यीशु-वाणी
विनोबा ने गीता, भागवत, धम्मपद, जपुजी, कुरआन आदि अनेक धर्मग्रंथों के नवनीत लिखे हैं। इसके पीछे उनका मन्तव्य दिलों को जोड़ने का रहा है। ख्रिस्त धर्म सार इसी योजना की अगली कड़ी है। इसमें विनोबा ने न्यू टेस्टामेंट का सार सर्वस्व लिखा है। प्रस्तुत है अगली कड़ी।
प्रस्थान- जब उसके ऊपर उठाये जाने के दिन पूरे होने पर थे, तो उसने यरूशलम जाने का निश्चय दृढ़ किया और आगे दूते भेजे; वे सामरियों के एक ग्राम में गये कि उसके लिए व्यवस्था करें। परंतु गांव वालों ने उसका स्वागत नहीं किया, क्योंकि उसके चेहरे से ऐसा लगता था कि वह यरूशलम जा रहा है। यह देखकर उसके शिष्य याकूब और यूहन्ना ने कहा, हे प्रभु! क्या तू चाहता है कि हम आज्ञा दें कि आकाश से आग गिरकर उन्हें भस्म कर दे, जैसा कि एलिया ने किया था। परंतु उसने मुड़कर उन्हें डांटा और कहा, तुम नहीं जानते कि तुम कैसी आत्मा हो, क्योंकि मनुष्य का पुत्र लोगों के प्राणों का नाश करने नहीं, वरन् उन्हें बचाने के लिए आया है और वे किसी और ग्राम में चले गये।
-लूका 9.51-56
सिर धरने की भी जगह नहीं- जब वे मार्ग में चले जाते थे, तो किसी ने कहा कि जहां-जहां तू जायेगा, मैं तेरे पीछे हो लूंगा। यीशु ने उससे कहा कि लोमड़ियों की मांदें और आकाश में उड़ने वाले पक्षियों के घोंसले होते हैं, पर मनुष्य के पुत्र को सिर धरने की भी जगह नहीं। उसने दूसरे से कहा, मेरे पीछे हो ले। उसने कहा कि हे प्रभु! मुझे पहले जाने दे ताकि अपने पिता को दफना दूं। उसने उससे कहा कि मरे हुओं को खुद को दफनाने दे, तू जाकर ईश्वर के राज्य का प्रचार कर। एक और ने भी कहा कि हे प्रभु, मैं तेरे पीछे हो लूंगा, पर पहले मुझे जाने दे कि अपने घर पर बुलाये हुए मेहमानों से बिदा हो आऊं। यीशु ने उससे कहा कि जो मनुष्य अपना हाथ तो हल पर रखे हुए है, पर पीछे की तरफ देखता है, वह ईश्वर के राज्य के योग्य नहीं। -लूका 9.57-62
सच्चा पड़ोसी- एक कानूनवेत्ता उठा और यह कहकर उसकी परीक्षा-सी करने लगा कि हे गुरु! अनन्त जीवन का उत्तराधिकारी होने के लिए मैं क्या करूं? उसने उससे कहा कि कानून में क्या लिखा है? उसका तू क्या अर्थ निकालता है? उसने उत्तर दिया कि तू अपने प्रभु ईश्वर से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम कर और अपने पड़ोसी से अपने ही समान प्रेम कर। उसने उससे कहा कि तूने ठीक उत्तर दिया, यही कर तो तू जीवित रहेगा। परंतु उसने अपने प्रश्न को उचित ठहराने की इच्छा से यीशु से पूछा, तो मेरा पड़ोसी कौन है? यीशु ने उत्तर दिया कि एक मनुष्य यरूशलम से यरीखो को जा रहा था कि डाकुओं ने उसे घेरकर उसके कपड़े उतार लिए, मार-पीटकर उसे अधमरा करके चले गये और ऐसा हुआ कि उसी मार्ग से एक पादरी जा रहा था, परंतु उसे देख वह कतराकर चला गया। इसी रीति से एक पादरी का सहायक उस जगह पर आया, वह भी उसे देख कतराकर चला गया। परंतु एक सामरी यात्री वहां आ निकला, उसने उसे देखा, उसके दिल में उसके प्रति दया उत्पन्न हुई, उसके पास आकर उसने उसके घावों पर तेल और द्राक्षा-रस ढालकर पट्टियां बांधीं और अपनी सवारी पर चढ़ाकर सराय ले गया तथा उसकी सेवा-टहल की। दूसरे दिन उसने एक रुपया निकालकर भठियारे को दिया और कहा, इसकी सेवा-टहल करना और जो कुछ तेरा और लगेगा, वह मैं लौटने पर तुझे भर दूंगा। अब तेरी समझ में जो डाकुओं से घिर गया था, उसका पड़ोसी इन तीनों में से कौन ठहरा? उसने कहा कि वही, जिसने उस पर दया की। यीशु ने उससे कहा कि जा, तू भी ऐसा ही कर।
-लूका 10. 25-37
धन किसका?- फिर उसके साथियों में से एक ने उससे कहा कि हे गुरु, मेरे भाई से कह कि वह पिता की विरासत में मुझे हिस्सा दे। उसने उससे कहा कि हे मनुष्य, किसने मुझे तुम्हारा न्यायाधीश या बांटने वाला नियुक्त किया है? उसने उससे कहा कि सचेत रहो और हर प्रकार के लोभ से अपने-आपको बचाये रखो, क्योंकि किसी का जीवन उसके अधिकार में रहने वाली वस्तुओं की विपुलता तथा सम्पत्ति की बहुतायत से सम्पन्न नहीं होता। उसने उनसे एक दृष्टान्त कहा कि किसी धनवान की भूमि में बड़ी उपज हुई। तब वह अपने मन में विचार करने लगा कि मैं क्या करूं, क्योंकि मेरे यहां जगह नहीं, जहां अपनी उपज रखूं। उसने कहा कि मैं यह करूंगा कि अपनी बखारियां तोड़कर उनसे बड़ी बनाऊंगा और वहां अपना सब अन्न और सम्पत्ति रखूंगा और अपने प्राण से कहूंगा कि प्राण, तेरे पास बहुत वर्षों के लिए बहुत सम्पत्ति रखी है; चैन कर, खा, पी, सुख से रह। परंतु ईश्वर ने उससे कहा कि हे मूर्ख, इसी रात तेरा प्राण तुझसे ले लिया जायेगा; तब जो कुछ तूने इकट्ठा किया है, वह किसका होगा? ऐसा ही वह मनुष्य भी है, जो अपने लिए धन बटोरता है, किन्तु ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं।
-लूका 12.13-21
धनियों की दुर्गति- एक धनवान् मनुष्य था, जो बैंगनी कपड़े और महीन-से-महीन मलमल पहनता और प्रतिदिन बड़ी शान-शौकत के साथ रहता था और लाजर नाम का एक कंगाल घावों से भरा हुआ उसकी डेवढ़ी पर छोड़ दिया गया था, वह चाहता था कि धनवान की मेज पर की जूठन से अपना पेट भरे और कुत्ते आकर उसके घावों को चाटते थे। ऐसा हुआ कि वह कंगाल मर गया और स्वर्ग-दूतों ने उसे ले जाकर इब्राहीम की गोद में पहुंचाया, वह धनवान भी मरा और गाड़ा गया। नरक में पड़े हुए उसने अपनी आंखें उठायीं और दूर से इब्राहीम की गोद में लाजर को देखा, उसने पुकारकर कहा कि हे पिता इब्राहीम, मुझ पर दया करके लाजर को भेज दे, ताकि वह अपनी अंगुली का सिरा पानी में भिंगोकर मेरी जीभ को ठंडी करे, क्योंकि मैं इस ज्वाला में तड़प रहा हूं, परंतु इब्राहीम ने कहा कि हे पुत्र, स्मरण कर कि तू अपने जीवन में अच्छी वस्तुएं ले चुका है और वैसे ही लाजर बुरी वस्तुएं, परंतु अब वह यहां शांति पा रहा है और तू तड़प रहा है।
-लूका 16.19-25