घनश्यामदास बिड़ला को सत्याग्रह आश्रम, वर्धा से गांधी जी का पत्र

30 सितंबर 1933

प्रिय घनश्यामदास,आपको मालूम ही है कि आश्रमवासियों ने गत पहली अगस्त को साबरमती के सत्याग्रह-आश्रम और उसकी भूमि को त्याग दिया था। मुझे आशा थी कि सरकार मेरे पत्र के अनुसार इस त्यक्त संपत्ति पर अधिकार कर लेगी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। ऐसी अवस्था में मेरे सामने यह सवाल खड़ा हुआ कि मेरा क्या कर्तव्य है। मुझे लगा कि कीमती इमारतों को यों ही नष्ट होने देना बिल्कुल गलत होगा। मैंने मित्रों और सहकर्मियों के साथ परामर्श किया और मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि आश्रम का सबसे अच्छा उपयोग यही हो सकता है कि उसे हमेशा के लिए हरिजन सेवा के निमित्त अर्पित कर दिया जाये। मैंने अपना सुझाव आश्रम के न्यासियों के, जो बाहर हैं, और सदस्यों के सामने रखा, और मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता होती है कि वे इससे हृदय से सहमत हैं। जब इस संपत्ति का त्याग किया गया था तो उस समय यह आशा अवश्य की जा रही थी कि किसी दिन सम्मानपूर्ण समझौते के द्वारा, अथवा भारत की लक्ष्य-सिद्धि होने पर न्यासी लोग इस संपत्ति पर पुन: अधिकार कर सकेंगे। इस नवीन सुझाव के अनुरूप न्यासी लोग संपत्ति से पूरी तरह हाथ धो रहे हैं। न्यास-पत्र के अनुसार ऐसा करने का उन्हें अधिकार है, क्योंकि न्यास का एक उद्देश्य हरिजन सेवा भी है। अतएव यह नया सुझाव आश्रम और न्यास के व्यवस्था विधान के पूर्णतया अनुरूप है।


ट्रस्टियों के और मेरे लिए विचारणीय प्रश्न यह था कि जिस विशेष उपयोग का मैंने उल्लेख किया है, उसके लिए संपत्ति किसको सुपुर्द की जाये और हम सब सर्वसम्मति से इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि उसे भारत-व्यापी उपयोग के लिए अखिल भारतीय हरिजन संघ के सुपुर्द करना चाहिए। ट्रस्ट के उद्देश्य निम्नलिखित हैं :

  1. भविष्य में बनाये जाने वाले नियमोंपनियमों के अनुरूप आश्रम की भूमि पर वांछनीय हरिजन परिवार बसाये जायें; 2. हरिजन बालकों और बालिकाओं के लिए छात्रावास खोला जाये, जिसमें गैर-हरिजनों को भर्ती करने की स्वतंत्रता रहे; 3. खाल उतारने, कमाने, चमड़ा तैयार करने और इस प्रकार तैयार किये गये चमड़े के जूते, चप्पल और दैनिक आवश्यकताओं की ऐसी ही अन्य चीजें तैयार करने की कला में दीक्षित करने के लिए एक तकनीकी विभाग खोला जाये; और अंत में, इमारतों को गुजरात प्रांतीय या केन्द्रीय बोर्ड के कार्यालय के रूप में, और उन सारे उपयोगों के लिए काम में लाया जाये, जिन्हें निम्नलिखित अनुच्छेद में निर्दिष्ट समिति उचित समझे।
    मैं न्यासियों की ओर से यह सुझाव पेश करता हूं कि हरिजन सेवक संघ एक विशेष समिति नियुक्त करे, जिसमें आप और मंत्री पदेन (एक्स ऑफीसियो) सदस्य रहें और तीन अन्य सदस्य अहमदाबाद के तीन नागरिक हों। इस समिति को अपनी संख्या में वृद्धि करने का अधिकार रहे, और यही इस न्यास को हाथ में लेकर उसके उद्देश्यों की पूर्ति करे।
    दो मित्र, श्री बुधाभाई और श्री जूठाभाई इस आश्रम के साथ हमेशा से रहे हैं। उन्होंने आश्रम में अवैतनिक प्रबंधकों की हैसियत से रहने की तत्परता प्रकट की है। इनके जीवन-निर्वाह के अपने स्वतंत्र साधन हैं और ये हरिजन सेवा-कार्य में बहुत काल से लगे हुए हैं। एक ऐसा आश्रमवासी भी है, जिसने हरिजन सेवा के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया है। यह भी आश्रम में खुशी-खुशी रहने को तैयार हो जायेगा। हरिजन बालकों और बालिकाओं के शिक्षण-कार्य में तो इसने कमाल हासिल किया है। अतएव मैंने जैसी समिति बतायी है, उसे न्यास का प्रबंध करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए, न यह जरूरी है कि मैंने जितने काम बताये हैं वे एक साथ और तुरंत ही हाथ में ले लिये जायें। आपको पता ही है कि कुछ हरिजन परिवार वहां इस समय भी रहते हैं। आश्रम के सदस्यों का यह स्वप्न रहा है कि हरिजन परिवारों की एक बस्ती बसाई जाये, पर कुछेक को बसाने को छोड़कर हम इस दिशा में अधिक आगे नहीं बढ़ सके। वहां चमड़ा कमाने का प्रयोग भी जारी रखा गया था और आश्रमवासियों के तितर-बितर होने के समय तक वहां चप्पलें भी बनती थीं। इमारत में बड़ा-सा छात्रावास है, जिसमें 100 जन आसानी से रह सकते हैं। इसमें बुनाई करने का काफी बड़ा शेड है, और मैंने जो-जो काम गिनाये हैं, उनके लिए पूरी व्यवस्था है। संपत्ति में 100 एकड़ भूमि है। इस प्रकार मैं कह सकता हूं कि उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए स्थान काफी बड़ा तो नहीं है, फिर भी फिलहाल उनको जितनी पूर्ति की आवश्यकता है, उसे देखते हुए अच्छा खासा है। आशा है, मेरा प्रस्ताव स्वीकार करने में और इस स्वीकृतिजन्य उत्तरदायित्व की पूर्ति में संघ को कोई आपत्ति नहीं होगी। हृदय से आपका – मो. क. गांधी

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