देश की तीन प्रमुख समस्याएं – महंगाई, बेरोजगारी और सांप्रदायिकता
सर्व सेवा संघ ने अगस्त क्रांति दिवस 9 अगस्त से महा जन-जागरण यात्रा और सत्याग्रह की शुरूआत करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय सर्व सेवा संघ के 89वें अधिवेशन में लिया गया, जो 17-18 जुलाई 2022 को गुजरात के सूरत शहर में सम्पन्न हुआ। अधिवेशन में जारी आधार पत्र की रोशनी में देश और दुनिया की अनेक समस्याओं और उनके समाधान की दिशा में व्यापक विचार-विमर्श हुआ। अधिवेशन ने अपना राजनीतिक प्रस्ताव भी पारित किया। पढ़ें अधिवेशन की विस्तृत रिपोर्ट।
सूरत के दादा भगवान मन्दिर के विशाल प्रांगण में गत 17 और 18 जुलाई को देश भर से जुटे लोकसेवकों, सर्वोदय मित्रों और सर्वोदय सेवकों की गरिमामय उपस्थिति में सर्व सेवा संघ का दो दिवसीय 89 वां अधिवेशन संपन्न हुआ. अनेक सत्रों में विभाजित यह अधिवेशन अनेक ज्वलंत और तात्कालिक महत्व के विषयों के अलावा संगठनात्मक बहसों और लोकमहत्व की गम्भीर चर्चाओं का गवाह बना. समकालीन राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों, राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक प्रवाहों पर भी गहरी दृष्टि डाली गयी तथा देश की राजनीतिक परिस्थितियों से उत्पन्न विकराल महंगाई और राष्ट्रव्यापी बेरोजगारी के चलते विकट होते जाते लोकजीवन की समस्याओं पर भी गहन मंथन किया गया. देश भर से जुटे प्रतिनिधियों के बीच सार्थक और सकारात्मक चर्चा हो सके, इस दृष्टि से अधिवेशन के प्रारम्भ में ही अधिवेशन का आधार पत्र प्रस्तुत किया गया तथा चर्चाओं के बीच से निकले समाधानों और सुझावों के दृष्टिगत खुले अधिवेशन में खुले चर्चा सत्र के बाद एकाधिक प्रस्ताव भी पारित किये गये.
उद्घाटन-सत्र
लोकतंत्र को फासीवाद में बदलने से रोकना है-रामचंद्र राही
17 जुलाई की सुबह शुरू हुए अधिवेशन के उद्घाटन सत्र में सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल, महामंत्री गौरांग महापात्र, मंत्री अरविंद कुशवाहा, अधिवेशन के आयोजक और महात्मा गाँधी सेंटर फॉर सोशल स्टडीज़ एंड सोशल चेंज के प्रबन्धक ट्रस्टी उत्तम भाई परमार तथा केंद्रीय गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचन्द्र राही ने गांधी, विनोबा व जयप्रकाश नारायण के चित्रों पर सूत माला अर्पित की तथा तुलसी के पौधे को जलांजलि दी। परंपरा के मुताबिक पिछले अधिवेशन से लेकर इस अधिवेशन के बीच जो साथी नहीं रहे, उनके सम्मान में पूरे सदन ने शेख हुसैन के नेतृत्व में दो मिनट मौन खड़े रहकर सामूहिक श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके बाद नाजनीन द्वारा गए गये भजन ‘वैष्णव जन तो तेने कहिये…’ और बजरंग सोनावड़े के नेतृत्व में हुई सर्व धर्म प्रार्थना के साथ विधिवत अधिवेशन का प्रथम सत्रारम्भ हुआ।
इसके बाद अधिवेशन का औपचारिक उद्घाटन वरिष्ठ गांधीवादी नेता रामचन्द्र राही ने किया. डॉ विश्वजीत ने औपचारिक रूप से सदन से उनका परिचय कराया. रामचन्द्र राही ने कहा कि 1952 में भूदान शुरू हुआ और उसी समय पंचवर्षीय योजना भी प्रारंभ हुई। 1956 में जब मैं धीरेन्द्र मजूमदार के संपर्क में आया, तो नई तालीम और नए समाज रचना की सशक्त भूमिका बन रही थी। सर्वोदय संयोजन का खाका तैयार किया गया था। शंकरराव देव इस समिति के अध्यक्ष तथा रवीन्द्र वर्मा ड्राफ्ट लेखक थे। सर्व सेवा संघ उस वक्त अत्यंत गहराई से राष्ट्र निर्माण के मुद्दे पर सक्रिय था।
विनोबा ने कहा है कि हर प्रकार की राज्य व्यवस्था की बुनियाद में हिंसा व्याप्त है। भूदान अहिंसक समाज निर्माण का एक वाहिद उद्यम था। लोकतंत्र तो तभी सफल होगा, जब लोक की चेतना प्रबल होगी और उसमें व्यवस्था को नियंत्रित करने का सामर्थ्य भी विकसित होगा। गांधी जी ने नैतिक शक्ति को जागृत कर स्वतंत्रता को उसके मुकाम तक पहुंचाया था। परंतु आज भी नैतिकता और क्रूरता के बीच संघर्ष जारी है। गांधी जी ने कहा था कि सैन्यशक्ति पर लोकशक्ति की विजय से ही लोकतंत्र की स्थापना होगी।
आज़ादी के तुरंत बाद हुए चुनाव में राजा हार गए और रंक जीत गया। गांधी जी की कल्पना थी कि हर गांव में लोकसेवक होंगे, जो लोकतंत्र को सक्रिय और जागृत करेंगे। सर्व सेवा संघ का उत्तरदायित्व अहिंसा, सत्य और जनता के प्रति है। लोकसेवक कोई बनाता नहीं है, वह स्वयं बनता है। लोकसेवक साधक होता है। जबसे हमने दूसरों को नापना शुरू किया है, तभी से हमारी गति में भी विचलन नजर आया है।
आज रंक को मजबूत बनाने के सारे सरंजाम को कमजोर किया जा रहा है। गांधी स्मृति और दर्शन समिति ने अपनी पत्रिका ‘अन्तिम जन’ में सावरकर विशेषांक निकालकर संस्था को दूषित किया है। जो सावरकर को मानते हैं, उन्हें चाहिए कि वे उनके के पक्ष में स्वतंत्र रूप से भूमिका लें, गांधी की आड़ लेकर सावरकर को महिमामंडित न करें। यह सहन नहीं किया जा सकता। लोकतंत्र को फासीवाद में नहीं बदलने देना है। जनता को निरीह और भिखमंगा नहीं बनने देना है। आत्मसम्मान से भरपूर जागरूक जनमत का निर्माण करने का लक्ष्य हमारे सामने है।
सवाल प्रतिमा का नहीं, प्रतिभा का है- प्रकाश भाई शाह
इससे पहले देश भर से आये अतिथियों और अभ्यागतों का स्वागत करते हुए सामाजिक चिंतक प्रकाश भाई शाह ने कहा कि सरदार पटेल को बड़ा दिखाने के लिए एक बड़ी प्रतिमा स्थापित कर दी गयी, पर सवाल प्रतिमा का नहीं, प्रतिभा का है। जो प्रयोगवीर होते हैं, वे सफल या असफल हो सकते हैं, पर हर प्रयोग कुछ न कुछ सबक दे जाता है और आप एक-एक कदम आगे बढ़ते जाते हैं। राष्ट्र को अपने परिपक्व होने की कीमत चुकानी पड़ती है। प्रयोगों से किसी को लाभ मिलता है, तो किसी को अनुभव मिलता है। आज का दौर विलक्षण है। मो जुबेर, तीस्ता सीतलवाड़, हिमांशु कुमार, मेधा पाटकर एक सचेत नागरिक की भूमिका अदा करने वाले योद्धा हैं, लेकिन अब वे राष्ट्रद्रोही, राजद्रोही बताये जा रहे हैं। समाज के व्हिसिल ब्लोअर्स अपराधी कहा जा रहा है। राज्य प्रतिष्ठान एक विकृति को स्थापित करना चाहता है। गांधी ने जलते हुए महल में रहकर उसकी आग बुझाने का हुनर हमें सिखाया है। हमें भी इसी दुनिया में रहना है, उसे ही गढ़ना है। विनोबा और जेपी ने यही किया है।
कुसुम बरा मोकाशी को मिला पहला गांधी पुरस्कार
इसी सत्र में सर्व सेवा संघ द्वारा वर्ष 2021 के लिए प्रसिद्ध सर्वोदयी व सामाजिक कार्यकर्ता कुसुम बरा मोकाशी को अहिंसक समाज रचना में उनके उल्लेखनीय योगदान के प्रति आभार प्रकट करते हुए ‘गांधी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उन्हें एक लाख रूपये की राशि के अलावा स्मृति-चिह्न और सम्मान-पत्र सौंपा गया। इस अवसर पर इस पुरस्कार के प्रेरक गांधीवादी मदन मोहन वर्मा ने कहा कि बुद्ध और गांधी भारत की आत्मा हैं। इन्हें मारने की कोशिशें हो रही हैं। अगर ऐसा हुआ तो यह देश भी मर जाएगा। मदन मोहन वर्मा गांधी विचार प्रचार के लिए अबतक गांधी जी की ‘आत्मकथा’ की तकरीबन 40 हजार पुस्तकों का नि:शुल्क वितरण कर चुके हैं।
सम्मान ग्रहण करते हुए कुसुम बरा मोकाशी ने कहा कि साधनों के संग्रह से सुख मिल सकता है, खुशी नहीं। समाज में शांति की स्थापना ही हमारा परम लक्ष्य है। इस पुरस्कार की स्थापना की प्रेरक चित्रा वर्मा एवं मदन मोहन वर्मा ने इस अवसर पर सभी के प्रति आभार प्रकट करते हुए कहा कि हमें बहुत ख़ुशी है कि पहला गाँधी पुरस्कार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बताये रास्ते पर चलने वाली समर्पित सेवा साधिका कुसुम बरा मोकाशी को दिया गया है. सर्व सेवा संघ के किसी अधिवेशन में हमारी यह पहली भागीदारी है और इतने बड़े राष्ट्रीय मंच से बोलने का पहला अनुभव। खुद को आप सबके बीच पाकर हमें बहुत ख़ुशी हो रही है।
सर्व सेवा संघ के अध्यक्ष चंदन पाल ने अधिवेशन को संबोधित करते हुए कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दावा करते हुए देश में एक परिहास चल रहा है। आज मेधा पाटकर, हिमांशु कुमार, मो जुबैर और तीस्ता सीतलवाड़ जैसे लोग इसी प्रहसन के ताजा शिकार बने हैं। हम लोकतंत्र पर आए इस संकट को मौन रहकर देख नहीं सकते। संघ अध्यक्ष के इस आह्वान के साथ ही अधिवेशन के उद्घाटन सत्र का समापन हुआ। इस सत्र का संचालन संतोष कुमार द्विवेदी ने किया।
अहिंसक अर्थशास्त्र का औजार है चरखा – राजेन्द्र सिंह
औपचारिक उद्घाटन सत्र के बाद अगले सत्र में सर्व सेवा संघ के मंत्री अरविन्द कुशवाहा और महामंत्री गौरांग महापात्र ने अपनी-अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसके बाद खादी पर चर्चा प्रारम्भ हुई. इस सत्र में बोलते हुए जल-पुरुष राजेन्द्र सिंह ने कहा कि खादी बापू की विरासत है. कालचक्र में हम गांधी के लोग चरखा चलाना भूल गये। जबकि अहिंसक अर्थशास्त्र का एकमात्र औजार है चरखा। आधुनिक शिक्षा प्रणाली प्रकृति का शोषण और अतिक्रमण करना सिखाती है। जबकि अगर हम वास्तव में सीखना चाहें तो आज के इस भयावह दौर में भी हमें देश के हर गाँव में शिक्षक मिल जायेंगे। खादी को अपने विरोधियों के विरोध में आवाज उठानी होगी, वरना खादी का अहिंसक अर्थशास्त्र भारत से उखड़ जाएगा। हमारे सामने नजीर भी है. देश के चार राज्यों दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में चलने वाली 28 खनन परियोजनाओं को बंद करने की मांग सरकार को लोकशक्ति के दबाव में माननी पड़ी और इस तरह अरावली की पहाड़ियों को बचाया गया।
इस वक्तव्य के बाद हुई खुली चर्चा में उत्तर प्रदेश से रामधीरज, गुजरात से सीताराम, महाराष्ट्र से युवराज, राजस्थान से राजू और ओड़िशा से वीर प्रताप दास आदि ने अपनी बात रखी। इससे पहले इस सत्र को माधव सहस्रबुद्धे, चिन्मय मिश्र और गौहरीमल वर्मा ने भी संबोधित किया। अशोक शरण ने इस सत्र का संचालन किया। उन्होंने घोषणा की कि 75 वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इस बार 15 अगस्त को देश भर में 75 स्थानों पर एक साथ चरखा चलाया जाएगा. इस आयोजन में भाग लेने वाले साथी इस कार्यक्रम के वीडियो बनाकर भेजें. इस सत्र का समापन भी सर्व धर्म प्रार्थना के साथ किया गया। देश के विभिन्न भागों से आये युवाओं ने अपनी-अपनी भाषा में जनजागरण के गीत गाये. इस सत्र के बाद रात में देश के विभिन्न हिस्सों से आये विभिन्न भाषाभाषी युवाओं ने सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये।
अधिवेशन का दूसरा दिन
9 अगस्त 2022 से प्रारंभ होगी महा जनजागरण यात्रा
18 जुलाई 2022 को अधिवेशन के दूसरे दिन, प्रथम सत्र में यह प्रस्ताव लिया गया कि इस अधिवेशन के दौरान चर्चा में आए मुद्दों को केंद्रित करके बहुलतावादी समाज, मानवतावादी संस्कृति, संघीय और लोकतांत्रिक स्वरूप एव धार्मिक सद्भाव की रक्षा के लिए 9 अगस्त, क्रांति दिवस के दिन से एक महा जनजागरण यात्रा का प्रारंभ होगा। यह यात्रा कई चरणों में सम्पन्न होगी। 9 अगस्त को दिल्ली में गांधीवादी व अन्य सहमना संगठनों के सहकार से नागरिक अधिकारों को कुचल देने के प्रयासों के प्रतिरोध में सत्याग्रह का यह कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
सत्र के प्रारम्भ में सर्व सेवा संघ प्रकाशन के कार्यकर्ता तारकेश्वर सिंह द्वारा अधिवेशन का आधार पत्र पढ़ा गया। देश के सामने उपस्थित ‘वर्तमान परिस्थितियों में, एक संगठन के तौर पर हमारी भूमिका’ विषय पर चर्चा का आयोजन हुआ। इस सत्र की शुरुआत करते हुए ओड़िशा के साथी डॉ विश्वजीत ने कहा कि आज देश तीन प्रमुख समस्याओं से जूझ रहा है- बेरोजगारी, महंगाई और सांप्रदायिकता। इन बड़ी और विकराल समस्याओं का कोई समाधान तलाशने के बजाय इसी बीच सेना में अग्निपथ योजना की घोषणा कर दी गई। इसके पीछे यह मंशा साफ समझ में आती है कि कारपोरेट सेक्टर को प्राइवेट आर्मी से लैस करने की योजना है। बिहार के साथी विनोद रंजन ने कहा कि आज हमें इस अधिवेशन से कोई न कोई कार्यक्रम तय करके निकलने की जरूरत है। संघ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रमेश ओझा ने कहा कि जे कृष्णमूर्ति ने कहा था कि प्रकृति में हर ताकतवर चीज कमजोरों का पोषण करती है, एकमात्र मनुष्य ही है जो अपने से कमजोरों का शोषण करता है। आज भी भारत का किसान देश की अर्थव्यवस्था का पोषण कर रहा है, जबकि सत्ता किसान का हर प्रकार से शोषण कर रही है। उन्नाव, उत्तर प्रदेश की साथी पुतुल ने कहा कि हर दौर की अपनी चुनौतियां होती हैं। जेपी के सामने जैसी चुनौतियां थी, उन्होंने युवाओं को उन चुनौतियों के मुताबिक गढ़ा। आज की चुनौतियां उससे अलग है, इसलिए हमें आज के मुताबिक नागरिक तैयार करने होंगे।
अधिवेशन के आयोजक उत्तम भाई परमार ने बेहद भावुक शब्दों में कहा कि आज देश घने अंधेरे में है। इस अंधेरे की वजह ढूंढ़ी जानी चाहिए। 15 अगस्त 1947 के पहले भारत छोड़ो आन्दोलन का विरोध करके और उसके बाद गांधी जी की हत्या करके जिन लोगों ने अपना सब कुछ गंवा दिया था, आज वही लोग शासन में हैं और प्रतिशोध की भावना से भरे हुए हैं। वही लोग अंधेरा फैला रहे हैं। वे लोगों को जगाने का नहीं, मूर्छित करने का काम कर रहे हैं। देश की बिखरी हुई सांप्रदायिक शक्तियां आज इकट्ठा हो गई हैं। देश में कोई सांस्कृतिक संघर्ष नहीं है, दरअसल देश में हिंदू धर्म की दो धाराओं के बीच संघर्ष है। एक तरफ महात्मा गांधी की हिंदू धर्म की धारा है और दूसरी तरफ सावरकर की हिंदू धर्म की धारा है। आज देश में दूसरा स्वतंत्रता संग्राम छिड़ चुका है, जिसमें
तीस्ता सीतलवाड़, हिमांशु कुमार और जुबेर अहमद जैसे साथी हमारे स्वतंत्रता सेनानी है, वहीं एहसान जाफरी और स्टेन स्वामी जैसे लोग इस आजादी की लड़ाई के शहीद हैं। अब यह अंधेरा छंटने वाला है, क्योंकि उनके हथियार चुक रहे हैं। गांधी और विनोबा का पुण्य हमारे साथ है।
सवाई सिंह ने कहा कि हमें समयबद्ध कार्यक्रमों के साथ जनता के बीच जाने की जरूरत है। आज हमारी शक्ति या तो बिखरी हुई है या निष्क्रिय है। हिमांशु कुमार और तीस्ता जैसे साथी आज जिस संकट का सामना कर रहे हैं, हमें उनके साथ खड़े होने की जरूरत है। यह आर-पार की लड़ाई का समय है। देश आर्थिक गुलामी की तरफ बढ़ रहा है, राजनीतिक गुलामी इसके तुरंत बाद आएगी, इतिहास खुद को दोहराने की स्थिति में है। देश को अगर बचाना है तो आज हमें खड़े होने की जरूरत है। इस सत्र को मधुसूदन भाई, मदन मोहन वर्मा, सोमनाथ रोड़े और आशा बोथरा आदि साथियों ने भी संबोधित किया। इस सत्र का संचालन सर्व सेवा संघ प्रकाशन के संयोजक अरविन्द अंजुम ने किया।
इसके अगले सत्र में सर्व सेवा संघ की संगठनात्मक चर्चा हुई। इस सत्र का संचालन रमेश दाने ने किया और चिन्मय मिश्र ने अधिवेशन का राजनीतिक प्रस्ताव पढ़ा। खुले अधिवेशन में प्रस्ताव पर अनेक संशोधन आए। इस्लाम हुसैन, राम धीरज, चंदन पाल, रामचंद्र राही, संतोष द्विवेदी, अशोक शरण, इंद्र सिंह, सोमनाथ रोड़े, रमेश ओझा आदि ने अपने-अपने सुझाव दिए। लगभग सभी सुझावों को स्वीकार कर लिया गया। संगठनात्मक चर्चा के बाद प्रदेश सर्वोदय मंडलों के साथियों ने अपने-अपने राज्य की रिपोर्ट पढ़ी। उत्तराखंड से इस्लाम हुसैन, कर्नाटक से चंद्रशेखर, हरियाणा से जय भगवान सिंह, पश्चिम बंगाल से डॉ. विश्वजीत घोराई, राजस्थान से जौहरी वर्मा, महाराष्ट्र से रमेश दाने, मध्य प्रदेश से भूपेश, उत्तर प्रदेश से रामधीरज, बिहार से विनोद रंजन के अलावा उड़ीसा की रिपोर्ट भी पढ़ी गई। इसके बाद मंच पर उपस्थित वरिष्ठ गांधीजनों के हाथों ‘सर्वोदय जगत’ के नवीनतम अंक का लोकार्पण किया गया।
अधिवेशन के समापन सत्र का संचालन संतोष द्विवेदी ने किया। डॉ सुगन बरंठ और उत्तम सिंह परमार का संबोधन हुआ। इसके अलावा सर्वोदय के पुराने तथा विशिष्ट कार्यकर्ताओं को अंगवस्त्र, सूत की माला और सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया। अंतिम सत्र के अंत में सर्व सेवा संघ के महामंत्री गौरांग चंद्र महापात्र ने देश भर से आये लगभग 400 प्रतिभागियो, सभी अतिथियों और आयोजकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। संतोष द्विवेदी के नेतृत्व में ‘जय जगत पुकारे जा’ गीत का सामूहिक गान हुआ। इसके बाद मधुसूदन भाई के नेतृत्व में ‘सर्वधर्म प्रार्थना’ के साथ अधिवेशन का समापन हुआ।
– प्रेम प्रकाश