लोकतंत्र और सामाजिक समरसता के लिए खतरा बना बहुसंख्यकवाद

देश भर से दिल्ली में जुटे सामाजिक सरोकारों से जुड़े कार्यकर्ता

नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में 4 और 5 जून को एक बैठक का आयोजन हुआ. सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध और समता, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता तथा शांतिमय संघर्ष में गहरी आस्था रखने वाले नॉन पार्टी कार्यकर्ताओं की इस बैठक में महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, ओड़िसा और मणिपुर के साथियों ने भाग लिया तथा लंबे चले विमर्श के बाद कई अहम फैसले लिए गये।

देश पर एकाधिकारवादी राजनीति का बोलबाला है । भाजपा एकदलीय वर्चस्व की राजनीति स्थापित करने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपना रही है। लोकतंत्र की आड़ में अधिनायकवादी शासन चल रहा है. जो व्यक्ति व समूह भाजपा से असहमत हैं और उसका विरोध करते हैं, उन्हें पुलिस कार्रवाई के तहत झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है। किसी को भी धड़ल्ले से देशद्रोही तक कहा जा रहा है। आज लोकतंत्र ख़तरे में है। बहुसंख्यकवाद एक बड़ी चुनौती है। विडम्बना यह है कि अधिकतर लोगों को यह एहसास ही नहीं है कि लोकतंत्र ख़तरे में है। ये बातें नई दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में 4 और 5 जून को आयोजित बैठक में वक्ताओं ने कहीं. सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रतिबद्ध और समता, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता तथा शांतिमय संघर्ष में गहरी आस्था रखने वाले नॉन पार्टी कार्यकर्ताओं की इस बैठक में महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, ओड़िसा और मणिपुर के साथियों ने भाग लिया तथा लंबे चले विमर्श के बाद कई अहम फैसले लिए गये। चार सत्रों में सम्पन्न हुई इस चर्चा के पहले सत्र में 2014 के बाद उभरी चुनौतियों पर सभी साथियों ने बारी-बारी से अपनी बातें रखी। वक्ताओं ने कहा कि देश व समाज को आज बड़ा ख़तरा साम्प्रदायिकता से है। आरएसएस और भाजपा जैसी साम्प्रदायिक शक्तियां सोची समझी रणनीति के तहत वंचित समुदायों का साम्प्रदायिकीकरण करने में लगी हैं। लेकिन माहौल ऐसा है कि अधिकतर लोगों को यह नहीं लगता कि साम्प्रदायिकता कोई मुद्दा है।

वक्ताओं ने कहा कि हाल के वर्षों में न्यायालय के रवैए से भी लोगों का भरोसा उठा है। न्यायालय संविधान के प्रति उत्तरदाई हो यह सवाल उठाने की आवश्यकता महसूस की गयी। यह भी कि एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष, सर्वधर्म समावेशी, समतावादी और संप्रभु राष्ट्र की हमारी अवधारणा आज खतरे में है। जनसरोकार के मुद्दे- मंहगाई, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य का सवाल अब गंभीर रूप से मारक बन चुका है। वंचित समुदायों में अपनी गरिमा व अधिकारों को लेकर उभरे संघर्षों को कमजोर करने के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। देश के संविधान को छद्म और लिखित हर तरीके से बदलने की कोशिशें जारी है। मीडिया भाजपा सरकार के जबरदस्त दबाव में है। डिजिटल मीडिया के द्वारा घृणा और झूठ फैलाने का एक सुनियोजित तंत्र खड़ा किया गया है।

उक्त चुनौतियों के सन्दर्भ में तीन मुद्दों पर फोकस करने पर सहमति बनी- इंसानी एकता, सभी को मानवीय व सुयोग्य रोजगार (काम का अधिकार) और आत्म सम्मान का अधिकार (सामाजिक समता)। यह भी सहमति बनी कि 2024 की चुनौती के मद्देनजर तेज अभियान चलाने की आवश्यकता है। हमारे संघर्ष की रणनीति क्या होगी दूसरे सत्र में इस पर भी गहन चर्चा हुई। लगभग सभी ने अपनी बातें रखीं। इस बात पर सबकी सहमति बनी कि मौजूदा परिस्थिति में हमारी अल्पकालीन रणनीति का लक्ष्य शांतिपूर्ण परिवर्तनकारी विचारों का प्रचार करते हुए 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन को शिकस्त देनी है। उक्त चुनौतियों के बरक्स अपने संघर्ष को निर्णायक दौर तक ले जाने की दीर्घकालीन रणनीति पर गम्भीर विमर्श हुआ।

मौजूदा संकट का सामना केवल भाजपा विरोधी राजनीतिक दलों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। हमें स्वतंत्र तरीके से तमाम लोकतांत्रिक एवं धर्मनिरपेक्ष शक्तियों व व्यक्तियों को समायोजित करते हुए हस्तक्षेप करना होगा। आमजन से व्यापक तौर पर हमलोग अपने मुद्दों को लेकर कनेक्ट नहीं कर पाते, इसका एक बड़ा कारण यह है कि हमारी ताकत छोटी है. लोगों में बदलाव की आकांक्षा पैदा करने में हम सक्षम नहीं हो पा रहे। इसलिए हर स्तर पर अपनी ताकत को एकजुट और व्यापक बनाने की आवश्यकता है। मौजूदा चुनौतियों की दृष्टि से संवेदनशील गांवों / इलाकों को चिन्हित करके क्षेत्रीय जन आंदोलन समूहों, धार्मिक समुदायों, अंबेडकरवादियों आदि के साथ संवाद साझा करना होगा। प्रत्येक स्तर पर युवाओं और महिलाओं को जिम्मेदारी देने और उनका नेतृत्व उभारने का सजग प्रयास करना होगा। इस रणनीति के आधार पर निम्न कार्ययोजनाएं बनाई गईं –


वाराणसी में प्रस्तावित इन्सानी एकता सम्मेलन को सफल बनाने में सभी की भागीदारी हो, ऐसा तय किया गया। जिन राज्यों के साथी बैठक में उपस्थित थे, उनकी भागीदारी सुनिश्चित की गई। राष्ट्रीय स्तर पर यात्राओं के आयोजन का निर्णय लिया गया। पोरबंदर/साबरमती (गुजरात), सेवाग्राम (महाराष्ट्र) और पूर्वी व पश्चिम चंपारण (बिहार) से यात्राएं निकाली जायेंगी, 30 जनवरी 2023 को राजघाट, दिल्ली में इनका सम्मिलन होगा। इस कार्यक्रम की अमली रूपरेखा राज्यस्तरीय बैठकों के बाद बनाई जाएगी। इस बात पर भी सहमति बनी कि जिला व प्रखंड स्तर पर छोटी-छोटी पदयात्राओं और साइकिल यात्राओं का सिलसिला आयोजित किया जाएगा। यह कार्यक्रम सभी साथी स्वतंत्र तरीके से अपनी-अपनी पहल से करेंगे। जिलों के स्तर पर महिलाओं, दलितों, अतिपिछड़ों एवं सामान्य लोगों के सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। यह कार्यक्रम भी स्वतंत्र पहल से होगा।
आपसी संवाद और विचारों के प्रचार-प्रसार में डिजिटल टेक्नोलॉजी की उपयोगिता को सभी ने स्वीकार किया।टी हुआ कि इस संबंध में एक टीम को प्रशिक्षक के रूप में प्रशिक्षित किया जायेगा। जबतक यह टीम तैयार नहीं होती है, तब तक इसे कार्यान्वित करने के लिए पुणे के साथी संकेत मुनोट को ज़िम्मेदारी दी गई। बैठक में देव देसाई को गुजरात, वीरेन्द्र विद्रोही और बसंत को राजस्थान की जिम्मेदारी दी गई। इन दोनों राज्यों में कोऑर्डिनेशन को गति देने के लिए शुभमूर्ति को प्रभार दिया गया। महाराष्ट्र की जिम्मेदारी युवराज एस गटकल ने ली और प्रभार कल्पना शास्त्री को दिया गया। उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी जागृति राही और ब्रजेश सक्सेना ने ली और प्रभार सत्य नारायण मदन को दिया गया। झारखंड की जिम्मेदारी कुमार चंद्र मारडी ने ली तथा प्रभार शाहिद कमाल और सत्य नारायण मदन को दिया गया। बिहार की जिम्मेदारी सत्य नारायण मदन को दी गयी और प्रभारी बनाए गए दिनेश प्रियमन। ओड़िसा की जिम्मेदारी क्षेत्र मोहन ने ली और प्रभार घनश्याम को दिया गया। मणिपुर की जिम्मेदारी वाई विपिन चंद्र घोस ने ली। यहां प्रभार फिलहाल किसी को नहीं दिया गया है।

एक बात शिद्दत से महसूस की गई कि दक्षिण के राज्यों की भागीदारी इस बैठक में नहीं हो पाई है। व्यावहारिक परिस्थितियों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया कि बंगलुरू में दक्षिण के राज्यों की एक बैठक की जाय। इसकी जिम्मेवारी शुभमूर्ति को दी गई। यह भी तय हुआ कि शुभमूर्ति, शेखर सोनालकर, विमल और कंचन बाला आदि जिन साथियों ने पहलकारी भूमिका ली है, वही लोग इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं। सत्य नारायण मदन एक संवाद-केन्द्र की भूमिका में हैं, उनकी भूमिका बनी रहेगी।

इस महत्वपूर्ण बैठक में संदीप विनायक देवरे, संकेत मुनोट और युवराज एस गटकल (महाराष्ट्र), वीरेन्द्र विद्रोही और बसंत (हरियाणा), राजू (राजस्थान), देव देसाई (गुजरात), जागृति राही, ब्रजेश कुमार सक्सेना, नदीम खान, अरुण, राकेश रफीक , अशोक आगरा, दिनेश प्रियमन, दिवाकर, कुणाल सिंह, डॉ आरती और सौरभ त्यागी (सभी उत्तर प्रदेश), किशोर और क्षेत्र मोहन (ओड़िसा), घनश्याम, कुमार चंद्र मारडी और शेखर (झारखंड), भूपेंद्र घोस और वाई विपीन चंद्र घोस (मणिपुर), शुभमूर्ति, कल्पना शास्त्री, अफ़ज़ल हुसैन,शाहिद कमाल, सुशील, उमेश धनरुआ, कंचन बाला और सत्य नारायण मदन (सभी बिहार), प्रो हसन रजा, सलीम इंजीनियर, हरीश खरे, शाहीन नज़र, प्रो अरमान, तारा, जागृति पंडित , सत्य प्रकाश भारत, प्रो राजीव रंजन गिरी, मो राशिद, लईक अहमद खान, रौशन कुमार बच्चन, अविनाश आदर्श, अशोक कुमार, संजय कुमार, राजीव गोस्वामी और अशोक (सभी दिल्ली) आदि साथी मौजूद थे। प्रथम दिन की बैठक में वाहिनी के पुराने साथी पूर्व केन्द्रीय राज्यमंत्री भक्तचरण दास भी अतिथि के तौर पर थोड़ी देर के लिए शामिल हुए और अपनी बातें रखीं । इनके अलावा सेवा दल के अध्यक्ष लालजी देसाई, जागृति पंड्या और नीतू पंड्या भी अतिथि के रुप में बैठक में शामिल हुए। लालजी देसाई ने साबरमती आश्रम से लेकर राजघाट तक की अपनी दो महीने की कड़ी धूप में चली पदयात्रा के अनुभव सुनाए। जागृति पंड्या ने भी अपने अनुभव साझा किये।

-शुभमूर्ति, शेखर सोनालकर, विमल, कंचन बाला

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