छत्तीसगढ़ के हरिहरपुर स्थित परसा कोयला खदान के आवंटन का मामला
ग्रामवासियों की मुख्य मांग है कि जंगल, जमीन, जैव-विविधता, जल स्रोत, वन्य प्राणियों के रहवास, आदिवासियों की आजीविका, संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा के लिए सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को खनन मुक्त रखते हुए प्रस्तावित सभी कोयला खदानें निरस्त की जांय.
छत्तीसगढ़ में सरगुजा जिले के विकासखण्ड उदयपुर के हरिहरपुर गाँव में स्थित कोयला खदान का आवंटन गौतम अडानी के नाम करने के लिए राज्य-सरकार पलक पावड़े बिछाकर खड़ी है। छत्तीसगढ़ सरकार राहुल गांधी की भावनाओं तथा आदेश का उल्लंघन करने में भी कोई संकोच नही कर रही है। गौरतलब है कि हरिहरपुर गाँव भारत के संविधान के पांचवी अनुसूची से आच्छादित है। हरिहरपुर की ग्रामसभा ने एक प्रस्ताव पारित करके पीले रंग के एक बोर्ड पर काले और मोटे अक्षरों में लिखकर यह सूचना गाँव में लगा रखी है-‘संविधान के अनुच्छेद 13 (3) (क) के तहत रूढ़ि या प्रथा को ही विधि का बल माना गया है। स्पष्ट है कि रूढ़ि या प्रथा को ही मान्यता दी जायेगी। अनुच्छेद 19 (5)(6) के तहत पांचवी अनुसूची से आच्छादित क्षेत्र में किसी भी बाहरी व्यक्ति का स्वतंत्र रूप से भ्रमण करना, निवास करना, घूमना-फिरना तथा व्यवसाय या रोजगार करना पूर्णतः प्रतिबंधित है। अनुच्छेद 244 (1) कण्डिका (5) (क) संसद या विधान मण्डल द्वारा बनाया गया कोई भी सामान्य कानून अनुसूचित क्षेत्र में लागू नही होंगे, जैसे आईपीसी एक्ट, सीआरपीसी एक्ट, भूमि अधिग्रहण कानून इत्यादि।’
ग्राम हरिहरपुर के जंगल हसदेव अरण्य के नाम से देश और दुनिया में पहचाने जाते हैं। यह क्षेत्र हाथियों का रहवास क्षेत्र भी है। हाथियों के रहवास क्षेत्र में दखलंदाजी का परिणाम हम सब जानते हैं। कल ही के अखबार में पढ़ा कि हाथियों ने गुस्से में आकर क्षेत्र के रेंजर को कुचलकर मार डाला तथा सामने आये महावत को भी नही छोड़ा। हाथियों के झुण्ड जब गुस्से में आते हैं तो गांव के गांव उजाड़ डालते हैं। हाथियों के लिए गौतम अडानी किस खेत की मूली हैं।
अडानी को खदान आवंटित किये जाने की जानकारी मिलने पर ग्रामवासियों ने आपत्ति लगाई और तब से लगातार आंदोलनरत हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने ग्रामसभा के फर्जी प्रस्ताव के आधार पर परसा कोयला खदान को अपनी सहमति देकर भारत के संविधान की पाँचवी अनुसूची का उल्लंघन किया है। 2 मार्च 2022 से ग्रामवासी अनिश्चित कालीन धरना और प्रदर्शन कर रहे हैं। ग्रामवासियों की मुख्य मांग है कि जंगल, जमीन, जैव-विविधता, जल स्रोत, वन्य प्राणियों के रहवास, आदिवासियों की आजीविका संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा के लिए सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को खनन मुक्त रखते हुए प्रस्तावित सभी कोयला खदानें निरस्त की जांय. परसा कोल ब्लॉक के लिए प्रस्तावित गांवों साल्ही, हरिहरपुर और फतेहपुर की ग्रामसभा के फर्जी प्रस्तावों की जाँच करके दोषियों पर कार्यवाही की जाय तथा कोल ब्लॉक को दी गई सभी स्वीकृतियां निरस्त की जांय. पाँचवी अनुसूची से आच्छादित क्षेत्रों में स्थित हसदेव अरण्य सहित प्रदेश की ग्राम सभाओं की सहमति लिये बिना किये गये सभी भूमि अधिग्रहण रद्द करने तथा वनाधिकार कानून-2006 के तहत सभी दावेदारों को उनकी जमीन पर मान्यता देने को लेकर संघर्ष जारी है। हजारों की संख्या में आदिवासी हरिहरपुर से पैदल चलकर रायपुर मुख्यमंत्री आवास पर पहुँचे। आदिवासियों के संघर्ष को देखकर सरकार ने खदानों की खुदाई तथा जंगल की कटाई रुकवा दी है, पर खदानों का आवंटन रद्द नहीं किया है। हसदेव अरण्य को बचाने के लिए बिलासपुर के बुद्धिजीवी तथा सामाजिक संगठन सड़कों पर निकल पड़े हैं। छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसूईया उइके स्वयं आदिवासी परिवार से हैं। वे जमीन से जुड़ी हुई हैं और आदिवासियों के दर्द से अवगत हैं।
संविधान में इस क्षेत्र में काम करने के लिए जनजातीय सलाहकार परिषद गठन करने का उल्लेख है। ऐसे प्रत्येक राज्य में, जिसमें अनुसूचित क्षेत्र है और यदि राष्ट्रपति निर्देश देते हैं, तो किसी ऐसे राज्य में भी, जिसमें अनुसूचित जनजाति तो है, किन्तु अनूसूचित क्षेत्र नही है, एक जनजातीय सलाहकार परिषद स्थापित की जायेगी, जो 20 से अनधिक सदस्यों से मिलकर बनेगी, जिसमें यथासंभव निकटतम तीन चैथाई उस राज्य की विधान सभा में अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधि होंगे। परन्तु उस राज्य की विधान सभा में यदि अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधियों की संख्या जनजातीय सलाहकार परिषद के लिए मानक संख्या से कम है, तो शेष स्थान उस जनजाति के अन्य सदस्यों से भरा जायेगा। जनजातीय सलाहकार परिषद का यह कर्तव्य होगा कि वह उस राज्य की अनुसूचित जनजाति के कल्याण और उन्नति से संबंधित ऐसे विषयों पर सलाह दे, जो उसको राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किया जाय।
ग्राम हरिहरपुर की निवासी सुनीता पोस्ते ने बताया कि हम जंगल के निवासी हैं. नदी, पहाड़, जंगल और जानवर हमारे परिवार के सदस्य तथा हमारे भगवान हैं. हम प्रकृति की पूजा करते हैं और प्रकृति धर्म को ही मानते हैं. हम हिन्दू नहीं हैं. हम अपनी जमीन किसी भी कीमत पर गौतम अडानी को कोयला खदान के लिए नहीं देंगे। उन्होंने कहा कि हमें इस क्षेत्र में कोई सलाहकार परिषद की जानकारी नहीं है। जिस तरीके से पेड़ से पत्ते गिरने के बाद हवा में उड़ जाते हैं, उसी तरीके से अडानी के नोटों को हमने उड़ा दिया है। हम खदानों के बीच में नही, जंगल और जानवरों के बीच ही रहेंगे।
बस्तर के आदिवासियों पर छत्तीसगढ़ की सरकार जुल्म ढा रही है। उनके जल, जंगल, जमीन एवं जानवर उनसे छीने जा रहे हैं। विकास के नाम पर विनाश का खेल जारी है। आइये, हम सब मिलकर हसदेव अरण्य को बचाने के लिए अपना संघर्ष तेज करें।
-आराधना भार्गव