क्या गांधी को बचाना है?

गांधी और उनके विचारों को गाली देना समाज में स्वीकार्य होता जा रहा है, बल्कि गांधी को खुलेआम गाली देकर ऊंचा पद और बहुत कुछ पाया जा सकता है। यह स्थिति स्पष्ट रूप से गांधी विचार की स्वीकार्यता में आयी कमी को दिखाती है, जो चिंता का सबसे बड़ा कारण है। और इधर हम सेवाग्राम, साबरमती और खादीग्राम को बचाने में व्यस्त हैं।

 

हम लोग एक महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। देश आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। जौरा में बागियों के समर्पण के पचास साल पूरे हो गये हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हुए और संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के भी करीब अस्सी साल हो गये हैं, लेकिन दुनिया में हिंसा, उपभोक्तावाद, शोषण, प्रदूषण आदि चरम पर पहुंच गए हैं। यूक्रेन का युद्ध हो या कोरोना की महामारी, अफगानिस्तान की भुखमरी हो या बर्मा में नस्लीय संहार, पर्यावरण सम्मेलनों की विफलता हो या तेजी से बढ़ती हुई गरीबी और बेरोजगारी, बढ़ता हुआ दलित उत्पीड़न हो या महिला उत्पीड़न, समाज में तेजी से बढ़ती हुई साम्प्रदायिकता हो या जातिवाद, इनका समाधान गांधी के विचारों में खोजा जा सकता है। पर दुख की बात यह है कि उसी गांधी पर हमले हो रहे हैं। उनकी मूर्तियां तोड़ी और विरूपित की जा रही हैं। गांधी को सरेआम गालियां दी जा रही हैं। गोडसे के मंदिर बनाये जा रहे हैं। देश का झंडा और संविधान बदलने की तैयारी हो रही है। ऐसे महत्वपूर्ण समय में जौरा में होने वाला सर्व सेवा संघ का अधिवेशन और सर्वोदय समाज का सम्मेलन बहुत निर्णायक साबित हो सकते हैं।


यह सही है कि गांधी को किसी की सुरक्षा की जरूरत नहीं है। गांधी की मूर्ति को तोड़ने से गांधी को खत्म नहीं किया जा सकता। गांधी को गालियां देने से गाली देने वाले का ही अपमान होगा। फिर भी यह सोचना जरूरी है कि ऐसा क्यों किया जा रहा है? आखिर इस हद तक जाने की नौबत क्यों आयी? वास्तविकता यह है कि गांधी और उनके विचारों को गाली देना समाज में स्वीकार्य होता जा रहा है, बल्कि गांधी को खुलेआम गाली देकर ऊंचा पद और बहुत कुछ पाया जा सकता है। यह स्थिति स्पष्ट रूप से गांधी विचार की स्वीकार्यता में आयी कमी को दिखाती है, जो चिंता का सबसे बड़ा कारण है। और इधर हम सेवाग्राम, साबरमती और खादीग्राम को बचाने में व्यस्त हैं। हम डरे हुए हैं और उम्मीद करते हैं कि सरकार और कानून गांधी विचार की रक्षा करेंगे। क्या यह सोचना हास्यास्पद नहीं है?

हम देख सकते हैं कि आज दलित समाज गांधी का मुखर आलोचक बन गया है. इस हद तक कि मनुवादियों का समर्थन करने में भी उसे संकोच नहीं है। जो अल्पसंख्यक गांधी पर विश्वास करके भारत में टिके रहे, उनका विश्वास उठता जा रहा है और वे अपने सम्प्रदाय का नेता खोजने लगे हैं। सभी धर्मों का आदर करने वाला महिला समाज साम्प्रदायिकता का मजबूत आधार बन गया है। सबसे दुखद है कि साम्प्रदायिकता को दुश्मन घोषित करने वाले उसी मनुवाद मे फंसे हुए हैं और हर जाति एक दूसरे की दुश्मन बनी हुई है। दूसरी ओर हमने अभी अभी देखा कि गांधी के बताये रास्ते पर चलकर किस तरह किसान आन्दोलन ने सत्ताशीर्ष को झुका दिया। सीएए आन्दोलन ने भी गांधी के रास्ते पर चलकर सफल प्रतिरोध किया। विभिन्न पर्यावरण आन्दोलन और जन आन्दोलन गांधी के रास्ते पर चलने का प्रयास कर रहे हैं, पर इन आन्दोलनों में एकजुटता नहीं है। यदि हमें गांधी विचार, लोकतंत्र और वैश्विक भाईचारे को बचाना जरूरी लगता है तो हमें इन सबको एकजुट करने का प्रयास भी करना चाहिए। सर्वोदय समाज सबको जोड़ने का अच्छा माध्यम हो सकता है। हर जिले और हर प्रांत में सर्वोदय समाज का गठन करना चाहिए और दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं आदि से संवाद का तरीका निकाला जाना चाहिए।

-राम शरण

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

साबरमती आश्रम मामले में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

Wed Apr 13 , 2022
साबरमती आश्रम को बचाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट को आदेश दिया है कि वह इस मामले में महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी द्वारा दाखिल जनहित याचिका की सुनवाई करे और सभी संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करे। इससे […]

You May Like

क्या हम आपकी कोई सहायता कर सकते है?