विकास की अवधारणा में मनुष्य कहां है?

विनोबा कहते थे कि वे गांधी के कंधे पर बैठे हैं, इसलिए विनोबा और आगे तक देखते हैं. भूदान और विनोबा को नए सिरे से हम सब को समझना होगा. अब जरूरी है कि विनोबा के कंधे पर हम कैसे बैठें? हमें याद रखना होगा कि गांधी के विचार और विकास की इस अवधारणा में मनुष्य कहां है?

चिन्मय मिश्र

सेवाग्राम इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है कि गांधी जब यहाँ मदन कोठी में आए और मगन संग्रहालय बनाया तो जो सबसे पहला काम उन्होंने किया, वह यह कि गांव के स्थानीय पदार्थों से मकान बनाये. यह आर्किटेक्चर देखते ही बनता है. सुंदरता को आप कैसे मापेंगे, इसके लिए एक निगाह भी तो चाहिए. आधुनिक विकास की जो परिभाषा है उसे सुनिश्चित करना होगा. प्रकृति को लेकर हमें एक मत होना होगा. एक सर्वव्यापी दृष्टिकोण अपनाना होगा, तभी किसी उपाय तक पहुंचा जा सकता है या उसका रास्ता तैयार किया जा सकता है.

हम हर चीज को विकास मान रहे हैं और शिक्षा, स्वास्थ्य, मनुष्य के बौद्धिक विकास आदि को विकास की कैटेगरी में रखते ही नहीं. सड़कों का जाल विकास के लिए नहीं, हमारे शोषण के लिए बिछाया जाता है. आज हम गांधीजनों को आधुनिक विकास की व्याख्या पर एकमत होना ही होगा. अगर हमारी व्याख्याएँ और अवधारणाएँ बंटी रहेंगी, तो हमारी लड़ाई भी बंट जायेगी. अगर विकास को लेकर गांधीजनों की एक परिपूर्ण नीति, परिपूर्ण विचार नहीं बनेगा, तो किसी भी तरह का समाधान संभव नहीं है.
एक साझा विचार के लिए हमें विचार करना होगा, जो पूरे देश पर लागू हो. पिछले ढाई, तीन सौ साल का जो इतिहास है, वह अपने आप में बड़ा महत्वपूर्ण है. पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, यह औद्योगीकरण की देन है. गांधी कहते हैं कि वर्तमान अराजकता का कारण है शोषण. मैं इसे बलवान राष्ट्रों द्वारा निर्बल राष्ट्रों का शोषण नहीं, बल्कि बंधु राष्ट्रों द्वारा बंधु राष्ट्रों का शोषण कहूंगा और यंत्रों का मेरा बुनियादी विरोध इस सत्य के आधार पर है कि यंत्र ही वह चीज है, जिससे इन राष्ट्रों को दूसरे राष्ट्रों का शोषण करने की क्षमता दी है.

हमें ध्यान रखना पड़ेगा कि विज्ञान और तकनीकी दो अलग चीजें हैं. विज्ञान का अपना कार्यक्षेत्र है और तकनीकी की अपनी जरूरतें हैं. अब इन सबके बीच कारपोरेट कहां से आता है? गांधी यह भी कहते हैं कि मशीनों का अपना स्थान है, उन्होंने अपनी जड़ें जमा ली है, परंतु उन्हें मानव श्रम का स्थान नहीं लेने देना चाहिए. इस आधुनिक विकास के समानांतर या इसके बरक्स हम जो नई व्यवस्था कायम करना चाहते हैं, वह है खादी, जिसे हम कपड़ा मात्र नहीं, जीवन शैली समझते हैं. खादी का आना गांधी की वजह से संभव हुआ, गांधी के अलावा कोई और खादी के बारे में सोच भी नहीं सकता था, क्योंकि हम जिस पश्चिमी अर्थव्यवस्था के बारे में सोच समझ रहे थे, जिसके सहारे आगे बढ़ रहे थे, उसमें खादी के लिए कोई गुंजाइश नहीं थी, इसलिए खादी को गांधी का सबसे बड़ा आविष्कार मानते हैं. शांति और अहिंसा से भी बड़ा आविष्कार, जो गांधी के सिवा और कोई नहीं कर सकता था. आज खादी की स्थिति यह है कि हमारे अपने ही संस्थान प्रोडक्शन के कारखानों में बदल चुके हैं, ऐसे में हम किससे और किस तरह के विकास के बारे में बात करें?

आधुनिक व्यवस्था आदिम अवस्था की तरफ लौट रही है, हमारी अपनी पहचान कहां जा रही है, यह हमको सोचना होगा. आज की जो सबसे बड़ी समस्या हमारे सामने आ रही है, वह कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण की है. आज पशुओं का चारा और मनुष्य का गेहूं करीब-करीब समान भाव पर पहुंच चुके हैं. इस देश में 80 करोड़ लोग निःशुल्क अनाज से अपना जीवन यापन कर रहे हैं. किसी व्यक्ति की गरिमा को खत्म करने का सबसे आसान तरीका यह है कि उसे इस हाल में पहुंचा दो कि वह अपना भोजन नहीं खरीद पाए और आपकी दया पर निर्भर हो जाए. गांधी इसी के खिलाफ थे, गांधी की पूरी अर्थव्यवस्था, गांधी की पूरी सोच इसी बात पर थी कि व्यक्ति की गरिमा और सम्मान तभी बचा रह सकता है, जब उसके पास व्यवसाय हो, इसलिए गांधी ने लाखों घरों में लाखों चरखा मिलें स्थापित कर दी थीं, जिसने महिलाओं को इस बात के लिए सशक्त किया कि वे कुछ कमा सकें.

यह गांधी के विचार और गांधी के विकास का जरिया है, एक तरीका है, जिसे कुमारप्पा ने बहुत पहले समझा था. गांधी कहते हैं कि गृह उद्योगों में हर प्रकार के सुधार का मैं स्वागत करता हूं, परंतु मैं जानता हूं कि यदि करोड़ों किसानों को उनके घरों में कोई धंधा मुहैया कराने की हमारी तैयारी न हो तो विद्युत शक्ति से चलने वाली मशीनें लाकर हाथ से काम करने वालों को हटा देना अन्याय है.

मनुष्य की सफलता क्रूरता में बदल गई है. अब वह प्रकृति पर बहुत क्रूरता के साथ कब्जा कर लेना चाहता है. वह अपनी पराजय को स्वीकार नहीं कर पा रहा है. वह और अधिक क्रूरता के साथ प्रकृति के विरुद्ध कार्य कर रहा है. यह हम सबके सामने है. हम जान गये हैं कि एक हरा पेड़ हमारी अर्थव्यवस्था में योगदान नहीं देता, एक कटा पेड़ हमारी जीडीपी में योगदान देता है, क्योंकि वह कट जाता है, हमें फर्नीचर मिलता है.

आज हम विचार के स्तर पर स्वतंत्र हैं या नहीं, जिस तरह के विकास के मॉडल में इस वक्त हम घुसे हुए हैं, उसमें क्या हमारी स्वतंत्र सोच कायम है? गांधी कहते हैं कि जो लोग स्वतंत्रता की अपेक्षा सुरक्षा को अधिक पसंद करते हैं, उन्हें जीने का कोई अधिकार नहीं है. आज हर कारपोरेट में एक एचआरडी डिपार्टमेंट होता है, मनुष्य संसाधन में बदल गया है. विनोबा कहते थे कि वे गांधी के कंधे पर बैठे हैं, इसलिए विनोबा और आगे तक देखते हैं. भूदान और विनोबा को नए सिरे से हम सब को समझना होगा. अब जरूरी है कि विनोबा के कंधे पर हम कैसे बैठें? हमें याद रखना होगा कि गांधी के विचार और विकास की इस अवधारणा में मनुष्य कहां है?

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