जनमन आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था। महात्मा गांधी ने शराबमुक्त भारत की कल्पना की थी। उन्होंने यहां तक कहा था कि यदि मैं एक दिन का शासक बन जाऊं तो बिना मुआवजा दिए शराब की सभी दुकानें बंद करा दूं। खबर […]
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राजनीतिक प्रस्ताव सर्वोदय समाज और सर्व सेवा संघ ने अपनी 75 वर्षों की लम्बी यात्रा में लोकतंत्र पर आये तमाम संकट देखे हैं और उनका सामना भी किया है। इन संकटों में ‘आपातकाल’ प्रमुख है। उस दौर का हमारा संघर्ष, भारत में लोकतंत्र की बहाली के काम में महत्त्वपूर्ण साबित […]
सकल घरेलू उत्पाद केंद्रित विकास को पुनर्परिभाषित करना जरूरी है. क्या बिल्कुल जीडीपी सेंट्रिक विकास ही विकास है? सिर्फ सड़कें चौड़ी हो जाना विकास है? सिर्फ इमारतों का ऊंचा हो जाना विकास है? और सिर्फ पहाड़ों में से सुरंग बन जाना विकास है? अनुपम मैं कई बार कहता हूं कि […]
सभ्यताओं के सामने जो संघर्ष होते हैं, वे सभ्यता के संघर्ष नहीं होते. जब द्रविड़ और आर्य भारत में आकर बसे, तो उनकी तहजीबों के बीच कोई संघर्ष नहीं था. आर्यों ने द्रविड़ों से और द्रविड़ों ने आर्यों से बहुत कुछ सीखा. आज गांधी से बड़ा दूसरा कोई मजहब और […]
हम लोगों को प्रभावित करें या न करें, गांधी साहित्य लोगों को अवश्य प्रभावित करेगा. ऐसा मेरा अपना मानना है. मैं विगत 23 सालों से जहां भी जाता हूं, गांधीजी की आत्मकथा बांटता हूं और लोगों के जीवन में अंतर आता है. लोगों का आक्रोश, उनकी नफरत, उनकी बोलने की […]
महत्वाकांक्षी हुए बिना भी स्वच्छ और प्रामाणिक जीवन जिया जा सकता है. महत्वाकांक्षा अपनेआप में एक हिंसक शब्द है. जिस देश में अस्सी करोड़ लोग सरकार द्वारा दिए जा रहे 5 किलो अनाज पर जिन्दा हैं, इतने गरीब और पिछड़े हुए देश में महत्वाकांक्षी होने की बात हम सोच भी […]
स्वराज क्या है, इसे समझने से पहले यह समझना जरूरी है कि स्वराज क्या नहीं है. स्वराज क्या है, इसे विनोबा ने स्वराज्य शास्त्र लिखकर समझाया. सर्वसहमति से लिए गये फैसलों की प्रक्रिया से कोई एक आदमी भी छूटना नहीं चाहिए. जबतक कोई एक भी असहमत है, तबतक निर्णय नहीं […]
हम जो कुछ भी विकास के नाम पर करते हैं, उसका कोई न कोई सामाजिक मूल्य भी होता है. वह केवल आर्थिक नहीं हो सकता, इस सामाजिक मूल्य का भी आकलन होना चाहिए और उसके आधार पर तय करना चाहिए कि सचमुच हम जिसको फायदेमंद मान रहे हैं, उसका कोई […]
आज और कल के चक्र को समझना होगा. आज के सवालों के जवाब हमारे पास होने चाहिए, उनसे लड़ने की रणनीति हमारे पास होनी चाहिए और भविष्य का नक्शा भी हमारे पास होना चाहिए, तब जाकर बात बनेगी. कुमार प्रशांत गाँधी तो स्वेच्छा से चुनी हुई गरीबी को स्वीकारने की […]
पूंजीवाद से उपजी आर्थिक असमानता का उपाय, जो गाँधी बता रहे हैं, वह ट्रस्टीशिप और अपरिग्रह है. हिंसा के विषय में भी गांधी से बढ़कर कोई दूसरा पैगम्बर पिछले हजार दो हजार साल में नहीं हुआ. अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के नेता नेल्सन मंडेला अतिरेक में हिंसा के रास्ते चले गये. […]