आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला का नियमित सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है। मनुष्य अपने शरीर का कायाकल्प कर सालों साल तक निरोग रह सकता है। एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है। दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता है। तीन […]

पीढ़ियां भुगतेंगी खामियाजा, संयुक्त राष्ट्र क्लाइमेट रिपोर्ट की चेतावनी मनुष्य की गतिविधियों के कारण धरती, महासागर व वातावरण में व्यापक बदलाव आ रहा है। विकास व पारिस्थितिकी तंत्र पर लंबे समय में इसके दुष्परिणाम होंगे। हमारी जलवायु हमारी आंखों के सामने बदल रही है। मानव-जनित ग्रीनहाउस गैस में एकत्र ताप […]

अपनी एक रिपोर्ट में नीति आयोग कहता है कि वर्ष 2030 तक देश के 40% लोगों की पहुंच पीने के पानी तक नहीं होगी. पिछले 10 सालों में देश की करीब 30 फीसदी नदियां सूख चुकी हैं। वहीं पिछले 70 सालों में 30 लाख में से 20 लाख तालाब, कुएं, […]

लालच, उपभोग और शोषण पर अंकुश होना चाहिए। विघटनरहित और टिकाऊ विकास का केंद्र बिंदु समाज की मौलिक जरूरतों को पूरा करना होना चाहिए। ऐसा सतत विकास के लिए गांधी जी के विचारों को पुन: समझना और लागू करना ही होगा। गांधीजी ने कहा था कि धरती सारे मनुष्यों की […]

देश में वायु प्रदूषण एक आम भारतीय से उसके जीवन के औसतन 5.9 वर्ष कम कर रहा है। दुनिया की 99% आबादी जहरीली हवा में सांस ले रही है। आंकड़ों के मुताबिक आज दुनिया के 117 देशों के 6000 से अधिक शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी की जा रही […]

मिथक हर संस्कृति में पाये जाते हैं, पर भारतीय मिथक-साहित्य और लोक-संस्कृति इतनी व्यापक और वृहत्तर है कि उससे प्रकृति से संबंधित हर सवाल के जबाव की अपेक्षा होती है। ये घटनाएं भले ही कभी घटी हों या न घटी हों, पर लगता है कि आज भी घट रही हैं, […]

जलवायु परिवर्तन की काली छाया सिर्फ भारत में ही नहीं मंडरा रही है, यह समस्या वैश्विक समस्या बन चुकी है। वैश्विक सम्मेलनों में भी यह मुद्दा छाया रहता है. वर्ष 2011 के नवम्बर माह में डरबन में सम्पन हुए अंतराष्ट्रीय वैश्विक सम्मेलन में भी जमकर मंथन हुआ था। वर्ष 2015 […]

हिमालय एक भूकंप-प्रवण क्षेत्र है। यहां तक कि कम क्रम वाला भूकंप भी इस क्षेत्र के कई हिस्सों में भीषण आपदा को जन्म दे सकता है। भारत, नेपाल और भूटान में हिमालय की 273 जलविद्युत परियोजनाओं में से लगभग एक चौथाई में भूकंप और भूस्खलन से गंभीर क्षति होने की […]

भारत को एक-दो नहीं, लाखों सोनू चाहिए, जो जहां अवसर मिले, जन प्रतिनिधियों का कुर्ता खींचकर उनका ध्यान असली मुद्दों पर ले जायें, जो ब्यूरोक्रेसी को भी कह सकें कि योजनाओं का ईमानदारी से ज़मीन पर क्रियान्वयन सुनिश्चित करें और जनता की शिकायतों की पेटी खुद अपने हाथ से खोलें […]

बाबा विनोबा भूदान के काम को राष्ट्रीय आंदोलन नहीं, बल्कि जागतिक आंदोलन मानते थे। आंदोलन से भी आगे बढ़कर इसे आरोहण मानते थे. आरोहण में हम एक एक शिखर चढ़ने की कोशिश करते हैं। वही इसमें भी हो रहा है। बाबा विनोबा का मानना था कि मुझे भय नहीं, निर्भयता […]

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