देखते ही देखते वह स्रोत फूट पड़ा और भूदान-गंगा में बाढ़ जैसी आ गई। जिस बिहार में एक दिन कुल सवा एकड़ जमीन ही मिली, उसी बिहार में बाद में हजारों एकड़ मिलने लगी। बिहार ने अकेले 32 लाख एकड़ जमीन दान देने का बहुत बड़ा संकल्प कर लिया।
बाबा विनोबा कहते थे कि कुआं खोदते समय मिट्टी भी मिलती है और पत्थर भी, लेकिन बाबा का उत्साह पत्थर निकलने पर ज्यादा बढ़ता है, क्योंकि मन में लगने लगता है कि पत्थर टूटा नहीं कि नीचे पानी ही होना चाहिए। इस विश्वास के सहारे ताकत लगती गई और देखते ही देखते वह स्रोत फूट पड़ा और भूदान-गंगा में बाढ़ जैसी आ गई। जिस बिहार में एक दिन कुल सवा एकड़ जमीन ही मिली, उसी बिहार में बाद में हजारों एकड़ मिलने लगी। बिहार ने अकेले 32 लाख एकड़ जमीन दान देने का बहुत बड़ा संकल्प कर लिया। बिहार की यात्रा 14 सितंबर 1952 से 31 दिसंबर 1954 के बीच संपन्न हुई थी। इस समय तक 23 लाख एकड़ जमीन प्राप्त हो चुकी थी। भूदान यज्ञ, संपत्ति दान यज्ञ, श्रमदान यज्ञ आदि कार्य होते-होते अंत में यज्ञ जीवन-दान तक जा पहुंचा।
बिहार में प्रांतीय भावना तो बिल्कुल ही नहीं है। यहां आत्मीयता के दर्शन हुए, इसलिए बहुत आनंद और अपार शांति का अनुभव हुआ. जितना व्यापक आकाश, उतना ही व्यापक आनंद यहां हमें प्राप्त हुआ, इसलिए बिहार की यात्रा को बाबा आनंद की यात्रा मानते थे।
बाबा सुबह-शाम की बैठक में भाषण करते थे और कहते थे कि बिहार की भूमि पर घूमते हुए हमें ईश्वरीय प्रेम का साक्षात्कार हुआ है। यहां तो आंखें भर के मैने परमेश्वर का दर्शन पाया। बिहार की जनता की सरलता और उदारता हृदय को छुए बिना नहीं रह सकती। बिहार में प्रांतीय भावना तो बिल्कुल ही नहीं है। यहां आत्मीयता के दर्शन हुए, इसलिए बहुत आनंद और अपार शांति का अनुभव हुआ. जितना व्यापक आकाश, उतना ही व्यापक आनंद यहां हमें प्राप्त हुआ, इसलिए बिहार की यात्रा को बाबा आनंद की यात्रा मानते थे। बिहार की यात्रा में बाबा अपने को विष्णुसहस्रनाम का भक्त कहते थे, वहां बाबा ने आवाहन ही सहस्रनाम सुनाने का कर दिया। देखते-देखते बाबा को बिहार वालों ने हजार दान-पत्र भी देना शुरू कर दिया।- रमेश भइया