देश में तानाशाही ताकतें फिर सिर उठा रही हैं। ऐसे समय जरूरत इस बात की है कि हम सब मिलकर जेपी के सपनों का भारत बनायें, ताकि तानाशाही ताकतों को मुंहतोड़ जबाव दिया जा सके और देश को बचाया जा सके। यदि हम चूक गये तो आने वाली पीढियां हमें […]

विनोबा विचार प्रवाह की इस श्रृंखला में आज का मनोगत राजेश्वरी दलाई की कलम से.वे सेवा समाज, रायगढ़ ओड़िसा की सम्पादक हैं ज्ञान का संबंध हृदय के साथ, हृदय की श्रद्धा भक्ति के साथ होता है। उसे प्राप्त करने के लिए साधना की जरूरत होती है। उपनिषदकार कहते हैं कि […]

बा बापू से छह साल बड़ी थीं। उनके जीवन के संस्मरण पढ़कर पता चलता है कि वे अपने विचारों में स्वतंत्र थीं. उन्होंने हमेशा बापू की हां मे हां नहीं मिलायी, वे असहमति होने पर बापू का विरोध भी करती थी। उनमें बापू के प्रति सगुण और निर्गुण भक्ति दोनों […]

उत्तराखंड प्रदेश नशाबंदी परिषद की बैठक बालसौड में हुई, जिसमें उत्तराखंड सरकार से मांग की गई कि उत्तराखंड में पूर्ण नशाबन्दी लागू की जाय, सरकार सेर भर फायदे के लिए मन भर नुकसान कर रही है। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रदेश नशाबन्दी परिषद के अध्यक्ष एडवोकेट जगमोहन भारद्वाज ने व संचालन प्रदेश […]

ब्रह्मविद्या मन्दिर के प्रति मनोभावों की अभिव्यक्ति की इस श्रृंखला में आज प्रस्तुत हैं ज्योत्सना बहन के मनोभाव आचार्य विनोबा भावे द्वारा स्थापित ब्रह्मविद्या मंदिर स्वावलंबन, परस्परावलंबन और आत्मावलंबन के आधार पर टिका हुआ है। जब हमारे मन से भय निकल जाता है, तब हम अध्यात्म के क्षेत्र में प्रवेश […]

एक गोरक्षा प्रचारक और स्वामी विवेकानंद के बीच हुआ था यह दिलचस्प संवाद फरवरी 1897 की बात है. तत्कालीन कलकत्ते के बाग़ बाज़ार इलाके में स्वामी विवेकानंद स्वामी रामकृष्ण परमहंस के एक भक्त प्रियनाथ के घर पर बैठे थे. कई भक्त और अनुयायी उनसे मिलने वहां पहुंचे थे. तरह-तरह के […]

सावरकर कहते हैं कि मुझे ऐसा लगता है कि गाय का गोबर खाना और गोमूत्र पीना कभी किसी समय समाज में किसी निन्दनीय कार्य के लिए सजा की तरह उपयोग में लाया जाता रहा होगा। प्रायश्चित के तौर पर गोमय और गोमूत्र का सेवन भी यही दर्शाता है। आगे चलकर […]

प्रकृति का चिरंतन चक्र घूमता रहता है, इसलिए लाभ हानि में संतुलन बना रहता है। प्रकृति के इस नियम को खंडित किया गया। अंग्रेजों की मिलिटरी के भोजन के लिए बछड़े और जवान गायें डेढ़ सौ साल कटती रहीं। डेयरी के लिए शहरों में गया गोवंश गांव में वापस नहीं […]

गांधी जी ने गोसेवा और गोरक्षा का अंतर स्पष्ट करते हुए कहा था कि गोशाला से गोसेवा होगी और चर्मालय से, अर्थात मरे हुए गाय-बैलों की खाल निकालने से गोरक्षण होगा। अगर हम मरे हुए गाय-बैलों की खाल नहीं निकालते हैं, तो चमड़े के लिए गाय-बैलों का कत्ल करना नहीं […]

अगर इसी तरह दुनिया में मानव मूल्यों का ह्रास होता रहा, प्रकृति में असंतुलन पैदा होता रहा और वातावरण प्रदूषित होता रहा तो दुनिया में मनुष्य का अस्तित्व बचाना कठिन हो जायेगा, क्योंकि यह दुनिया आदमी के रहने लायक नहीं रह जायेगी। वैसी परिस्थिति में मानव-पशुश्रम आधारित अर्थव्यवस्था, मानव-जीवन का […]

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