5 ट्रिलियन वाली अर्थव्यवस्था के शोर में भारतीय अर्थव्यवस्था की टूट चुकी कमर से उपजे दर्द का आर्तनाद छुपाया जा रहा है. देश का दुर्भाग्य है कि मालिक मतदाता की आँखों पर पट्टी डालकर टीवी चैनलों के जरिये रोजाना उसे सब्जबाग दिखाए जा रहे हैं और रोजमर्रा की जिन्दगी की […]
Writers
एक तो यही गलत है कि जेपी ने संघ के किसी समारोह में ऐसा कुछ कहा था. वे 1974 में जनसंघ के आमंत्रण पर उसके सम्मेलन में दिल्ली गये थे. वहां मौजूद जेपी के निकट सहयोगी (वर्तमान में गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष) कुमार प्रशांत के अनुसार जेपी ने कहा […]
जेपी आंदोलन की ऐतिहासिकता और आज के सन्दर्भ में उसका समाजशास्त्रीय अध्ययन आज तक नहीं हुआ है। संघर्ष वाहिनी एवं समाजवादियों की यह कमी रही है कि वे इसके लिए मेहनत करने को तैयार नहीं रहते। अब तो लिखने पढ़ने की परम्परा भी समाप्त हो रही है। ऐसे में वैचारिक […]
उस दिन पुणे के आगा खां पैलेस में नजरबन्द बापू, मृत्यु से युद्धरत थे। उनकी हालत इतनी नाजुक थी कि ब्रिटिश हुकूमत ने उनके निधन की स्थिति में सरकारी शोक-सन्देश का मजमून भी चुपके-चुपके तैयार कर लिया था। अपना जन्मदिन मनाने में बापू की अभिरुचि नहीं थी, पर भारत सहित […]
मैं अंग्रेजों का दुश्मन नहीं हूं, परंतु मैं मानता हूं कि इस हुकूमत में शैतानी हवा फैली हुई है। मैं यकीन रखता हूं कि खुदा मुझे ताकत देगा, तो इस मैं सल्तनत को मिटाऊंगा या सुधारूंगा। यह मेरा परम धर्म है। इस सल्तनत को मिटाये बिना न मैं चैन से […]
खुद से सवाल पूछिए कि गांधी किसकी नुमाइंदगी करते हैं, जवाब मिलेगा कि गांधी असभ्यों की नुमाइंदगी करते हैं. हर वह व्यक्ति, जो ‘सभ्य’ होने की परिभाषा में फिट नहीं बैठता, गांधी उसके साथ खड़े हैं, उसकी नुमाइंदगी कर रहे हैं. गांधी के व्यक्तित्व में असभ्यता के इस दर्शन की […]
मियां और महादेव की नहीं बनती खिलाफत आन्दोलन से प्रशस्त हुआ भारत की आज़ादी का रास्ता गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन में सम्मिलित होने का कारण स्पष्ट किया कि यदि वे मुसलमानों को अपना भाई मानते हैं तो उनका कर्त्तव्य है कि उनके संकट के समय उनकी हर संभव सहायता की […]
बीते पचहत्तर बरसों में हमने लोकतान्त्रिक संविधान और संसदीय राजनीति का सदुपयोग करके एक ‘कल्याणकारी राज्य’ की रचना की है. पहले चार दशक राज्य द्वारा निर्देशित नियोजन का रास्ता अपनाया गया. फिर बीते तीस बरस बाजारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के उद्देश्य से खर्च किये गए. फिर भी भारत के गाँवों, […]
आयुर्वेद एक जीवन पद्धति और जीवन जीने का विज्ञान है, इसे समग्रता में अपनाया जाना चाहिए। यह मात्र जड़ी-बूटी की लिस्ट होकर न रह जाए, इसका भी ध्यान रखना पड़ेगा। आयुर्वेद को जीवन-विज्ञान और जीने की कला के संदर्भ में समझना पड़ेगा। यह बीमारी का इलाज और पैसा प्राप्ति का […]
सोवियत क्रांति भी एक दौर में पूरी नहीं मानी जानी चाहिए. उसे क्रांति के एक और दौर से गुज़रना होगा.- मिखाइल गोर्बाचेव यह 1985 का साल था. इंटरमीडिएट में पढ़ते हुए मैंने तीस रुपये में चेखव, गोर्की, तुर्गनेव और टॉल्स्टॉय की सात रूसी किताबें खरीदी थीं.तीस रुपये में यह ख़ज़ाना […]