अभिव्यक्ति की आजादी पर संकट
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की पहली सीढ़ी है। यदि इस सीढ़ी को ही ढहा दिया जाए तो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की मंजिल का सफर दुरूह हो जाएगा। पिछले कुछ वर्षों से इस देश में बोलने की आजादी को प्रशासनिक महकमों और सत्ता संस्थानों द्वारा कुतरने की सुनियोजित साजिश हो रही है। यूपी चुनाव के बाद इस साजिश की रफ्तार और बढ़ गयी है। मजहबी राजनेताओं, कार्यकर्ताओं का एक वर्ग एकबारगी मंदिर-मस्जिद के मुद्दों को उछालकर अपना वोट बैंक पुख्ता करने में मशगूल हो गया है। यह वर्ग प्रिंट, दृश्य और श्रव्य मीडिया पर कुछ भी कहने को आजाद है, पर इनको माकूल जवाब देने के लिए जब कोई सामाजिक, राजनीतिक और बौद्धिक एक्टिविस्ट मीडिया का सहारा लेकर कुछ कहता और लिखता है, तो उसको झूठे मुकदमों में फंसा दिया जाता है। रविकांत चंदन पर एफआईआर और रतन लाल की गिरफ्तारी इसकी हालिया मिसाल है। जनतंत्र का तकाजा है कि विरोधी पक्ष को भी अपनी राय बेखौफ़ रखने का मौका मिले, रविकांत के खिलाफ दर्ज शिकायत अविलंब वापस ली जाए और रतन लाल की बिना शर्त रिहाई हो।
दुश्मनी का सफर एक कदम दो कदम
तुम भी थक जाओगे हम भी थक जाएंगे- बशीर बद्र
-सुखचंद्र झा
पाठक के पत्र
मैंने आपका संपादकीय पढ़ा, काफी उम्दा लगा, लेकिन उसमें संतुलन का अभाव दिखा। अभिव्यक्ति कि आजादी भी एकतरफा नहीं होती। सबको हमें सामान्य रूप से देखना होगा। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वास्तव में बिकाऊ हुई है, लेकिन हमारी व्यवस्था हमें कन्फ्यूज कर रही है, इसलिए आप जैसे बुद्धिजीवी पर जिम्मेवारी ज्यादा हो जाती है। अभिव्यक्ति कि आजादी की चाह में-
-रजनीश कुमार सिंह
पटना, बिहार
सर्वोदय जगत का नया स्वरूप रामदत्त त्रिपाठी के संपादकत्व में बहुत ही सुंदर और उपयुक्त बना है। विविध महत्वपूर्ण विषयों को योग्य, अनुभवी और चिंतक लेखकों द्वारा ठोस जानकारी के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है। अन्य गतिविधियों की भी उत्तम जानकारी दी जा रही है। रामदत्त त्रिपाठी का अभिवादन, स्वागत है।
शुभकामनाओं के साथ।
-ज्योति दीदी
ब्रह्मविद्या मंदिर, पवनार