विनोबा विचार प्रवाह की इस श्रृंखला में आज का मनोगत राजेश्वरी दलाई की कलम से.वे सेवा समाज, रायगढ़ ओड़िसा की सम्पादक हैं
ज्ञान का संबंध हृदय के साथ, हृदय की श्रद्धा भक्ति के साथ होता है। उसे प्राप्त करने के लिए साधना की जरूरत होती है। उपनिषदकार कहते हैं कि ज्ञान प्राप्त करने का साधना ही तप है और तप से ही ब्रह्मयोग प्राप्त होता है। ब्रह्म बिद्यामन्दिर ज्ञान प्राप्त करने का साधना केन्द्र है, जहाँ सत्य, प्रेम और करुणा की गंगा बहती है। बाबा स्त्रियों के प्रति अत्यंत संवेदनशील थे। स्त्री शक्ति जागरण और आध्यात्मिक क्षेत्र मे स्त्रियों के आगे बढ़ने से समाज में परिवर्तन हो सकता है। यह बाबा का विश्वास था। आश्रम की बहनों ने ब्रह्मविद्या मन्दिर को बहुत अच्छे से सम्भाल रक्खा है। बाबा के समय में जो विचार प्रवाहित हो रहा था, वही विचार आज भी वहां से प्रवाहित हो रहा है।.
बाबा के समय में जो विचार प्रवाहित हो रहा था, वही विचार आज भी वहां से प्रवाहित हो रहा है।
मुझे ब्रह्मविद्या मन्दिर को देखने का सौभाग्य अभी तक नहीं मिला, पर जब से सेवा समाज ओड़िसा में रतन दास, अप्पा और सर्वोदय परिवार से जुड़ी हूँ, तब से बाबा और ब्रह्मविद्या मन्दिर के बारे में बहुत कुछ जानने का सौभाग्य मिला है, विशेषकर विनोबा विचार प्रवाह की जो विचार संगीति आयोजित हुई थी, उससे हमें और ज्यादा जानकारी हो सकी है। ब्रह्मविद्या मंदिर शक्ति, भक्ति ओर ज्ञान की त्रिवेणी है। बाबा की हृदय से हृदय जोड़ने की जो प्रक्रिया है, वह आज भी ब्रह्मविद्या मन्दिर के वातावरण में प्रवाहित होता है। हम सब इसी प्रवाह से जुड़े हुए हैं। आज समाज को ब्रह्मविद्या मन्दिर जैसी प्रयोगशाला की बहुत आवश्यकता है. सबके मन में सत्य, प्रेम और करुणा का प्रवाह प्रवाहित रहे, यही हमारी अभिलाषा है। -राजेश्वरी दलाई