उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि की शुक्रवारीय गोष्ठी
उत्तर प्रदेश गांधी स्मारक निधि की शुक्रवारीय गोष्ठी 7 जनवरी को वर्चुअल रूप से आयोजित की गई, जिसका विषय था-“महात्मा गांधी; भारतीय सनातनता के अद्भुत व विश्वविश्रुत व्याख्याता एवं मार्गदर्शक”
स्वाध्यायियों ने विषय पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय-जीवन पद्धति व चिंतन, जिसका बीजारोपण सृष्टि में सर्वप्रथम हुआ, वह विश्व को मानवता, सहिष्णुता, शांति, दया, करुणा और अभेद का संदेश देता है. महात्मा गांधी ने इस सतत और कालजयी शिक्षा का ऐसा अद्भुत निचोड़ अपने लेखन और व्यवहार में प्रस्तुत किया, जो विश्व मानव को शांति, सद्भाव और सर्वजन को न्याय उपलब्ध कराने का नित्य-नूतन ज्ञान, कौशल व दृष्टि प्रदान करता है। गांधी ने मानव जीवन के हर पहलू का विश्लेषण व निष्कर्ष प्रस्तुत किया है।
गांधी ने राजनीति की वह अनूठी परिभाषा दी, जो पूरी सृष्टि की सेवा, सामाजिक-आर्थिक न्याय, सद्भाव, स्वतंत्रता की प्रेरक व कार्यशील तत्व है। गांधी ने अहिंसा को विज्ञान माना। गांधी ही विज्ञान के समक्ष यह चुनौती व्यक्त कर सकते थे कि विज्ञान को शरीर मस्तिष्क और आत्मा की भूख को संतुष्ट करना होगा। महात्मा गांधी ने कहा मेरा धर्म हिंदुत्व से भी आगे जाता है, जो हिंदुत्व के भीतर के सत्यों पर आधारित है, जो क्षण क्षण पवित्रता प्रदान करने वाला है, जो आत्मा को तब तक बेचैन रखता है, जब तक वह परमात्मा से एकाकार न हो जाए। महात्मा कि गांधी ने कहा मेरे लिए ईश्वर सत्य और प्रेम है, नैतिकता और सदाचार है, वह जीवन के प्रकाश का उत्स है, वह आत्मा की आवाज है। गांधी ने कहा अहिंसा मेरा पंथ है, कांग्रेस का नहीं। अहिंसा कांग्रेस के लिए एक नीति ही रही है और उसे पंथ को बदलने का अधिकार है, यदि आवश्यक लगे। गांधी के लिए पंथ अपरिवर्तनीय है । उन्होंने स्वीकार किया कि 30 वर्ष तक हमने अहिंसा नहीं, निष्क्रिय प्रतिरोध ही व्यक्त किया क्योंकि सक्रिय प्रतिरोध की उनमें (कांग्रेस में) क्षमता ही नहीं थी।
स्वाध्यायियों ने भारी वेदना, पीड़ा व दुख व्यक्त किया कि कतिपय व्यक्तियों, सोशल मीडिया, कतिपय टीवी चैनलों व समाचार माध्यमों द्वारा महात्मा गांधी के विचारों व व्यक्तित्व पर कीचड़ उछालने का प्रायोजित कुत्सित प्रयास किया जा रहा है। गांधी चिंतन भारतीय राष्ट्र-तत्व का अप्रतिम मार्गदर्शक है और विश्व-शांति के लिए अपरिहार्य रहेगा।