी तो पहले से कहते थे कि हम जो यह सब काम करना चाहते  हैं, उसके लिए लोकसम्मति चाहिए। सरकार तो कह सकती है कि वह जो भी करती है, उसे वोट रूपी स्वीकृति मिल चुकी है, लेकिन बाबा के काम के पीछे स्वीकृति का आधार क्या? इसीलिए लोग जब बाबा को कुछ न कुछ दान देते हैं, वह चाहे भूदान हो या संपति दान हो, सब प्रत्यक्ष व्यवहार से मिला।  इस प्रकार हद तक की करुणा की प्रक्रिया बाबा ने आजमाई।

पोचमपल्ली में जो कुछ हुआ, उसके बारे में बाबा कहते थे कि ऐसा लगा, जैसे साक्षात ईश्वर से संवाद हुआ हो। कोई अगम था जरूर और उसके साथ सीधी बातचीत हुई। इसीलिए बाबा बार बार कहते थे कि हमारी प्रत्येक कृति को ईश्वर के साथ जोड़ देना चाहिए। इस तरह कि उसके साथ हम बातचीत कर सकें, उससे प्रश्न पूछ सकें, उससे जवाब प्राप्त कर सकें। बाबा यह भी आत्मप्रत्यय के साथ हमें जताते थे कि यह भोलेपन की बात नहीं है। जिस प्रकार आधुनिक विज्ञान अनुभव पर आधारित है, उसी प्रकार यह भी अनुभूति पर आधारित है। भक्त का एक बड़ा लक्षण है अनारंभी होना। बाबा तो अपने को अनारम्भी ही बताते हुए कहते थे कि मैं कोई सार्वजनिक काम उठाता हूं, तो  ईश्वर के इशारे पर ही उठाता हूं। इस को सम्पूर्ण जीवन निभाया है। अपने आपको ईश्वर के हाथ में सौंप देना और क्या है। यही तो तो अनारम्भी की कसौटी है। ईश्वर के इशारे पर ही बाबा ने तूफान जैसा कार्यक्रम उठाया था। विनोबा स्वयं उसके लिए तड़प रहे थे। ग्रामदान वास्तविक बनाने हैं, नहीं तो खुदा हाफ़िज़। मुझे चुप नहीं बैठना है। चूल्हा गरम होते ही रसोई बना लेनी चाहिए। कितनी तीव्र छटपटाहट उनके अंदर दिख रही थी! लेकिन अंदर से आदेश क्षेत्र सन्यास का हुआ और बाबा ने आगे बढ़ने का मन होते हुए भी तुरंत ईश्वर के आदेश को शिरोधार्य किया। – रमेश भइया

 

Co Editor Sarvodaya Jagat

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

भूदान डायरी : बाबा को मिला था ईश्वरीय संकेत

Wed Apr 20 , 2022
बाबा ने इसे इस बात का ईश्वरीय संकेत माना कि अभी समाज में बहुत भूमिहीन लोग हैं, जिनको जमीन की जरूरत है, इसलिए हमें और जमीन मांगने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। बाबा का मानना था कि किसान का जीवन सबसे ज्यादा पवित्र है। वह परमेश्वर के ज्यादा नजदीक रहता […]

You May Like

क्या हम आपकी कोई सहायता कर सकते है?