आज यमुना खुद अपनी प्यास नहीं बुझा सकती, ऐसी स्थिति बना दी गई है। यमुना प्यासी भी है, उदासी भी है। यमुना के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए हैं, किए जा रहे हैं। यमुना को बाजार में खड़ा कर दिया गया है। यमुना की अविरलता, निर्मलता और पवित्रता के नाम पर धोखा किया जा रहा है।
नदी की बात कहां से शुरू करें! गंगा, यमुना, कृष्णा, कावेरी, झेलम आदि नदियाँ तो अनेक हैं, लेकिन आज हम यमुना के बारे में ही विचार-विमर्श करेंगे। यमुना को वसुधारा, सप्तधारा, सहस्रधारा, गुप्तधारा, गिरिजा आदि नामों से भी जाना जाता है। इसका पानी नीला या श्यामल होता है, जो काला दिखता है, इसलिए इसे कालिंदी भी कहते है। कालिंद पहाड़, यमुनोत्री से निकलने वाली यमुना को माइथोलोजी में सूर्य एवं विश्वकर्मा की पुत्री संजना की बेटी मानते हैं। यमुना मौत के देवता यम की बहन है। भैया दूज की जनक है। यमुनोत्री तक पहुंचने से पहले यह हिमखंडों में सोई और गोपालों की लीला भूमि प्रयागराज में गंगा में समा गयी।
इसकी यात्रा एक बूंद से शुरू होकर पहाड़, जंगल, मैदान, गांव-देहात, शहर-नगर होती हुई गंगा से मिलकर सागर तक जाती है और वहां भी जाकर रुकती नहीं है। फिर से भाप, गैस, बादल, वर्षा की बूंदें बनकर अनन्त यात्रा पर निकल पड़ती है। इस रास्ते में गरुड़ गंगा, ऋषि गंगा, हनुमान गंगा, बदियर, कमलाद, बदरी, अस्लौर, टोंस या सुप्पीन, असान, आशानदी, गिरी, सिरमौर, मस्करी, कंठ, हिंडन, कृष्णी, काली, सबी, करतब, गंभीर, सिर, छोटी सिंध, बेतवा, केन, चंबल आदि नदियों की अनेक धाराएं यमुना में मिलती हैं। इन सबको साथ लेकर यमुना अपना अस्तित्व गंगा में समा देती है। आज भी गंगा और यमुना का क्षेत्र व्यापक और विशाल है।
ऋग्वेद, अथर्वेद, ऐत्रेय ब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण आदि ग्रंथों में भी यमुना की चर्चा मिलती है। सिकन्दर के साथी सेल्यूकस और ग्रीक यात्री मेगस्थनीज के लेखन में भी यमुना का उल्लेख मिलता है। तुगलक ने नहरे-बहिस्त यानी स्वर्ग की नहर यमुना से निकाली, मुगलों ने इसकी मरम्मत की और इसे बनवास से शाहजहांनाबाद तक बढ़ाया।
हथिनी कुंड, ताजेवाला में यमुना का पानी रोका गया है। जहां से पश्चिमी और पूर्वी यमुना नहर निकाली गई। पश्चिमी यमुना नहर हरियाणा के उत्तरी जिलों को जल प्रदान करती है। यमुना नगर, करनाल, पानीपत होते हुए हैदरपुर ट्रीटमेंट प्लांट पहुंचता है। यहां से दिल्ली को जल की अापूर्ति की जाती है। दिल्ली, हांसी, सिरसा आदि इसकी मुख्य शाखाएं हैं।
पूर्वी यमुना नहर सहारनपुर जिले में फैजाबाद से यमुना के बाएं किनारे से निकलकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों को जल प्रदान करती हुई दिल्ली के निकट फिर से यमुना में आ मिलती है। आगरा नहर दिल्ली के ओखला बैराज से निकलकर आगरा के पास फिर यमुना नदी में मिल जाती है। यमुना नदी घाटी में यमुना गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है।
यमुना घाटी का क्षेत्र भी विशाल है। विभिन्न काल खंडों की दृष्टि से मशहूर शहर कुरुक्षेत्र, इन्द्रप्रस्थ, मथुरा, वृंदावन, चित्रकूट, उदयपुर, जयपुर, बूंदी, चितौड़गढ़, झांसी, ओरछा, महोबा, कालपी, इंदौर, ग्वालियर, आगरा, भोपाल, पानीपत और दिल्ली भी यमुना की घाटी में आते हैं। यमुना के किनारे दिल्ली जैसे महानगर के साथ-साथ बागपत, नोएडा, मथुरा, आगरा, इटावा, कालपी, हमीरपुर, इलाहाबाद आदि शहर बसे हैं।
यमुना 1376 किमी की दूरी तय करके इलाहाबाद में गंगा से जा मिलती है। इस तरह दोनों जुड़वां बहनें एक दूसरे में समा जाती है और यहां के बाद गंगा नाम से आगे बढ़ती हुई यमुना भी गंगा सागर में मिल जाती है। यमुनोत्री, उत्तराखंड से प्रारंभ होकर इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में यमुना गंगा का संगम हो जाता है।
यमुना की मिट्टी, खनिज, भूजल की उपलब्धता, तापमान, वाष्पीकरण, भूतल, वर्षा, सिंचाई, यमुना से पानी का निष्कासन, भूमि का उपयोग, फसलें, जलग्रहण क्षेत्र, पानी का उपयोग, घरेलू प्रदूषण, कृषि प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, नदी से संबंधित सरकारी, गैर-सरकारी एजेन्सियां, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और यमुना, सतलुज यमुना नहर, दिल्ली में यमुना, नदी के बाढ़ क्षेत्र पर कब्जा, बाढ़ और सुखाड़ का खतरा, भूकंप का प्रकोप, सुन्दरीकरण का खेल, कमाई का जरिया, भावनाओं से खिलवाड़, राजनीति का झमेला, यमुना का पुराना स्वरूप, यमुना की जीवन धारा, यमुना का महत्व एवं आवश्यकता जैसे अनेक विषय हैं, जिन पर व्यापक चर्चा, चिंतन-मनन, लेखन आदि की जरूरत है। कभी समय निकालकर इन पर गहराई से विचार करने की जरूरत है।
आज सबसे पहले जरूरी है कि यमुना के बहाव, अविरल और निर्मल प्रवाह के लिए उसका खुद का जल उपलब्ध हो। आज दिल्ली में यमुना खुद अपनी प्यास नहीं बुझा सकती, ऐसी स्थिति बना दी गई है। यमुना प्यासी भी है, उदासी भी है। यमुना के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए हैं, किए जा रहे हैं। यमुना को बाजार में खड़ा कर दिया गया है। यमुना की अविरलता, निर्मलता और पवित्रता के नाम पर धोखा किया जा रहा है।
चुनाव के आसपास यमुना की खासतौर पर याद आती है। कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। कुछ आवाजें उठाई जाती हैं। वोट और नोट के चक्कर में यमुना को मकड़जाल में फंसाकर रख दिया गया है। कुछ ऐसे कदम हैं, जिन्हें उठाकर हम यमुना को फिर से यमुना बना सकते हैं। यमुना सहित सभी नदियों के लिए जरूरी है कि सर्वप्रथम उनमें उनके खुद के पानी का प्रवाह हो।
दिल्ली में वजीराबाद के बाद लगभग 22 किमी तक अपने जल की एक भी शुद्ध बूंद यमुना में नहीं है। यमुना से संबंधित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों के बीच हुए 10% जल छोड़ने के समझौते को तुरंत प्रभाव से लागू किया जाए। सालों से यह समझौता ठंडे बस्ते में पड़ा है। यमुना में डाली जाने वाली गंदगी तत्काल रोकी जाए। आजकल आरती, पूजा-पाठ, सुन्दरीकरण के नाम पर जो ध्यान भटकाया जा रहा है, पैसे की बर्बादी का धंधा किया जा रहा है, उसे तुरंत प्रभाव से बंद किया जाए। यमुना में गिरने वाले नालों को बरसाती नाला घोषित किया जाए। सीवर और रीवर को अलग-अलग रखा जाए।
सुन्दरीकरण के साथ-साथ या उससे पहले गंदगी को साफ सुथरा करने पर ध्यान दिया जाए। यमुना की छाती पर अधिग्रहण, कब्जे आदि बंद हों। जो हो चुके हैं, उन्हें यथासंभव हटाया जाए। आइये, मिलकर सोचें और आने वाली पीढ़ियों को भी यमुना में तैरने, नहाने और सीधे पानी पीने का अवसर प्रदान करने के लिए आवाज कैसे बुलंद करें।
-रमेश चंद शर्मा