जन-मन

कृपया कुछ करें!

पश्चिम चम्पारण जिले में भूमि सुधार के मामलों में मची है अंधेरगर्दी। आयुक्त का आदेश कलेक्टर और कलेक्टर का आदेश सीओ नहीं मानते।

बीती 2 सितम्बर को ढाई वर्षों बाद समाहर्ता कोर्ट में बैठे। उनके कोर्ट में 13 से लेकर 45 वर्षों तक के 23 पुराने सीलिंग केस लंबित हैं। शिवानन्द तिवारी के प्रयास से नीतीश कुमार से हुई बात के बाद 1917 से 2019 के बीच चार बड़े सीलिंग केसों का दो कलेक्टरों ने फैसला किया। नरकटियागंज, बगहा एवं बेतिया के एसडीओ कोर्ट में सीलिंग के तीन केस दो-तीन दशक से पड़े हुए हैं । आयुक्त, मुजफ्फरपुर के यहां भी तीन केस हैं। पटना हाइकोर्ट में इस जिले के 20 से ज्यादा सीलिंग केस लंबित हैं। कनार्टक में सीलिंग केसों की सुनवाई के लिए दो कोर्ट हैं और बिहार में सात। यह तो लंबित सीलिंग केसों की बात हुई। दूसरी समस्या है कि जिन मामलों में केस समाप्त हो जाते हैं और समाहर्ता भूमि वितरण का आदेश दे देते हैं, उसे सीओ मानते नहीं। 1917 में एक और 2019 में दो भूधारियों की अधिशेष अर्जित व अधिसूचित भूमि के वितरण का आदेश धूल फांक रहा है। 2016 में भूमि सुधार अधिनियम-1961 में संशोधन कर उप धारा 45-बी का उपशमन कर दिए जाने के बावजूद आज तक संलिप्त लगभग 800 एकड़ में से एक एकड भूमि भी नहीं बंटी। दुख की बात है कि सरकारी जमीन-जीएम लैंड के पर्चाधारियों को भी दखल देहानी नहीं कराई जा रही है। हद तो यह है कि BLDR के अन्तर्गत DCLR कोर्ट में दायर वादों के फैसलों को भी लागू नहीं किया जा रहा है। न्याय के साथ विकास और सामाजिक न्याय के नारे सत्ता पाने, उसे बनाए रखने, विकास कार्यों का ठेका लेने तथा कमीशन खाने के काम में ज्यादा लाभप्रद साबित हो रहे हैं। सब के सब कमोबेश ढोंगी बने हुए हैं। कृपया कुछ सोचें और करें।

-पंकज, बेतिया

लोकशाही की रक्षा के लिए ‘जन-वास’ की राह पर

विनोबाजी की भूदान पदयात्रा का पड़ाव 16 अप्रैल, 1957 से तीन दिन कन्याकुमारी में था। सुबह विनोबाजी कन्याकुमारी के सागर तट पर गये। एक पत्थर पर बैठकर सागर की लहरों का स्पर्श, उगते सूर्यनारायण का दर्शन और कन्याकुमारी का स्मरण करते हुए उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि जब तक स्वराज्य का रूपांतरण ग्रामस्वराज्य में नहीं होता, तब तक हमारी यह देह निरंतर इस काम में लगी रहेगी। आज से 65 साल पहले विनोबाजी जिस स्वराज्य का रूपांतरण ग्रामस्वराज्य में करने निकले थे, आज वह स्वराज्य, स्वतंत्रता, लोकशाही और धर्मनिरपेक्षता, ये सारे मूल्य ही खतरे में पड़ गये हैं! एक सत्ताधीश तानाशाही कीतरफ कदम बढ़ा रहा है।

गांधीजी की शहादत के तुरंत बाद, विनोबाजी के मार्गदर्शन में जब सर्वोदय समाज तथा सर्व सेवा संघ की स्थापना हुई, तो उस सम्मेलन में राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आजाद, शंकरराव देव आदि कांग्रेस के अनेक नेता उपस्थित थे। कांग्रेस के महासचिव शंकरावजी देव ने ही सर्व सेवा संघ के पहले मंत्री का कार्यभार भी संभाला था। इस तरह से सर्वोदय और कांग्रेस एक दूसरे से जुड़ गए।

गांधीजी के दो वारिसों, विनोबा और नेहरू ने, स्वतंत्रता मिलने के बाद एक दूसरे के सहयोग से राष्ट्र-निर्माण का काम शुरू किया। विनोबाजी ने शासनमुक्त, शोषणविहीन, वर्गविहीन, अहिंसक समाज रचना के लिए, एकादश व्रतों की आधारशिला पर सर्वोदय आंदोलन को आगे बढ़ाया, तो पंडितजी ने बहुपक्षीय लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद, संमिश्र अर्थव्यवस्था एवं अलिप्ततावादी अंतरराष्ट्रीय नीति की बुनियाद पर देश और कांग्रेस का निर्माण किया। विनोबा प्रणीत सर्वोदय और पंडित नेहरू प्रणीत कांग्रेस के विचार परस्पर पूरक होते गये। सर्वोदय और कांग्रेस सहोदर बन गये, यह बात हमें समझ लेनी चाहिए।

विनोबा कहते हैं कि आज के पहले कांग्रेस की जो हालत थी, आज की उससे हालत भिन्न है। चूंकि वह राज्यकर्ता जमात है, इसलिए उसकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई है। आजादी के पहले कांग्रेस को जेल में, वनवास में जाना पड़ता था, इसलिए उसमें दाखिल होने वालों की सहज शुद्धि हो जाती थी। आज कांग्रेस वनवासी नहीं है, बल्की सिंहासनारूढ़ है, इसलिए उसमें अवांछनीय तत्वों के भी दाखिल होने का खतरा मौजूद है। ऐसी हालत में कोई विशेष त्याग का या वनवास का कार्यक्रम न भी हो, तो जनवास का कार्यक्रम उसके सामने होना चाहिए। किसी संस्था में अगर हम नैतिक शक्ति की अपेक्षा रखते हैं, तो उस संस्था के पास त्याग का कार्यक्रम होना चाहिए। कांग्रेस की पुण्याई को अगर कायम रखना है, तो उसे सर्वोदय के काम में लग जाना चाहिए।

विनोबाजी ने कांग्रेस की शुद्धि के लिए जिस त्याग, सेवा तथा जनवास के कार्यक्रम की अपेक्षा की थी, वह कार्यक्रम लेकर आज कांग्रेस कन्याकुमारी से कश्मीर तक की पदयात्रा पर निकल पड़ी है। देश में स्वराज्य, स्वातंत्र्य, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के मूल्य बरकरार रहे, तो ही विनोबाजी का अहिंसक समाज रचना का सपना पूरा हो सकेगा। कांग्रेस ने तानाशाही बनाम लोकशाही की लड़ाई छेड़ दी है। इस लड़ाई में सर्वोदय के कार्यकर्त्ताओं को लोकशाही के पक्ष में खड़े होकर कांग्रेस को नैतिक समर्थन देना चाहिए। यह वर्ष सर्वोदय का अमृत महोत्सव वर्ष है। वैसे ही यह कांग्रेस का भी अमृत महोत्सव वर्ष है। विनोबा तथा पंडित नेहरू यानी सर्वोदय और कांग्रेस के सहकार्य को भी 75 साल हो रहे हैं। सर्वोदय तथा कांग्रेस दोनों को इस बात का स्मरण रहें और एक दूसरे के सहयोग से राष्ट्रनिर्माण का कार्य करें!

-विजय दीवान

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