गाँव की बैठकी में हरिजन भाइयों ने बाबा से कहा कि हम लोगों को खेती के लिए जमीन चाहिए। बाबा ने पूछा, कितनी? तो जबाब मिला, 80 एकड़। बाबा ने कहा कि अच्छा, एक अर्जी लिख दो, हम जरूर प्रयास करेंगे। बाबा ने सरकार से जमीन का इंतजाम करने के लिए कहने का मन बनाया, लेकिन अचानक उन्हें लगा कि इसमें तो समय बहुत लग जाएगा। उसी क्षण गांव के जो लोग सामने बैठे थे, उनसे ही बाबा ने पूछा कि सरकार तो न जाने कब जमीन दे या न भी दे पाए। क्या आप लोग अपने गांव के हरिजन भाइयों के लिए कुछ करने की सोंचेंगे? बाबा की यह बात सुनते ही सभा में से एक भाई, जिनका नाम रामचंद्र रेड्डी था, खड़े हो गए। उन्होंने नम्र भाव से कहा कि मेरे स्वर्गीय पिताजी की इच्छा थी कि अपनी कुछ जमीन इन भाइयों को दान में दी जाए। लिहाजा, मैं अपनी और अपने पांच भाइयों की ओर से सौ एकड़ जमीन आपके माध्यम से गांव के सपने इन भाइयों को भेंट करता हूं। और इसी घटना के साथ भूदान की अद्भुत गंगोत्री पोचमपल्ली में प्रकट हो गई।
पोचमपल्ली गांव जो सम्पूर्ण विश्व में अपने विशेष कार्य हेतु प्रख्यात हो गया, वह सात सौ घरों का एक गांव था. गाँव की बैठकी में हरिजन भाइयों ने बाबा से कहा कि हम लोगों को खेती के लिए जमीन चाहिए। बाबा ने पूछा, कितनी? तो जबाब मिला, 80 एकड़। बाबा ने कहा कि अच्छा, एक अर्जी लिख दो, हम जरूर प्रयास करेंगे। बाबा ने सरकार से जमीन का इंतजाम करने के लिए कहने का मन बनाया, लेकिन अचानक उन्हें लगा कि इसमें तो समय बहुत लग जाएगा। उसी क्षण गांव के जो लोग सामने बैठे थे, उनसे ही बाबा ने पूछा कि सरकार तो न जाने कब जमीन दे या न भी दे पाए। क्या आप लोग अपने गांव के हरिजन भाइयों के लिए कुछ करने की सोंचेंगे? बाबा की यह बात सुनते ही सभा में से एक भाई, जिनका नाम रामचंद्र रेड्डी था, खड़े हो गए। उन्होंने नम्र भाव से कहा कि मेरे स्वर्गीय पिताजी की इच्छा थी कि अपनी कुछ जमीन इन भाइयों को दान में दी जाए। लिहाजा, मैं अपनी और अपने पांच भाइयों की ओर से सौ एकड़ जमीन आपके माध्यम से गांव के सपने इन भाइयों को भेंट करता हूं। और इसी घटना के साथ भूदान की अद्भुत गंगोत्री पोचमपल्ली में प्रकट हो गई।
बाबा ने दूसरे दिन यह सोचकर आगे यात्रा करने का तय किया कि रामावतार में तो बंदरों से भी काम हुआ, तो आखिर हम तो आदमी हैं। मैं तो अहिंसा पर विश्वास रखने वाला व्यक्ति ठहरा, जिस भगवान ने बंदरों से भी काम लिया, वह मुझसे भी ले ही लेगा.
बाबा ने अपना चिंतन प्रकट करते हुए कहा कि मुझमें इतनी शक्ति तो नहीं है, मैं तो शक्ति शून्य ठहरा, पर विश्वास शून्य नहीं हूं। मैं विश्वास पूर्ण हूं। अभी तो 100 एकड़ जमीन ही मिली है, लेकिन सम्पूर्ण देश के सारे भूमिहीनों के लिए मैं पांच करोड़ एकड़ जमीन मिलने का सपना देखना चाहता हूँ. यदि यह नहीं हो सके, तो फिर अहिंसा पर से विश्वास ही छोड़ दूं और निराशावादी बन जाऊं। लेकिन मैं न तो निराशावादी बनने को तैयार हूँऔर न हिंसावादी बनने को।अंतत: बाबा उस दिन रात मैं राम नाम लेकर सो गये।
बाबा ने दूसरे दिन यह सोचकर आगे यात्रा करने का तय किया कि रामावतार में तो बंदरों से भी काम हुआ, तो आखिर हम तो आदमी हैं। मैं तो अहिंसा पर विश्वास रखने वाला व्यक्ति ठहरा, जिस भगवान ने बंदरों से भी काम लिया, वह मुझसे भी ले ही लेगा, बशर्ते मैं अभिमान छोड़कर शून्य हो जाऊं, जैसे राम की बंदर-सेना हो गयी थी। इस दृष्टि से मेरे मन में आगे की यात्रा का दृढ़ निश्चय हो गया और मैं निकल पड़ा। बाबा कहते हैं कि जिस गांव में मैं गया, वहां पर अत्यंत विश्वास के साथ, जैसे बेटा अपने बाप से मांगता है, वैसे हांथ फैलाकर भूदान की मांग की। उस समय लोगों को कुछ भी पता नहीं था कि यह शख्स भूदान मांगने वाला है। वे तो बेचारे फूलमाला लेकर स्वागत करने आए थे। बाबा ने उन लोगों से कहा कि ये फूल तो बहुत सुंदर हैं, परंतु इन फूलों की जो माता है, वह इससे भी सुंदर है। ये फूल पूजा करके भगवान को चढ़ा दीजिए, मुझे मिट्टी दीजिए। उस समय तक गांव के लोग नहीं समझ पा रहे थे कि हमसे जमीन की मांग की जाने वाली है, लेकिन उस गांव के लोगों ने हमें 25 एकड़ जमीन दान में दी। तब बाबा सोचने लगे कि जब दो बिंदु हो जाते हैं, तो रेखा बन जाती है, ऐसा यूक्लिड ने सिखाया है। मुझे कल शाम की सभा में सौ एकड़ मिली और आज सुबह पचीस एकड़ मिली। इस तरह दो बिंदु हो गए और देखते ही देखते ये तो मेरी रेखा तैयार हो गई। – रमेश भइया